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विजय के शिल्पी सुनील देवधर

Update: 2018-03-04 00:00 GMT


*प्रशांत पोळ

आज का दिन निर्विवाद रूप से श्री सुनील देवधर जी के नाम हैं। वे त्रिपुरा विजय के शिल्पकार हैं। पिछली विधानसभा में एक भी विधायक न होते हुए, अगले चुनाव में सीधे बहुमत पर पहुंचाने का चमत्कार, इसके पहले ऐसा चमत्कार मात्र एनटी रामाराव के खाते में हैं। देवधर जी दूसरे हैं। त्रिपुरा विजय का महत्व इसलिए भी सामने आता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में सारे देश में मोदी लहर होने के बावजूद भी त्रिपुरा की दोनों सीटों पर भाजपा की जमानत जप्त हो गयी थी। ऐसे में त्रिपुरा में भाजपा का संपूर्ण बहुमत प्राप्त कर लेना, किसी चमत्कार से कम नहीं है। सुनील देवधर जी से मेरा परिचय लगभग चार वर्ष पुराना हैं। उससे पहले उनके बारे में सुना था। वे पूर्वांचल के विषय में अच्छा बोलते हैं, यह भी जानकारी थी।  जबलपुर में हम मकर संक्रमण व्याख्यानमाला चलाते हैं। बड़ी लोकप्रिय और अव्वल दर्जे की व्याख्यानमाला हैं। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस आदि अनेक इस व्याख्यानमाला में बोल चुके हैं। इसी व्याख्यानमाला में बोलने के लिए मैंने सुनील जी से संपर्क किया। उनका उत्तर सकारात्मक था। किन्तु ऐसे मानधन की अपेक्षा की गयी थी, जिसे देना हमें संभव नहीं था। मैंने उनको उत्तर लिखा कि आपकी त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभार।  किन्तु यह व्याख्यानमाला हम कुछ लोग समाज प्रबोधन के लिए चलाते हैं। यह व्यावसायिक व्याख्यानमाला नहीं हैं। अत: इतना मानधन देना संभव नहीं हैं।

मेरा सन्देश मिलते ही, सुनील जी का तुरंत फोन आया। उन्होंने कहा, अरे भाई, सरस्वती के इस व्यासपीठ का मुझे अनादर नहीं करना हैं। मैं तो प्रचारक हूँ। मानधन मेरे लिए नहीं था। अपनी एक संस्था है ‘माय होम’। पूर्वांचल से भगाए गए बच्चों के लिये काम करती हैं। यह धन उस संस्था के लिए था। किन्तु मैं आऊंगा। आपको जो देना हैं, दे दें। सुनील जी आए। पूर्वांचल की समस्याओं पर बोले। श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाला उनका भाषण था। उस वर्ष की व्याख्यानमाला के श्रेष्ठ भाषणों में से एक था। तब से सुनील जी से संपर्क बढ़ा। उनके बारे में जानकारी मिलती रहती थी। त्रिपुरा में वे जो कुछ कर रहे हैं, उसके बारे में पढ़ता रहता था। कुछ माह पूर्व उन्होंने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार की प्रतिमा का पर्दाफाश करने वाली एक तथ्यपरक, सुन्दर पुस्तक मेरे पास अभिप्राय के लिए भेजी थी।

सुनील जी मेघालय में छह वर्ष प्रचारक रहे हैं। अच्छी खासी बंगाली बोलते हैं। कुछ जनजातीय भाषाएं भी उन्हें अवगत हैं, जिसमें त्रिपुरा की भाषा कोकबोरोक भी शामिल है। अत्यंत कुशल संगठक, उत्तम रणनीतिकार, जबरदस्त मेहनत करने वाला कार्यकर्ता यह उनका वास्तव हैं। त्रिपुरा में पिछले साढ़े तीन वर्षों में उन्होंने तथा उनके नेतृत्व में भाजपा की टीम ने किये हुए अथक परिश्रम का प्रतिफल आज मिल रहा है। वामपंथ का अभेद्य माना जाने वाला त्रिपुरा का गढ़ ढह गया है। इसे बचाने वामपंथियों ने सारे हथकंडे अपनाए। पिछले तीन वर्षों में 13 भाजपा कार्यकर्ताओं की दर्दनाक हत्याएं की। किन्तु जनता ने त्रिपुरा में भी वामपंथ को नकार दिया हैं। देश वास्तव में बदल रहा है।


सुनील (देवधर) जी, बधाई..!!

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