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पूर्व सांसद महाराजा बहादुर कमल सिंह नहीं रहे

Update: 2020-01-05 08:37 GMT

पटना / बक्सर। देश की पहली लोकसभा के अब तक एक मात्र जीवित सदस्य बहादुर कमल सिंह का डुमरांव में रविवार की सुबह लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उन्होंने 1952 में पहले लोकसभा के आम चुनाव में बक्सर संसदीय सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कमल चुनाव चिन्ह से लड़कर जीत हासिल की थी। वे अपने क्षेत्र में सांसद से अधिक एक दानवीर के रूप में विख्यात थे। उनकी दान की हुई जमीन पर आज भी तमाम स्कूल, कॉलेज व अस्पताल से लोगों को सुविधाएं मिल रही हैं।

डुमरांव में 29 सितम्बर 1926 को जन्मे राजा कमल सिंह देश को आजादी मिलने के बाद लोकतंत्र बहाल करने के लिए वर्ष 1952 में भारत के प्रथम चुनाव में सदस्य चुने गया था। बक्सर संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कमल सिंह 32 वर्ष की उम्र में उस समय सबसे कम उम्र के सांसद चुने गये थे। इनका चुनाव चिन्ह कमल का फूल था। सदन में कमल सिंह की कार्यशैली ने इन्हें तुर्क नेता के रूप में जाने जाते थे। वे लगातार 1962 तक सांसद रहे। लेकिन अपने क्षेत्र में राजा कमल सिंह ने स्कूल, कॉलेज, अस्पताल सहित कई नहर और सरोवर, तालाब बनवायेे थे। इसके अलावा इन्होंने कई स्कूल, अस्पताल के लिये अपनी जमीन दान में दी थी। उन्होंने भोजपुर जिले के आरा का महाराजा कॉलेज, जैन कॉलेज, प्रतापसागर (एनएच-30) में बिहार का इकलौता टीबी अस्पताल, विक्रमगंज (रोहतास) में अस्पताल, डुमरांव में राज अस्पताल के लिये जमीन दान में दी थी।

राजा कमल का विवाह1 946 में उषा देवी के साथ हुआ था। महराज ने अपने पीछे दो पुत्र व एक पुत्री को छोड़ गए हैं। उनके दो पुत्र चंद्र विजय सिंह और कुमार मान विजय सिंह यहीं रह रहा है। डुमरांव राज परिवार के युवराज चंद्र विजय सिंह की मानें तो वर्ष 1940 के आसपास पूरा परिवार यहां आ कर बस गया था, लेकिन राजगढ़ से लगाव कम नहीं हुआ है। आज भी दशहरा में तौजी परंपरा का निर्वहन यहीं होता है। इनके बाद चंद्र विजय सिंह राजनीति में काफी रुचि लेते थे, मगर चंद्र विजय सिंह के पुत्र शिवांग विजय सिंह यहां भारतीय जनता पार्टी से जुडें रहे।

डुमरांव राज परिवार को केंद्र में रखकर चेतन भगत ने 'हाफ गर्ल फ्रेंड' पुस्तक लिखकर शोहरत बटोरी थी। मगर उन्हें फजीहत भी झेलनी पड़ी थी, डुमरांव राज परिवार के चंद्र विजय सिंह ने चेतन पर एक करोड़ रुपयेे की मानहानि का दावा कर दिया था। हालांकि बाद में चेतन भगत ने डुमरांव राज परिवार से माफी मांग ली थी।

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