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कश्मीर में घुसे चार पाकिस्तानी स्नाईपर, खुफिया एजेंसियों ने किया सतर्क

Update: 2018-10-29 05:59 GMT

श्रीनगर। कश्मीर घाटी में सुरक्षा एजेंसियों के लिए जैश-ए-मोहम्मद आतंकियों का स्नाईपर हमला एक नई तरह की चुनौती और चिंता के रूप में उभरा है। मध्य सितंबर से लेकर अबतक 3 जवान स्नाईपर हमले में शहीद हो चुके हैं। अधिकारियों ने बताया कि पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठनों के इस तरह के हमलों को नाकाम करने के लिए एजेंसियां को अपनी रणनीति नए सिरे से बनानी पड़ रही है। बता दें कि स्नाईपर हमला वह हमला होता है जब दूर से किसी गुप्त स्थान पर छिपकर कोई निशानेबाज बंदूकधारी अचानक लक्ष्य पर हमला करता है। अधिकारियों के मुताबिक भविष्य में सुरक्षा बलों पर इस तरह के और हमलों की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। स्नाईपर हमलों को लेकर सेना, सीआरपीएफ, जम्मू-कश्मीर पुलिस समेत सुरक्षा बलों ने कैंपों में रह रहे अपने जवानों और अधिकारियों के एक खास गाइडलाइंस जारी किया है।

जैश ने दी पनाह

इस तरह का पहला हमला इस साल 18 सितंबर को पुलवामा के नेवा में हुआ, जिसमें सीआरपीएफ का एक जवान जख्मी हुआ था। सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि उसके बाद इस तरह के कई हमले हुए। अधिकारियों ने बताया कि हाल ही में त्राल में ऐसे ही स्नाईपर हमले में सशस्त्र सीमा बल और सेना के एक-एक जवान शहीद हुए। नौगाम में भी ऐसे हमले में सीआईएसएफ का एक जवान शहीद हो गया। खुफिया सूचनाओं के आधार पर सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि सितंबर में जैश-ए-मोहम्मद के स्नाईपरों के 2 समूह कश्मीर घाटी में दाखिल हुए। दोनों समूहों में दो-दो स्नाईपर शामिल हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक इन स्नाईपरों को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में जैश-ए-मोहम्मद के कुछ ओवरग्राउंड समर्थकों ने पनाह दी। अधिकारियों के मुताबिक इन आतंकियों को पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई से कश्मीर घाटी में स्नाईपर हमलों को अंजाम देने के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षण मिला हुआ है। ये आतंकी रू-4 कार्बाइन्स से लैस हैं, जिनका इस्तेमाल अमेरिका की अगुआई वाली गठबंधन सेना अफगानिस्तान में करती है। इस हथियार का इस्तेमाल पाकिस्तानी सेना की स्पेशल फोर्स भी करती है।छिप कर बनाया निशाना

सभी स्नाईपर हमलों में आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों के परिसरों के नजदीक की किसी पहाड़ी में छिपकर तब निशाना बनाया जब जवान अपने मोबाइल फोन पर परिजनों या दोस्तों से बातचीत में मशगूल थे। एक अधिकारी ने बताया कि आतंकवादियों ने मोबाइल की रोशनी को निशाना बनाकर जवानों पर गोलियां चलाईं। बता दें कि एम-4 कार्बाइन टेलिस्कोप से लैस होती है। अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादी अपने संभावित शिकार को नाइट विजन डिवाइसेज (रात में देखने के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरण) के जरिए चुनते हैं। यह खतरनाक कार्बाइन 500 से 600 मीटर की दूरी से भी लक्ष्य पर अचूक निशाना साधने में सक्षम है। 

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