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विश्व का पहला व्यक्ति जिसने जीवित रहते देखा अपना दिल

Update: 2017-09-29 00:00 GMT

नई दिल्ली/दक्षिण अफ्रीका। 3 दिसम्बर 1967 के दिन, दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन के स्कूल औफ मेडिसिन के ग्रूटे  चिकित्सालय में ह्रदय शल्य विशेषज्ञ (कारडिएक सर्जन) डा. क्रिशच्शियन नीदलिंग  बर्नाड ने हार्ट- लंग मशीन का उपयोग करके व्यवहारिक रूप से  मानव से मानव ह्रदय प्रत्यारोपण करने का प्रथम विश्व प्रयास किया। इस अदभुत प्रयास में उन्होंने लगभग 55 वर्षीय लुइस का क्षीण ह्रदय निकाल कर निष्क्रिय मस्तिष्क से ग्रस्त जीवन की सम्भावना से शून्य अन्य व्यक्ति का स्वस्थ ह्रदय प्रत्यारोपित किया,परन्तु प्रत्यारोपण पश्चात वह रोगी केवल 19 दिन तक ही जीवित रह सका।  उल्लेखनीय है कि यह अति जटिल  ह्रदय शल्य  क्रिया उन्होंने उस समय उपलब्ध अल्प  विकसित  यंत्रो एवं उपकरणों के उपयोग से सम्पन्न किया।  इसके ठीक एक माह पश्चात, 2 जनवरी 1968 को अपने द्वितीय प्रयास में डा बरनार्ड ने एक 59 वर्षीय दन्त चिकित्सक फिलिप बेलबर्ग का 40 प्रतिशत से भी कम कार्य क्षमता का ह्रदय निकाल कर एक 22 वर्षीय ब्रेन डैड युवती का स्वस्थ ह्रदय प्रत्यारोपित किया। विश्व के इस प्रथम सफल बहु चर्चित अनूठे अंग - प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में अंग प्राप्तकर्ता (रेसीपिएन्ट) फिलिप ब्लेबर्ग प्रत्यारोपित ह्रदय के साथ लगभग 19 माह तक जीवित  रहे। चिकित्सीय परम्परा एवं विकृति विज्ञान के प्रावधान के अनुसार रोगी के रुग्ण ह्रदय को चिकत्सीय शोध एवं अध्य्यन हेतु रासायनिक प्रसंस्करण करके कांच के जार में संरक्षित किया। शल्य क्रिया के लगभग 36 घंटे पश्चात नव ह्रदय प्रत्यारोपित रोगी  फिलिप्स जब निश्चेतना के प्रभाव से  पूर्णत: मुक्त होकर चेतन अवस्था में आए तो ह्रदय शल्य सर्जन डा बरनार्ड ने कांच के जार में संरक्षित उनका ह्रदय दिखाते हुए  उनसे कहा कि आप विश्व के ऐसे प्रथम व्यक्ति हैं जो जीवित रहते हुए अपना ह्रदय  प्रत्यक्ष रूप से  स्वयं देख पा रहे हैं।

‘‘किसी  ह्रदय को धरती में गाड़ कर कृमियों द्वारा भक्षण कराने से बेहतर है इसे प्रत्यारोपित कर दिया जाए।’’

डॉ. क्रिच्शियन बरनार्ड

संकलन एवं प्रस्तुति:

डॉ. सुखदेव माखीजा पूर्व रजिस्ट्रार,गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय ग्वालियर,म प्र।

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