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जयारोग्य में पहली बार बर्जर पद्धति से किया सफल उपचार

Update: 2018-03-12 00:00 GMT

मरीजों को बचाया जाएगा गेंगरीन रोग से, डॉ. बघेल ने किया सफल उपचार


ग्वालियर/सुजान सिंह बैस। जयारोग्य में पहुंचने वाले बर्जर रोगियों को अब उपचार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। अस्पताल के रेडियोडायग्नोसिस विभाग के  असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेश बघेल ने बर्जर रोग के उपचार हेतु प्लेटलेट रिच प्लाजमा की नई पद्धति तैयार की है। जिससे अब बर्जर (थ्रोम्बोाग्निटिस आॅब्लिटरेंस) रोगियों को अस्पताल में ही उपचार उपलब्ध हो सकेगा। दरअसल बर्जर रोग में मरीज को गेंगरीन हो जाता है। यह रोग 20 से 40 वर्ष के पुरूषों में सबसे ज्यादा होता है। अस्पताल के डॉ. बघेल ने बताया कि लंबे समय तक अगर कोई व्यक्ति धुम्रपान करता है तो निकोटिन शरीर में थ्रोबोजिन बनाना शुरू कर देता है। जिस कारण व्यक्ति के हाथ-पैर के निचले और ऊपरी हिस्से में सूजन और रक्त के थक्के जमना शुरू हो जाते हैं। इससे रक्तवाहिकाओं में रक्त के प्रवाह को कम और अवरूद्ध होने लगता है।

डॉ. बघेल ने बताया कि विगत दिनों इसी बीमारी से पीड़ित एक व्यक्ति उनके पास आया था, जिसके पैर में बर्जर रोग  के लक्षण दिखाई दे रहे थे। लेकिन मरीज की उम्र काफी कम थी और अगर उसका सही उपचार नहीं किया जाता तो वह अपना पैर भी खो सकता था। इसी के चलते उन्होंने प्लेटलेट रिच प्लाजमा(पीआरपी) से बर्जर पद्धति का उपयोग कर मरीज का सफल उपचार किया। उन्होंने बताया कि जयारोग्य में अभी तक बर्जर रोग के उपचार का प्रभावी तरीका विकसित नहीं था, अब बर्जर रोग से पीड़ित मरीज को प्लेटलेट रिच प्लाजमा के माध्यम से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि प्लेटलेट रिच प्लाजमा में ग्रोथ फेक्टर एवं स्टेम सेल होते है, जो शरीर के जिस हिस्से में जाएं उसी में परिवर्तित हो जाती है। यह प्लेटलेट्स मरीज की मृत हो चुकी कोशिकाओं को पुन: जीवित कर देती हैं। उन्होंने बताया कि अगर संबंधित मरीज को सही उपचार नहीं दिया जाता तो उसके पैर में गेंगरीन भी हो सकता था।

यह हैं लक्षण, हो सकता है गेंगरीन
डॉ. राजेश बघेल ने बताया कि बर्जर रोग के लक्ष्ण हमेशा धीरे-धीरे विकासित होते हैं, रोग के प्रारंभिक चरण में पैर की अंगुलियां और हाथों की अंगुलियों में थकान होने लगती है। इसके साथ ही मरीज को चलते समय दर्द भी होना शुरू हो जाता है। उन्होंने बताया कि इस रोग के कारण मरीज की त्वचा की सतह पर नीला, काला रंग पड़ना शुरू हो जाता है। अगर ऐसे में मरीज का उपचार नहीं किया जाए तो उसे गेंगरीन जैसा रोग हो जाता है। 

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