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हरियाणा : क्या मंत्रियों की हार ने ही पैदा कर दिया जीत का अंतर ?

हरियाणा मेेें मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर मंथन

Update: 2019-11-02 09:44 GMT

नई दिल्ली/चंडीगढ़। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने महाराष्ट में सरकार गठन की रस्साकशी के चलते फिलहाल हरियाणा में मंत्रिमंडल विस्तार को रोक दिया है। शिवसेना के 50-50 फार्मूले पर अड़ियल रूख के चलते भाजपा हाईकमान ने अपना पूरा ध्यान महाराष्ट में सरकार बनाने पर लगाया है क्योंकि वहां वक्त रहते अगर स्थिति को नहीं संभाला गया तो राजनीतिक संकट बड़ा रूप ले सकता है। शुक्रवार को शिवसेना के शीर्ष पदाधिकारियों की एनसीपी नेता शरद पवार व कांग्रेस नेताओं के साथ मुलाकात ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। भाजपा हरियाणा में बहुमत नहीं मिल पाने के कारणों पर विचार करेगी लेकिन अभी तो उसके समक्ष मंत्रिमंडल में किन नए चेहरे को तरजीह दी जाए, यह यक्ष सवाल बना हुआ है।

हरियाणा के परिणामों ने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हैरत में डाल दिया। भाजपा ने मिशन-75 का लक्ष्य रखा था, जिसे हासिल करने के लिए पार्टी ने पूरा जोर लगाया था। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी काफी खिन्न बताए जाते हैं। उनके विश्वसनीय सिपहसलारों ने 50 से अधिक सीटें जीतने के प्रति आश्वस्त किया था। मंगलवार को एक चैनल द्वारा एक्जिट पोल में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर बताए जाने के बाद पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने फौरन वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बैठक आहूत की थी। जिसमें पूर्ण बहुमत मिलने की बात की गई थी। लेकिन आभासी परिणामों के मुकाबले वास्तविक परिणामों ने दिखाया कि पार्टी अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गई।

भाजपा राज्य में अपनी सहयोगी पार्टी जननायक जनता पार्टी यानि जेजेपी को सरकार में आनुपातिक प्रतिनिधित्व देने पर विचार कर रही है। लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार स पहले उप मुख्यमंत्री व जेजेपी नेता दुष्यंत चैटाला ने किसानों व बुजुर्गाें को पेंशन के रूप में 5100 रूपए देने जैसी मांग पर दबाव बनाया है, जो फिलहाल हलक से नीचे नहीं उतर पा रही है।

भाजपा के साथ दूसरा बड़ा कारण यह है कि वह निर्दलीय विधायकों को हाशिए पर न हीं धकेलना चाहती, जिन्होंने बिना किसी शर्त समर्थन देने की पेशकश की थी। इनमें चार तो वे विधायक हैं जिन्होंने भाजपा से बगावत की थी और टिकट न मिलने पर दिर्नलीय चुनाव लड़ा और वे जीते भी। इसके अलावा भाजपा के आठ मंत्री चुनाव में धराशायी हो गए जिसके कारण पार्टी हाईकमान व्याकुल है। भाजपा के ज्यादातर जाट नेता चुनाव हार गए। केवल पांच जाट नेता ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। जेजेपी के पांच जाट नेता भी चुनाव जीतने मे ंसफल रहे हैं। इसके इतर स्वतंत्र उम्मीदवारों में पांच जाट नेता ही हैं जिन्होंने चुनाव जीता। भाजपा इसी नए समीकरणों पर मंथन कर रही है कि आखिर उसे स्वतंत्र उम्मीदवारों में से ििकतने जाट नेता लेना चाहिए? भाजपा देवीलाल के छोटे बेटे रंजीत व बलराज कुंडू को शामिल करने पर भी विचार कर रही है। भाजपा को अनुसूचित वर्ग से भी अपेक्षित वोट नहीं मिले। पार्टी इस पर भी संतुलन साधने पर विचार कर रही है।

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