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दिल्ली आग में फंसे युवक ने भाई को फोन पर कहा - मुझे बचा लो मैं मरना नहीं चाहता हूं

Update: 2019-12-08 15:15 GMT

नई दिल्ली। जैसे ही फिल्मिस्तान हादसे की सूचना परिजनों व जानकारों को पता चली, वे अपनों का हालचाल जानने के लिए लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल व अन्य अस्पताल पहुंचने लगे। सबकी आखों में आंसू थे और चेहरे पर एक आशंका थी। वे भीड़ भरे अस्पताल में खुद को अकेला महसूस कर रहे थे। कोई उनको यह बताने वाला नहीं था कि उनका अपना जिंदा भी है या फिर मर गया है। उनको उनके अपनों के भी फोन आ रहे थे, जिनको वह यह बताने की हिम्मत नहीं कर रहे थे कि उनका अपना जिंदा भी है या नहीं।

'चाचा आग लग गई है, मैं मरना नहीं चाहता, मुझे बचा लो' यही आखिरी बता हुई थी। यह बताते हुए वेलकम इलाके में रहने वाले मोहम्मद इलियास रो पड़े। उन्होंने बताया कि उसका भतीजा मुशर्रफ (26) शादीशुदा था और उसका परिवार बिजनौर में रहता है। वह परिवार में इकलौता बेटा था, जिस पर अपने परिवार का पालन पोषण करने की जिम्मेदारी थी। वह फिल्मिस्तान इलाके स्थित फैक्टरी में प्लास्टिक से बनने वाले सामान की पैकिंग करता था। रविवार सुबहृ-सुबह करीब 5 बजकर 10 मिनट पर मुशर्रफ ने उनको फोन कर बताया कि फैक्टरी में भीषण आग लग गई है। वह काफी ज्यादा घबराया हुआ था। वह रोते रोते बोल रहा था कि चारों तरफ धुआं ही धुआं है। चाचा मुझे बचा लो मैं मरना नहीं चाहता हूं। जब मैंने उसको कहा कि बेटा तुम खिड़की या फिर छत पर जाकर नीचे कूद जाओ उससे जान बच जाएगी। तब मुर्शरफ ने कहा कि नीचे काफी बिजली के तार हैं और वह काफी ऊंचाई पर है। मुझे काफी डर लग रहा है। बस आकर किसी तरह से मुझे बचा लो चाचा।

उसके बाद अचानक उसका फोन बंद हो गया। कई बार फोन पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन फोन नहीं मिला। उसके वह लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल आए। यहां पर डॉक्टर साहब ने उनकी बात सुनकर कुछ मृतकों के फोटो दिखाए, जिसमें एक फोटो मुर्शरफ का था। मुशर्रफ नहीं के बराबर जला हुआ था। उसकी दम घुटने से मौत हुई थी।

डॉक्टरों ने बताया कि सोमवार को डॉक्टरों का पैनल शवों का पोस्टमार्टम करेगा। मुर्शरफ के माता पिता को हादसे की सूचना दे दी गई है। अब उनका पालन पोषण कैसे होगा। किसी को नहीं पता है। मुर्शरफ करीब चार साल से यहां पर नौकरी कर रहा था। हर महीने उसे करीब नौ हजार रुपये सैलरी मिला करती थी।

खानपुर के रहने वाले ताज अहमद ने बताया कि हादसे की चपेट में उनके ससुर जसिमुद्दिन और साला फैजल आए हैं। दोनों फैक्टरी में करीब 10 साल से काम कर रहे हैं। फैक्टरी में जैकेट बनती थी। कुछ समय पहले ही उन्होंने उसे भी एक जैकेट जन्मदिन पर गिफ्ट की थी। रविवार सुबह वह परिवार के साथ घर पर था। सुबह छह बजे बिहार के सहरसा जिला में रहने वाले रिश्तेदार ने फोन पर हादसे के बारे में बताया। टेलीविजन खोलकर देखा तो हादसे की पूरी जानकारी मिली। दोनों के मोबाइल फोन पर उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई। दोनों से संपर्क नहीं हो पाया।

जब वह फैक्टरी गये तो पता चला सभी को लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल भेज गया है। यहां पर उसको दोनों के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। डॉक्टरों और पुलिस वालों ने उसकी कोई सहायता नहीं की। उसको नहीं पता दोनों जिंदा है या फिर मर गए हैं।

जसिमुद्दीन हर रविवार को घर पर आया करता था। पिछले हफ्ते भी उन्होंने फोन कर अपनी बेटी को बताया था कि 15 दिसंबर को फैक्टरी बंद हो जाएगी। वह मालिक जुबैर से हिसाब कर घर आ जाएगा। फैक्टरी दोबारा जून महीने में खुलेगी। हादसे के बारे में जब उसने जुबैर को सुबह आठ बजे फोन कर मामले की जानकारी लेने की कोशिश की। जुबैर ने पहले बताया कि सब ठीक है। लेकिन बाद में उसने फोन स्वीच ऑफ कर लिया।

हादसे की चपेट में आए इमरान और उसके छोटे भाई इकराम मूलत: मुरादाबाद के रहने वाले हैं। इमरान के तीन जबकि इकराम के दो बच्चे हैं ये पांच भाई हैं। दोनों ने करीब 15 साल पहले किराये पर फैक्टरी ली थी। जिसके यहां पर दो दर्जन से ज्यादा लड़के काम करते हैं। फैक्टरी में लैपटोप का बैग आदि बनाने का काम होता था। रिश्तेदार सरफराज ने बताया कि सुबह छह बजे इमरान ने फोन किया था। वह डरा हुआ और रो रहा था। उसने बताया कि फैक्टरी में आग लग गई है। मुझे बचा लो, मैं मरना नहीं चाहता हूं। मैं उसको बोला था कि शांत होकर बाहर निकलने का रास्ता देखो। उसने कहा था कि यहां पर धुआं भरा हुआ है। दम घुट रहा है। उसके बाद अचानक फोन बंद हो गया। जब वह फैक्टरी पहुंचे तो चला कि अस्पताल में सभी को भर्ती कराया गया है। एलएनजेपी अस्पताल आए तो यहां पर किसी ने उनकी दोनों को तलाशने में सहायता नहीं की। जबकि मुरादाबाद घर से दोनों के बारे में जानने के लिए फोन आ रहे हैं। जिनको वह असलियत नहीं बता पा रहे हैं।

लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल में 34 युवकों के शवों को लाया गया। जबकि आधा दर्जन से ज्यादा युवकों का यहां पर उपचार चल रहा है। रविवार को यहां पर शवों को कुछ ही परिजनों ने आकर पहचाना। डॉक्टरों ने बताया कि दो दर्जन से ज्यादा लोगों की दम घुटने से मौत हुई थी। जो अपने अपने बंद पड़े कमरों से बाहर नहीं निकल पाए थे। सभी शवों के चेहरे देखकर उनकी पहचान की जा सकती है। शाम तक कुछ ही लोग आए थे। जिन्होंने अपनों को पहचाना था। लेकिन अभी भी काफी ज्यादा परिजन ऐसे थे जो घंटों तक एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में भटककर अपने को तलाशने की कोशिश कर रहे थे।

नबी आलम पीड़ित के परिवार के एक सदस्य ने बताया कि उसके तीन भतीजे नहीं मिल रहे हैं। वह रोते हुए फैक्ट्री पहुंचे और अपनों को ढूंढ रहे थे। जब उन्हें फैक्ट्री में काम करने वाले अपने नहीं दिखाई दिए तो उन्होंने रोना और चिल्लाना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके तीन भतीजे यहां काम करते थे लेकिन उन्हें उनकी कोई खबर नहीं है। वह कहां हैं कैसे हैं कुछ नहीं पता है।

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