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उपराष्ट्रपति बोले - हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं

Update: 2020-01-10 11:56 GMT

नागपुर। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर देशभर में हिंसक विरोध प्रदर्शन करने वालों को उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि देश सभी का होता है, हिंसा और विध्वंस से किसी का भला नहीं होता। सड़क पर हिंसक प्रदर्शन से कभी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। उपराष्ट्रपति ने आगजनी करने वालों को नकारात्मक सोच को जलाने की नसीहत दी।

उपराष्ट्रपति ने शुक्रवार को कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय के तत्वावधान में नागपुर के सुरेश भट्ट सभागार में आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन का शुभारंभ किया। कार्यक्रम में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, राज्य के ऊर्जा मंत्री डॉ. नितिन राऊत, विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. श्रीनिवास वरखेडी, अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन के अध्यक्ष गौतम पटेल तथा सचिव सरोजा भाटे मंच पर उपस्थित थे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया की हर एक भाषा, सभ्यता और परंपराओं का आईना होती है। भाषा और भावनाएं एकसाथ चलती हैं। उनको को अलग करके नहीं देखा जा सकता। हमारे देश में 19 हजार से अधिक बोलिया हैं। हर भाषा और बोली का अपना अलग महत्व होता है।भाषाएं भूलकाल और भविष्य को जोड़ने का जरिया होती हैं। पंपराओं को संजोना हो तो मातृभाषा को प्राथमिकता देनी होगी। जीवन के हर क्षेत्र में मातृभाषा का प्रयोग होना चाहिए। मातृभाषा हमारी आंख की तरह है। वहीं अन्य भाषाएं ऐनक होती है। यदि आंखें ही ठीक नहीं होंगी तो ऐनक बेकार साबित होगा। इसलिए बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए।

शिक्षा प्रणाली में बदलाओं का जिक्र करते हुए नायडू ने कहा कि देश को साक्षर नहीं शिक्षित नागरिकों की जरूरत है। हमारे देश में अंग्रेजों की शिक्षा प्रणाली चल रही है। नतीजतन हमारी सभ्यता की अनदेखी हो रही है। पाठशालाएं अब बहुमंजिला इमारतों में तब्दील हो चुकी हैं। जो देश अपने इतिहास को भूलता है उसकी प्रगति नहीं हो सकती। हमारे देश के युवाओं को अपना इतिहास ही नहीं पता है। जितना फिल्मों में दिखाया जाता है उतना ही इतिहास हम समझ पाते हैं। यह सूरत बदलने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि पूरी दुनिया हमारी सभ्यता को अपना रही है। जर्मनी में संस्कृत भाषा में अनुसंधान हो रहा है। हमारी योग विद्या को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता मिल चुकी है। भारत की प्राचिन सभ्यता और धर्म दोनों अलग-अलग हैं। उनसे एक विद्यार्थी ने प्रश्न किया कि वह सूर्यनमस्कार कैसे करें? उसकी उलझन समझते हुए उपराष्ट्रपति ने उसे चंद्रनमस्कार करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सूर्यनमस्कार योग का अंग है, लेकिन इसका संबंध धर्म से नहीं बल्की स्वास्थ्य से होता है। दुनिया ने हमसे योग सीखा है और अपनाया है। नतीजतन इसे धर्म की बेड़ियों में जकड़ना ठीक नहीं होगा।

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