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चिदंबरम के अर्थशास्त्र का अध्याय

Update: 2018-03-03 00:00 GMT


अंततः पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के पुत्र कार्ति चितंबरम कानूनी शिकंजे में आ ही गये। उन पर विदेशी कंपनी को लाभ पहुंचाने के बदले लाभ उठाने का आरोप है। मामला यहीं तक सीमित नहीं है। इस मसले के याचिकाकर्ता राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी की मानें तो पी. चिदंबरम भी शिकंजे में आएंगे। क्यांकि लाभ भले ही उनके पुत्र ने उठाया, लेकिन उन्हें इस लायक बनाने का काम उनके पिता ने किया था। इसके लिए कथित तौर पर उन्होंने मंत्री पद के अधिकारों का अनुचित रूप से इस्तेमाल किया था। 

कुछ भी हो, यह मामला न्यायपालिका के विचाराधीन है। अंतिम फैसला वहीं होगा। लेकिन प्रथम दृष्टया लगता है कि धुंआ किसी आग से ही उठा है। ये बात अलग है कि कांग्रेस ने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया है। अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस नीरव मोदी प्रकरण पर मुखर हुई थी। ऐसा लगा जैसे वह अब आर्थिक गड़बड़ी के खिलाफ लड़ेगी। चिदंबरम ने भी इस विषय पर लिखना शुरू कर दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भी खूब ट्वीट आने लगे, वह सीधे नरेंद्र मोदी से हिसाब मांग रहे थे। यह दिखाने का प्रयास हुआ जैसे आर्थिक गड़बड़ी के प्रति कांग्रेस की जीरो टॉलरेंस की नीति रही है। इसलिए कुछ प्रकरण उसे बेचैन कर रहे हैं। लेकिन यह सब चल ही रहा था, तभी कार्ति चिदंबरम गिरफ्तार हो गए। 

कांग्रेस की ओर से बचाव में दो बात कही गई। एक यह कि सरकार बदले की भावना से कार्य कर रही है। कांग्रेस ईमानदार व्यवस्था के लिए कथित तौर पर संघर्ष कर रही है। सरकार ने इसीलिए बदले की भावना से काम किया। कार्ति चिदंबरम को गिरफ्तार किया गया। दूसरा कारण यह है कि सरकार नीरव मोदी प्रकरण से ध्यान हटाना चाहती है। इसलिए उसने पूर्व वित्त मंत्री के पुत्र को गिरफ्तार किया। इसी क्रम में उसने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पुत्र पर भी अपने पुराने आरोप दोहराये।

लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने बचाव में जो तर्क दिये, उसका कोई आधार नहीं है। एक बात यह कि इस गिरफ्तारी में सरकार का कोई हाथ या भूमिका नहीं है। कार्ति चिदंबरम के खिलाफ सुब्रमण्यम स्वामी ने याचिका दायर की थी। न्यायपालिका की निगरानी में जांच कार्य चल रहा है। ऐसे में यह कहना गलत है कि सरकार बदले की भावना से कार्य कर रही है। कार्ति चिदंबरम की गिरफ्तारी के समय को मात्र संयोग कहा जा सकता है। जब सरकार की इसमें कोई भूमिका ही नहीं है, तब गिरफ्तारी के लिए वह जिम्मेदार कैसे हो सकती है। 
अमित शाह के पुत्र की चर्चा से भी कांग्रेस का बचाव नहीं हो सकता। अमित शाह पहले भी कह चुके हैं कि उनके पुत्र ने सरकार से न एक रुपया सहायता ली है, न सत्ता का अनुचित लाभ उठाया है, न अनुचित साधनों से व्यवसाय किया है। शाह ने तो कानूनी कार्रवाई की चुनौती भी दी थी। लेकिन कांग्रेस के नेता आरोप लगाने तक सीमित रहे। जबकि सुब्रमण्यम स्वामी जैसे नेता कार्ति चिदंबरम के खिलाफ न्यायपालिका पहुंच गए थे। कांग्रेस में अनेक दिग्गज वकील हैं। लेकिन किसी ने यह जहमत नहीं उठाई। क्योंकि वे जानते हैं कि बेबुनियाद आरोप लगाना आसान है, किन्तु उसे न्यायपालिका में उठाना कठिन है। 

ऐसे आरोपों पर राजनीति अवश्य हो सकती है और कांग्रेस यह कर भी रही है। इसी प्रकार उसने नेशनल हेराल्ड मसले पर भी सरकार को घेरा था। बिल्कुल वही तर्क दिये गये थे, जो आज चिदंबरम मामले में दिये जा रहे हैं। तब भी यही कहा गया था कि सरकार बदले की भावना से काम कर रही है। वह मामला भी सुब्रमण्यम स्वामी ने न्यायपालिका में उठाया था। न्यायपालिका की निगरानी में ही कार्रवाई चल रही थी। उसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी आरोपी थे। कांग्रेस में सोनिया-राहुल के बाद पी. चिदंबरम को माना जाता है, अब गड़बड़ी की आंच उनके करीब भी पहुंच रही है।

जांच एजेंसी का कहना है कि कार्ति चिदंबरम लंबे समय से सहयोग नहीं कर रहे थे। आरोप है कि उन्होंने आईएनएक्स मीडिया के लिए गैरकानूनी तरीके से निवेश की मंजूरी हासिल की थी। यह मंजूरी पी. चिदंबरम के वित्तमंत्री रहते हुए मिली थी। आईएनएक्स मीडिया को तीन कम्पनियों से पांच करोड़ रुपये विदेशी निवेश की मंजूरी थी। लेकिन कम्पनी ने तीन सौ पांच करोड़ रुपये का निवेश कराया। कार्ति चिदंबरम ने आईएनएक्स को गैर कानूनी ढंग से एफआईपीबी की मंजूरी दिलाई। इसे वित्तीय जांच से भी छूट मिली थी। आरोप है कि इसके बदले कार्ति चिदंबरम ने चेस मैनेजमेंट और पद्मा विश्वनाथ की कम्पनी एडवांटेज कन्सलटेंसी के जरिये आईएनएक्स से रकम ली थी। इसके अलावा वह राजस्थान के एम्बुलेंस घोटाले के भी आरोपी हैं। 

पी. चिदंबरम का वित्तमंत्री के रूप में कार्यकाल आर्थिक गड़बड़ियों के लिए ज्यादा चर्चित रहा था। एक प्रकार से समानांतर व्यवस्था चल रही थी। सरकार की नीतियों में अनेक लूपहोल थे। इसे लेकर खूब चर्चा हुई। लेकिन अर्थशास्त्र के विद्वान पी. चिदंबरम ने इसे रोकने का प्रयास नहीं किया। नरेंद्र मोदी की सरकार ने ऐसे अनेक लूप होल बन्द किये हैं। फिर भी पुरानी व्यवस्था का लाभ उठाकर पीएनबी जैसी गड़बड़ी की गई। सरकार इसे रोकने के सख्त प्रयास कर रही है। बड़े बकायेदारों पर पन्द्रह दिन में कार्यवाई की जाएगी। जो बकायेदार जांच के काम में सहयोग नहीं करेगा, उसकी संपत्ति तत्काल प्रभाव से जब्त कर ली जायेगी। कार्ति चिदंबरम मामले में रकम से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि यूपीए सरकार में बागडोर किन हाथों में थी। ऐसे लोग कभी आर्थिक गड़बड़ी को मुद्दा नहीं बना सकते। इसीलिए कह सकते हैं कि कांग्रेस की इस दुविधा का अंत नहीं है।

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