गुरुद्वारे पर ISIS हमले में 27 सिखों की मौत, स्वामी बोले -भारत की कोई मस्जिद निंदा प्रस्ताव लायेगी क्या ? कोई कांग्रेसी ?
काबुल। मध्य काबुल स्थित गुरुद्वारे में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट खोरासान (आईएसकेपी) ने ली है। हमले में सिख समुदाय के कम से कम 27 सदस्य मारे गए हैं। बुधवार को शोरबाजार क्षेत्र में एक आत्मघाती हमलावर ने गुरुद्वारे के प्रवेश द्वार पर खुद को उड़ा लिया और इसके बाद आईएस के अन्य तीन आतंकवादियों ने गुरुद्वारे पर हमला कर दिया। हमले के वक्त कम से कम 150 लोग मौजूद थे।
वाहेगुरु... वाहेगुरु, इन्होने हमारा गुरुद्वारा बर्बाद कर दिया
अफगानिस्तान के गृह मंत्रालय ने घटना के बारे में बताया कि पुलिस गुरुद्वारे पर तैनात थी और सुरक्षा के बंदोबस्त किए गए थे लेकिन उसके बाद भी बंदूकधारी अपने मंसूबे में कामयाब रहे और बेगुनाह श्रद्धालुओं पर फायरिंग कर दी. अफगानी सांसद नरेंद्र सिंह खालसा ने घटना के बारे में बताया कि जब हमला हुआ, उस वक्त वे गुरुद्वारे में मौजूद थे. वे किसी तरह जान बचाकर वहां से भागे. उन्होंने बताया कि हमले में कम से कम 4 लोगों की मौत हो गई है और कुछ जख्मी हैं.
बता दें, अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते हुए हैं लेकिन धरातल पर इसका पूर्ण असर नहीं देखा जा रहा. कुछ दिन पहले तालिबान ने कहा था कि उनकी शर्तें नहीं मानी गईं तो वे अपनी पुरानी राह पर लौट आएंगे और विदेशी सैन्य बलों के खिलाफ अपने आक्रामक हमले शुरू करेंगे. अफगानिस्तान वर्षों से तालिबानी आतंकवाद का शिकार है और कई बेगुनाह लोगों की जान जा चुकी है. यहां अमेरिकी सेना भी तैनात है जिसे राष्ट्रपति ट्रंप ने हटाने का ऐलान किया है.
बुधवार को गुरुद्वारे पर हुए हमले की ISIS ने जिम्मेदारी ली है. हमले के बाद सुरक्षा बलों ने पूरे गुरुद्वारे को चारों ओर से घेर लिया है और आगे की कार्रवाई की जा रही है. जवाबी कार्रवाई में आतंकियों का कितना नुकसान हुआ है, इस बारे में कोई पुष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है. हमले को इस महीने की एक घटना से जोड़ कर देखा जा रहा है जिसमें ISIS से जुड़े एक आतंकी ने काबुल में शिया मुसलमानों के एक जलसे पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं जिसमें 32 लोग मारे गए थे.
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में सिखों के खिलाफ भेदभाव की अक्सर खबरें आती रहती हैं. सिख अपने साथ दोयम दर्जे के बर्ताव की भी शिकायतें करते रहे हैं. मुस्लिम चरमपंथियों ने कई बार उनके खिलाफ हमला बोला है. इसे देखते हुए अफगानिस्तान में सिखों की जान अक्सर खतरे में देखी जाती है. बुधवार का हमला भी इसी का उदाहरण है. 90 के दशक में जब अफगानिस्तान में तालिबानी अपने चरम पर थे, तो उन्होंने एक तरह से फरमान जारी कर दिया था कि सिख समुदाय के लोग खुद की पहचान जाहिर कराने के लिए बांह पर पीले रंग का पट्टा बांधे. इस फरमान की विश्व बिरादरी में काफी आलोचना हुई, लिहाजा यह फरमान लागू न हो सका.
हाल के महीनों में बड़ी संख्या में हिंदू और सिखों ने हिंदुस्तान का रुख किया है क्योंकि भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को मंजूरी दी है. अफगानी हिंदू और सिखों को हिंदुस्तान की धरती ज्यादा सुरक्षित लगती है क्योंकि वहां उन्हें मजहबी भेदभाव के अलावा हिंसक झड़पों का भी सामना करना पड़ता है. बता दें, अफगानिस्तान में हिंदू और सिखों की अच्छी खासी संख्या है लेकिन उनके साथ भेदभाव की खबरें खूब आती हैं.
सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा, "कि दुनिया कोरोनोवायरस से जूझ रही है, काबुल में आईएसआईएस के आतंकवादियों ने आज एक गुरुद्वारे में घुसकर 25 सिखों की गोली मारकर हत्या कर दी और उन्हें काफिरों को खत्म करने के लिए फिट बताया। क्या भारत की कोई मस्जिद इसकी निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित करेगी और इसे असामाजिक कहेगी? क्या होगा कांगी, लुटियन?