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कोरोना संकट के बीच कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ा लेकिन मांग घटी, अब रखने के लिए जगह नहीं

Update: 2020-03-29 06:00 GMT

नई दिल्ली। कोरोना संकट के बीच तेल उत्पादक देशों के समूह (ओपेक) और उनके सहयोगी रूस में उत्पादन में कटौती पर सहमति बनने से चौतरफा मुश्किलें बढ़ गई हैं। उत्पादन बढ़ने और मांग में गिरावट से तेल उत्पादक देशों के पास भंडारण के लिए जगह कम पड़ गई है।

कोरोना संकट से भारत, चीन, यूरोप और अमेरिका में तेल की मांग घट गई है। इससे जनवरी से अब तक कच्चे तेल के दाम में 60 फीसदी से भी अधिक गिरावट आ चुकी है। एक साल पहले की तुलना में कच्चे तेल की रोजाना मांग घटकर दो करोड़ बैरल रह गई है। शुरुआत में इसका फायदा भारत से दुनिया के सबसे बड़े आयातक देश के रूप में मिला लेकिन यह खुशी ज्यादा देर रहने की उम्मीद नहीं है।

वहीं उत्पादक देशों की सबसे बड़ी मुश्किल उनकी कम भंडारण क्षमता है। सऊदी अरब, रूस और अमेरिका दुनिया के तीन सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों में शामिल हैं। हालांकि, इनकी अपनी भंडारण क्षमता बेहद कम है। रूस की अपनी भंडारण क्षमता करीब एक हफ्ते की है। वहीं सऊदी अरब अपने लिए सिर्फ 18 दिन का भंडार रखता है। जबकि अमेरिका एक माह की तेल भंडार अपने लिए रखता है।

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तेल का आयातक है और यह जरूरत का 80 पर्सेंट तेल आयात करता है। भारत सस्ते तेल के इस मौके को गंवाना नहीं चाहता है और इसलिए उसने कच्चे तेल को ज्यादा से ज्यादा स्टोर करने का फैसला किया है।

कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से एक तरफ भारत को कम विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ रही है। वहीं दूसरी ओर वह कच्चे तेल के दाम में गिरावट के बाद पेट्रोल-डीजल का दाम घटाने की बजाय उत्पाद शुल्क बढ़ाकर सरकारी खजाना भर रहा है। उत्पाद शुल्क एक रुपया बढ़ने पर सरकार को 13 हजार करोड़ का लाभ होता है।

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