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जॉर्डन में हिंदीपीठ की स्थापना के मायने

Update: 2018-03-03 00:00 GMT

- सियाराम पांडेय 'शांत', 


समझौते तभी होते हैं जब दिल मिलें। दिमाग मिलें। उभय पक्ष के हित संरक्षण की गुंजाइश हो। भारत और जॉर्डन के बीच हुए समझौते को इसी आलोक में देखना ठीक होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बेहतर जानते हैं कि सम्मान के बीज बोकर ही सम्मान की फसल काटी जा सकती है। इसलिए वे जिस किसी भी देश में जाते हैं, उसकी विशिष्टता बताना हरगिज नहीं भूलते। लेकिन इस क्रम में वह भारत के गौरव गान का एक भी मौका अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते। यूं तो उनका सपना सभी देशों के साथ भारत के संबंध को सुदृढ़ बनाना है, लेकिन पश्चिम एशियाई मुल्क उनकी प्राथमिकता के केंद्र में हैं। 

जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला बिन अल हुसैन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत के बाद रक्षा और सहयोग के 12 समझौतों पर हस्ताक्षर इस बात का प्रमाण है कि इस्लामिक देशों में भी भारतीय सोच, सिद्धांत और विकास परंपरा को महत्व दिया जा रहा है। इजराइल के प्रधानमंत्री और ईरान के राष्ट्रपति की जिस तरह भारत में मेजबानी हुई, उससे भारत के प्रति इस्लामिक देशों की धारणा में सकारात्मक बदलाव आया है। शाह अब्दुल्ला और प्रधानमंत्री मोदी के बीच आपसी , क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर गहन बातचीत के दौरान आतंकवाद के मसले पर वैचारिक समानता ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। जॉर्डन के शाह की इस बात में दम है कि मजहब को जानने वाला नफरत और दहशतगर्दी की बात नहीं कर सकता। दोनों देशों की वार्ता का सिलसिला दोस्ती के चरम पर पहुंच गया है। दोनों के बीच हुए 12 समझौते उसकी बानगी हैं। इस समझौते के तहत भारत जॉर्डन को अपने देश में विकसित और उत्पादित रक्षा साज सामान और ध्रुव हेलीकाॅप्टर की आपूर्ति करना चाहता है। शाह अब्दुल्ला खुद भी अमेरिकी हेलीकॉप्टर कोबरा के पायलट रह चुके हैं इसलिए ध्रुव में उनकी रुचि सहज ही है। यह और बात है कि ध्रुव हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति का जॉर्डन की ओर से अभी कोई औपचारिक अनुरोध नहीं आया है लेकिन संभावनाएं तलाशने में गुरेज क्यों किया जाना चाहिए? 

दोनों देश ट्रेनिंग, रक्षा उद्योग, प्रति आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, सैन्य चिकित्सा सेवा और शांति रक्षण के क्षेत्र में अगर सहयोग के लिए सहमत हुए हैं तो इसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि यह दोस्ती दूर तक जाएगी। जॉर्डन वैसे भी सूचना तकनीक के क्षेत्र में भारत के अनुभवों से लाभान्वित होना चाहता है। यही वजह है कि उसने अपने यहां सूचना तकनीक के विस्तार के लिए सेंटर आफ एक्सीलेंस की स्थापना पर जोर दिया है। भारत के सहयोग से यहां हर पांच साल में 3 हजार पेशेवर तैयार होंगे। 

जॉर्डन में रह रहे सीरियाई शरणार्थियों के लिए भारत पहले ही 50 लाख डालर की औषधीय मदद दे चुका है। दिल जीतने के लिए कुछ विशेष तो करना ही पड़ता है। इस मनोविज्ञान को नरेंद्र मोदी से बेहतर कोई भी नहीं जानता। जॉर्डन के विश्वविद्यालय में हिंदी पीठ की स्थापना भारत की बड़ी उपलब्धि है। जिस तरह बहरीन में नरेंद्र मोदी ने हिंदू मंदिर की आधारशिला रखी, उसी तरह जॉर्डन में हिंदी पीठ की स्थापना का निर्णय दूरगामी असर डालेगा। इससे इस्लामिक देशों में भारतीय सिद्धांतों, आदर्शों और जीवन मूल्यों की पहुंच सहज सुनिश्चित होगी। वैसे भी भारत आदिकाल से ही सबको साथ लेकर चलने वाला देश रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी भारतीय सनातन विचारधारा को सबका साथ-सबका विकास की सोच के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने आतंकवादियों, अलगाववादियों को बहुत बड़ी नसीहत दी है। उन्होंने कहा है कि आतंकवादी यह नहीं समझ रहे हैं कि अपने कृत्य से वे अपने ही मजहब का नुकसान कर रहे हैं। आतंकवादियों की समझ में यह बात आएगी या नहीं, लेकिन जिसके लिए खड़े होने का वे दावा करते हैं, वे उनसे खटक जरूर जायेंगे। मतलब नरेंद्र मोदी ने इस्लामिक विचारधारा के गढ़ में ही आतंकियों के पैरों तले की जमीन अपनी कूटनीति की बदौलत सरका दी है। वे मुस्लिम देशों को यह समझाने और बताने में भी सफल रहे हैं कि दुनिया भर के मजहब और मत भारत की मिट्टी में ही पनपे हैं। जॉर्डन को उन्होंने एक ऐसी पवित्र भूमि पर आबाद करार दिया है जहां से खुदा का पैगाम पैगम्बरों और संतों की आवाज बना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मान इसलिए मिलता है कि वे सम्मान देना जानते हैं। पाकिस्तान को मेल-मिलाप का उन्होंने भरपूर मौका दिया। प्रोटोकाॅल तोड़कर वह पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर भी गए थे लेकिन पाकिस्तान ने भारत पर अपने आतंकी हमलों का सिलसिला रोका नहीं। 

चीन जिस तरह उसकी मदद कर रहा है, उसे देखते हुए भी नरेंद्र मोदी द्वारा इस्लामिक देशों का दिल जीतना जरूरी है। इस साल 26 जनवरी को जिस तरह उन्होंने दस आशियान देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया। उनकी शानदार मेजबानी की, उससे चीन और पाकिस्तान दोनों ही अंदर तक हिल गए थे। छोटे देश, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान की आर्थिक मदद देकर चीन उन्हें भारत विरोधी बनाना चाहता है लेकिन नरेंद्र मोदी जिस तरह अपने व्यवहार से पड़ोसी देशों को साधते हैं, उससे चीन की बौखलाहट स्वाभाविक ही है। मुस्लिम देशों में हिंदी के फैलाव और भारतीय विमानों और रक्षा सामानों की इस्लामिक देशों में आपूर्ति चीन की अर्थव्यवस्था को तोड़ने का एक जरिया हो सकती है। अगर भारत भी इस कारोबार में आगे बढ़ता है तो चीन की चूलें हिल जाएंगी। चीन का विरोध आधी से अधिक दुनिया कर रही है। नरेंद्र मोदी जिस निर्णायक ढंग से वैदेशिक निर्णय ले रहे हैं, उससे कल के भारत की मजबूती को नकारा नहीं जा सकता। 

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