नीरव मोदीकांडः गोलकनाथ की कहानी, पीएनबी बैंक कर्मियों की जुबानी

Update: 2018-02-18 00:00 GMT

नई दिल्ली। पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) की मुंबई स्थित ब्रेडी हाउस ब्रांच के दस्तावेजों के मुताबिक पीएनबी घोटाले से जुड़े बैंक अधिकारी गोलकनाथ शेट्टी लगातार सात सालों तक इसी ब्रांच में बने रहे। इन्हीं सात सालों की अवधि के दौरान शेट्टी ने नीरव मोदी की कंपनियों के पक्ष में देनदारी वचन पत्र (एलओयू) व एलसी (ऋण पत्र) जारी किए थे।

जानकारी के मुताबिक शेट्टी को 2013 में ही स्थानांतरित किया जाना था। लेकिन वह इस शाखा में बने रहे। उनके ट्रांसफर को किसने रुकवाया यह स्पष्ट नहीं है। सामान्यतः बैंक या केंद्र सरकार के कर्मियों के लिए एक जगह की कार्यावधि तीन साल की होती है। अगर कोई अधिकारी किसी एेसे पद पर आसीन है जहां पर विशेषज्ञता की जरूरत होती है तो उन्हें पांच साल तक एक जगह रखा जा सकता है। 

उल्लेखनीय है कि शेट्टी एेसे अधिकारियों में से एक थे जिन्हें स्विफ्ट मैसेजिंग सिस्टम का प्रयोग करने का अधिकार प्राप्त था और एलओयू (लेटर अॉफ अंडरस्टैंडिंग) इसी सिस्टम से विदेश के ब्रांचों में भेजे जाते थे। शेट्टी ने अपनी ओर से जारी एलओयू को अपने ही पास रखा और इसे बैंकिंग कोर सिस्टम के साथ साझा नहीं किया। जानकारी तो यह भी मिल रही है कि गोलकनाथ ने अपने पद पर बने रहने के लिए पूरी सेवा अवधि (36 साल) में सिर्फ एक बार ही प्रमोशन लिया। वह बैंक राष्ट्रीयकरण के दूसरे दौर में बैंकिंग सेवा से जुड़ा था। 1986 में वह क्लर्क से मैनेजर बना था और फिर उसने कभी प्रमोशन लिया ही नहीं।

कथित रूप से 2010 से ही जारी इस घोटाले की बात इसलिए सामने नहीं आ पाई क्योंकि शेट्टी बहुत दिनों तक उसी ब्रांच में जमा रहा। लेकिन शेट्टी के सेवा निवृत होते ही नए अधिकारी के पास जब कागजात आए तो उन्होंने संबंधित बैंकों इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक अॉफ इंडिया व एक्सिस बैंक से संबंधित एलओयू की देनदारी की मान्यता नहीं दी। घोटाले का पर्दाफाश होते ही गोलकनाथ गायब हो गया। एक बैंक अधिकारी ने गुमनामी की शर्त पर बताया कि अब पीएनबी के आलाधिकारी अांतरिक अॉडिट करवाने की बात कर रहे हैं।

इस कांड से जुड़ा सबसे गंभीर पहलू कि किसी भी बैंक ने पीएनबी की ओर से जारी एलओयू या एलसी के बारे में कभी भी कोई सत्यापन नहीं किया जबकि आरबीआई गाइडलाइन के मुताबिक 90 दिनों के बाद इसका सत्यापन जरूरी है। लेकिन इस लेनदेन में शामिल 30 बैंकों में से किसी भी बैंक ने एेसा करने की जहमत नहीं उठाई। उल्लेखनीय है कि एलओयू किसी बैंक की ओर से दिया जाने वाला एक वचन पत्र है जिसके आधार पर दूसरा पक्ष धन राशि प्राप्त कर सकता है। एलओयू की अवधि सिर्फ 90 दिनों की ही होती है। इस मामले में आरोपी अधिकारी समय-समय पर नवीनीकृत करता रहा। 

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