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इस मंदिर में विराजित है मां काली का शरीर

Update: 2017-09-29 00:00 GMT

स्वदेश वेब डेस्क। रायपुर के आकाशवाणी तिराहा के मुख्य मार्ग पर स्थित काली मंदिर की लोकप्रियता प्रदेशभर में है। अंग्रेजों के शासनकाल में कामाख्या से आए नागा साधुओं ने जंगल में महाकाली के स्वरूप को निरूपित किया। तीन दिन जंगल में रुके और महाकाली को प्रतिष्ठापित करके आगे की यात्रा पर निकल गए। मंदिर की बगल में स्थित बरगद पेड़ के नीचे उनकी धुनी लगी थी, जहां वर्तमान में भैरवनाथ की प्रतिमा है। 1992 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।

विशेषता

मात्र 25 साल में ही मंदिर की प्रसिद्धि इतनी बढ़ी कि यहां तांत्रिक पूजा करने के लिए कोलकाता से तांत्रिक पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां काली की आत्मा कोलकाता में और शरीर रायपुर में विराजमान है।

वास्तुकला

काली मां की मूर्ति का मुख उत्तर दिशा में है, जो तांत्रिक पूजा करने वालों के लिए विशेष महत्व रखता है।

मंदिर से जुड़े आयोजन

चैत्र व क्वांर नवरात्र में प्रज्वलित की जाने वाली जोत की संख्या निर्धारित है। मंदिर में 11 राजजोत और नीचे तथा ऊपरी कक्ष में 3551 जोत की ही व्यवस्था है, इसलिए यहां जोत प्रज्वलित कराने तांता लगता है। कई बार नवरात्र से पहले ही जोत की बुकिंग फुल हो जाती है और अगली नवरात्र के लिए बुकिंग करानी पड़ती है। प्रतिदिन जसगीत होता है और अष्टमी में कई जोड़े हवन पर बैठते हैं।

अष्टम महागौरी

श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया।।

नवरात्र में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से स्पष्ट है कि इनका रूप पूर्णत: गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं इसलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। इनकी 4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा गया है।

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