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शहीद की मां का दर्द, सात साल बाद भी नहीं मिली छोटे बेटे को नौकरी

Update: 2018-02-13 00:00 GMT

शहीद कैप्टन उपमन्यु सिंह की वृद्ध मां का दर्द,

मुख्यमंत्री निवास पर लगा चुकी हैं गुहार, सिर्फ आश्वासन मिला


फूल चन्द मीणा/ग्वालियर। 7 दिसम्बर 2010 को जम्मू-कश्मीर के सोपोर में कैप्टन उपमन्यु सिंह दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीद की वृद्ध मां की प्रदेश सरकार ने आज तक कोई सुध नहीं ली है। सात साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा की गई घोषणा के बाद भी आज तक शहीद कैप्टन के छोटे भाई को सरकारी नौकरी नहीं मिली है। वृद्ध मां को जो आधे से भी कम पेंशन मिलती है, उसी से वे अपने परिवार की गुजर-बसर कर रही हैं।

यह पीड़ा है ग्वालियर के सिटी सेंटर स्थित पटेल नगर में रहने वाली सुमन सिंह की। उनके नौजवान बेटे कैप्टन उपमन्यु सिंह जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में 7 दिसम्बर 2010 को शहीद हो गए थे। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सुमन सिंह के घर पर जाकर घोषणा की थी कि आर्थिक सहायता के अलावा उनके छोटे बेटे उदयन सिंह को सरकारी नौकरी दी जाएगी। इस घोषणा के सात साल बाद भी वृद्ध मां सुमन सिंह और छोटा भाई उदयन सिंह अब तक सरकारी सहायता की आस लगाए बैठे हैं। पिछले सात सालों में मुख्यमंत्री श्री चौहान शहर में कई बार आए, लेकिन एक बार भी शहीद कैप्टन के परिजनों की उन्होंने या फिर उनके किसी भी मंत्री ने सुध नहीं ली है, जबकि एक वृद्ध मां का होनहार अफसर बेटा शहीद हो जाने पर सरकारी घोषणाओं के बाद भी परिवार तंग हाल जीवन जीने को मजबूर है। सुमन सिंह का दर्द बस इतना ही है कि जो वादे उनसे बेटे के शहीद हो जाने पर किए गए थे, प्रदेश सरकार उनको पूरा करे।

बेटे के नाम से बने पार्क की सफाई का खर्चा स्वयं उठाती हैं

महापौर के सरकारी निवास के सामने रूपसिंह स्टेडियम के पास शहीद कैप्टन उपमन्यु सिंह के नाम से स्मारक और पार्क बना हुआ है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस पार्क की देखरेख और साफ-सफाई का खर्चा स्वयं शहीद उपमन्यु सिंह की मां सुमन देवी उठाती हैं, जबकि इस पार्क की देखरेख नगर निगम को करना चाहिए। सुमन सिंह ने पार्क की देखभाल के लिए एक माली को वेतन पर लगा रखा है।

बेटे की याद में खोलना चाहती हैं स्कूल

सुमन सिंह अपने शहीद बेटे कैप्टन उपमन्यु सिंह की याद में एक ऐसा स्कूल खोलना चाहती हैं, जिसमें पढ़ने वाले बच्चे देश की सेवा के लिए काम आएं। प्रदेश सरकार से उनकी मांग है कि उन्हें स्कूल खोलने के लिए कहीं पर भी जमीन दे दी जाए, ताकि बेटे की याद में वह एक स्कूल खोल सकें। इसके लिए वह स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने के लिए गई थीं, लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला है। बढ़ती उम्र और जवान बेटे के गम में उनकी आंखों के आंसू भी सूख चुके हैं। वे इसी उम्मीद में जी रही हैं कि कभी तो सरकार उनकी सुध लेगी और स्कूल के लिए उन्हें जमीन उपलब्ध कराएगी।

बेटे के नाम से सड़क के नामकरण से मिलता है सुकून

सुमन सिंह ने कहा कि उपमन्यु सिंह के नाम से सड़क का नामकरण कर दिया गया है। इससे हमें इतना सुकुन जरूर मिलता है कि चलो सरकार ने एक काम तो कर दिया। कम से कम बेटे के नाम से शहर में सड़क तो बन गई।

आप मेरी बहन जैसी हैं, जब भी परेशानी हो, मिल सकती हैं

सुमन सिंह ने बताया कि बेटे के शहीद होने के छह माह बाद मैं छोटे बेटे उदयन सिंह के साथ भोपाल मुख्यमंत्री से उनके निवास पर मिलने के लिए गई थी। उस समय मुख्यमंत्री ने मुझसे कहा था कि आप मेरी बहन जैसी हैं, जब भी आपको कोई परेशानी हो, आप मुझसे मिल सकती हैं, लेकिन मुझे आज तक आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिला है।

40 प्रतिशत पेंशन से करती हैं गुजारा

सुमन सिंह को वृद्धावस्था में 40 प्रतिशत पेंशन मिलती है, जिससे वह अपने परिवार की गुजर-बसर करती हैं। शेष पेंशन का हिस्सा कैप्टन उपमन्यु सिंह की पत्नी को मिलता है। वह अब अपने पिता के घर रहती है।

इनका कहना है

‘‘यह मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। यदि शहीद की मां मेरे पास आकर अपनी समस्या बताती हैं तो मैं प्रकरण को दिखवाकर उनकी समस्या का निराकरण कराने का प्रयास अवश्य करूंगा।’’

राहुल जैन
जिलाधीश ग्वालियर

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