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भीमा-कोरेगांव को मुद्दा बनाने वाले अम्बेडकर की सोच से परिचित नहीं

Update: 2018-01-19 00:00 GMT

नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव की हकीकत समझाने के लिए दिल्ली विश्विद्यालय के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के प्राध्यापकों और शोध छात्रों के संगठन सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट(सीएसडी) की ओर से एक विमर्श आयोजित किया गया। इसमें करीब 250 शिक्षकों और शोध छात्रों ने भागीदारी की। दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर बिद्युत चक्रवर्ती ने कहा कि अम्बेडकर के नाम पर राजनीति करने वाले नहीं जानते कि उनके जीवन का मूल मंत्र ‘मैत्री और करूणा’ था। वह आपसी द्वेश फैलाने के कड़े विरोधी थे इसलिए वह सिर्फ एक बार भीमा-कोरेगांव गए, दोबारा वहां नहीं गए। 

‘भीमा-कोरेगांव का सच’ विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट्स फैकल्टी में आयोजित इस विमर्श में प्रो. विद्युत चक्रवर्ती ने बताया कि बाबासाहब अम्बेडकर ने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय पहचान के साथ कभी समझौता नहीं किया। प्रो. चक्रवर्ती इस साल की पहली जनवरी भीमा-कोरेगांव में हुई घटना को देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह बाबासाहब के बनाये संविधान के विरुद्ध है।

इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र बरतरिया ने कहा कि भीमा-कोरेगाँव की घटना एक सुनियोजित षडयंत्र था। उन्होंने कहा कि घटना से पहले ही एक सुनियोजित तरीके से कहानी गढ़ी जाती है और जब तक तथ्य सामने आते हैं तब तक झूठ को इतना प्रचारित कर दिया जाता है कि लोग उसे स्वीकार कर लें। उन्होंने कहा कि आधुनिक साम्यवाद का रूप धारण कर कई राष्ट्रविरोधी तत्व राष्ट्र और समाज को जाति, क्षेत्र और मजहब के आधार पर बांटना चाहते है, जिससे अलगाव पैदा हो। उन्होंने कहा कि जानबूझकर पेशवाओं और अंग्रेजों की लड़ाई को जातिगत रंग दिया गया ताकि हिन्दू आपस में लड़ें। 

सेंटर फार सोशल स्टडीज के अध्यक्ष डॉ. राजकुमार फलवारिया ने परिचर्चा में भाग लेते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं को रोकना हम सबका दायित्व है ताकि देश को एकता, अखंडता, सामाजिक समरसता का वातावरण बना रहे। हमें प्रयास करना होगा कि ऐसी घटनाओं की भविष्य में पुनरावृत्ति ना हो। इसके लिए हमें सजग रहना पड़ेगा और समाज को भी जागरूक करते रहना होगा। 

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