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विजय माल्या प्रत्यर्पण केस : आरोप-प्रत्यारोप से नहीं हो सकता मामले का हल

Update: 2018-09-16 05:57 GMT

नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। दो-तीन दिनों से विजय माल्या से मिलने को लेकर शोर हो रहा है। वित्तमंत्री अरुण जेटली कहते हैं कि माल्या जबरदस्ती उनसे आकर संसद भवन मिले। उधर, राहुल गांधी के मुताबिक यह तयशुदा मीटिंग थी। लेकिन अभी तक ना तो राहुल की पार्टी कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इस समस्या के हल के बारे में सोचा और ना ही मौजूदा सरकार इस पर सोच रही है। इसके चलते दो-तीन और बैंक लोन डिफाल्टरों ने माल्यानुमा रुख अख्तियार कर लिया। नाम सामने है, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी व उनके परिजन। हाल में नीरव की बहन पूरवी मोदी खिलाफ इंटरपोल ने रेड कार्नर नोटिस जारी किया है।

हालांकि इस समस्या का निदान इस जांच या रेड कॉर्नर नोटिस से नहीं हो सकता। नोटिस से सिर्फ अगली घटना को रोकने में कुछ हद तक मदद मिल सकती है। अगर समस्या के समाधान की बात की जाए तो लगता है कि इसके लिए कंपनियों में मौजूद व्यवस्था के चलन को ही बदलना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि देश में लागू कानून के मुताबिक शेयर बाजार में सूचीकृत हर कंपनी में अल्पमत शेयर धारकों के हित की रक्षा के लिए एक या इससे अधिक स्वतंत्र निदेशकों को नियुक्त किया जाता है लेकिन अभी तक इन निदेशकों को नियुक्त करने के नाम पर खानापूर्ति की जाती है जबकि इन्हनीं निदेशकों पर शेयर धारकों के हित की रक्षा की जिम्मेदारी रहती है।

इस मामले में हाल में खस्ताहाल हुए जेट एयरवेज की घटना का जिक्र इस लिए जरूरी है कि इसका भी हाल माल्या के जैसा है। इसके मालिक नरेश गोयल तो घोषणा कर चुके हैं कि कंपनी के माली हालाते अच्छे नहीं हैं। एक शेयर धारक अरविंद गुप्ता ने तो इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय तक अपनी शिकायत पहुंचा चुके हैं। अपनी उस शिकायत में उन्होंने कहा था कि कंपनी के दौ स्वतंत्र निदेशक पहले सिविल एविएशन सेक्रेटरी थे।

अब अगर माल्या के मामले की बात की जाए तो लगता है कि तत्कालीन सरकार ने सब्र से काम नहीं लिया। उल्लेखनीय है कि किंगफिशर के बोर्ड में कई नामी गिरामी लोग थे। इसमें एक पूर्व वित्त सचिव व एक सेबी के चेयरमेन थे लेकिन कंपनी के आर्थिक हालात अच्छे नहीं रहे। इस मामले का दूसरा पहलू है कि जब कंपनी के हालात बुरे हो गए तो इसे नीलाम किया जा सकता था। बैंक के लोन को इक्विटी में बदलकर बाजार में बेचा जा सकता था। इससे कंपनी बच जाती और कंपनी के बंद होने से बेरोजगार लोगों की नौकरी भी बच जाती लेकिन इस मामले में जमकर राजनीति की गई और मामला राजनीतिक फुटबॉल बनकर रह गया।

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