भारत में 80 के दशक में एक फिल्म आई थी रोटी, कपड़ा और मकान । इस फिल्म में अभिनेता शशिकपूर का एक प्रसिद्ध डायलॉग है, किसी भले आदमी ने कहा है कि ये मत सोचो कि देश तुम्हें क्या देता है, सोचो ये कि तुम देश को क्या दे सकते हो और जब तक हम सब ये नहीं सोचते हमारा कुछ नहीं हो सकता । इसी के साथ इस फिल्म की पटकथा यह भी बताती है कि इंसान की सबसे पहली आवश्यकता उसकी पेट की आग का शांत होना और उसके बाद तन ढंकने के लिए कपड़े फिर आवास यानि की सिर पर छत का होना है। आज पुन: इस फिल्म की याद इसलिए हो आई क्योंकि केंद्र सरकार ने फैसला ही कुछ ऐसा लिया है। केंद्र सरकार ने आज किफायती आवास के लिए नई सावर्जनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) नीति की घोषणा की है। इसके अंतर्गत अब से निजी भूमि पर भी प्राइवेट बिल्डरों द्वारा निर्मित किए जाने वाले प्रत्येक मकान के लिए 2.50 लाख रुपये तक की केंद्रीय सहायता दी जाएगी। जिसके बाद कि अब उम्मीद की जा सकती है कि शहरी क्षेत्रों में सरकारी भूमि पर क्रियान्वित होने वाली किफायती आवास परियोजनाओं में निजी निवेश की संभावनाएं भी काफी हद तक बढ़ जाएंगी।
वास्तव में काले धन की गिरावट और सरकारी सिस्टम के समकक्ष खड़ी हो चुकी नई भ्रष्ट अर्थ व्यवस्था का ध्वस्त होता समय, आज सीधे तौर पर बता रहा है कि अब वे दिन दूर नहीं जब भारत अपनी प्रगति की उड़ान भरने में दुनिया के किसी भी देश से पीछे रहे, अर्थात समय के साथ वह तेजी से वैश्विक क्षितिज पर आगे बढ़ रहा है । वस्तुत: यह इसलिए भी कहा जा रहा है कि इन दिनों केंद्र एवं राज्य सरकारें देश की आम जनता को रोटी मुहैया कराने के बाद अपने देश की जनता को उसी के टैक्स के रूप में दिए पैसे से किसी दूसरे रूप में उसी तक अपनी सेवाएं निरंतर पहुंचा रही है । फर्क सिर्फ इतना है कि पूर्व की तुलना में विकास का सूचकांक यहां नया सेट किया गया है।
केंद्र सरकार द्वारा जनता तक पहुंचाई जानेवाली सुविधाओं में एक नई व्यवस्था यह जुड़ी है कि आवास और शहरी नीति के अंतर्गत किफायती आवास वर्ग में निवेश करने के वास्ते निजी क्षेत्र को आठ पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) विकल्प दिए गए हैं। इस नीति का उद्देश्य सरकार, डेवलपर्स और वित्तीय संस्थानों के समक्ष मौजूद जोखिमों को उन लोगों के हवाले कर देना है, जो उनका प्रबंधन बेहतर ढंग से कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त जो सीधतौर पर समझ आता है, वह यह भी है कि इस नीति के अंतर्गत 2022 तक सभी के लिए आवास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अल्प प्रयुक्त एवं अप्रयुक्त निजी और सार्वजनिक भूमि का उपयोग भी किया जा सकेगा ।
निजी भूमि पर किफायती आवास में निजी निवेश से जुड़े दो पीपीपी मॉडलों में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के ऋण संबंधी सब्सिडी घटक (सीएलएसएस) के तहत बतौर एकमुश्त भुगतान बैंक ऋणों पर ब्याज सब्सिडी के रूप में प्रति मकान लगभग 2.50 लाख रुपये की केन्द्रीय सहायता देना भी इसमें शामिल है। दूसरे विकल्प में अगर लाभार्थी बैंक से ऋण नहीं लेना चाहता है तो निजी भूमि पर बनने वाले प्रत्येक मकान पर डेढ़ लाख रुपये की केंद्रीय सहायता प्रदान की जाएगी। वस्तुत: सरकार ने यहां राज्य, प्रमोटर निकायों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद आठ पीपीपी विकल्प तैयार किए हैं जिनमें से छह विकल्प सरकारी भूमि का उपयोग करते हुए निजी निवेश के जरिए किफायती आवास को बढ़ावा देने से संबंधित हैं।
सरकारी भूमि के इस्तेमाल वाले छह मॉडलों में डीबीटी मॉडल को प्रमुखता से लिया गया है जोकि यह कहता है कि प्राइवेट बिल्डर सरकारी भूमि पर आवास की डिजाइनिंग के साथ-साथ इसका निर्माण कर इन्हें सरकारी प्राधिकारियों को हस्तांतरित कर सकते हैं। निर्माण की सबसे कम लागत के आधार पर सरकारी भूमि आवंटित की जाएगी। तय पैमाने पर आधारित सहमति के अनुरूप परियोजना की प्रगति के आधार पर सरकारी प्राधिकारी द्वारा बिल्डरों को भुगतान किया जाएगा और खरीदार सरकार को भुगतान करेगा।
यहां जो दूसरा मॉडल लाया गया है वह है क्रॉस-सब्सिडी वाले आवास का मिश्रित विकास, जिसके अनुसार प्राइवेट बिल्डरों को दिए गए प्लॉट पर निर्मित किए जाने वाले किफायती आवासों की संख्या के आधार पर सरकारी भूमि का आवंटन किया जाएगा। ऊंची कीमतों वाले भवनों अथवा वाणिज्यिक विकास से अर्जित होने वाले राजस्व से इस सेगमेंट के लिए सब्सिडी दी जाएगी। इसी का एक पीपीपी विकल्प वार्षिकी आधारित रियायती आवास योजना है, जिसके अनुसार सरकार के स्थगित वार्षिकी भुगतान के सापेक्ष बिल्डर निवेश करेंगे। बिल्डरों को भूमि का आवंटन यहां आवास निर्माण की यूनिट लागत पर आधारित है।
केंद्र सरकार की ओर से आम जनता को सस्ते एवं शीघ्र समय में मकान उपलब्ध हो सके इसके लिए चौथे विकल्प के रूप में वार्षिकी सह-पूंजी अनुदान आधारित किफायती आवास को चुना है, जिसके अंतर्गत वार्षिकी भुगतान के अतिरिक्त बिल्डरों को एकमुश्त भुगतान के रूप में परियोजना लागत के एक हिस्से का भुगतान किया जा सकता है। वहीं प्रत्यक्ष संबंध स्वामित्व वाले आवास के अंतर्गत प्रमोटर सीधे खरीदार के साथ सौदा करेंगे और लागत राशि वसूलेंगे। दूसरी तरफ सार्वजनिक भूमि का आवंटन आवास निर्माण की यूनिट लागत पर आधारित है।सरकार ने जो अपना अंतिम पीपीपी विकल्प चुना है वह है प्रत्यक्ष संबंध किराये वाले आवास । वस्तुत: इससे सरकारी भूमि पर निर्मित आवासों से प्राप्त किराया आमदनी के जरिए बिल्डरों द्वारा लागत की वसूली किया जाना संभावित है।
यहां निष्कर्ष रूप से समझ सकते हैं कि सरकारी भूमि आधारित इन छह पीपीपी मॉडलों के अंतर्गत लाभार्थी प्रति मकान 1.00 लाख से लेकर 2.50 लाख रुपये तक की केन्द्रीय सहायता पा सकते हैं। वसतुत: देखाजाए तो आवास संबंधी इस निर्णय से देश के हर उस व्यक्ति को लाभ होगा जो अपना छोटा सा आशियाना चाहता है। इस निर्णय के बाद अब कहा जा सकता है कि सरकार ने आज अनेक तरह की रियायतों और प्रोत्साहनों के जरिए अनुकूल स्थितियां रियलस्टेट क्षेत्र में भी बना दी हैं।
यहां पुनश्च शशि कपूर को रोटी, कपड़ा और मकान फिल्म के जरिए याद करते हुए कहना होगा कि वह जो कहता है, वह आज देशभर में जीएसटी जैसे कानून और उसके अनुपालन में आम जनता पर भी हूबहू लागू हो रहा है। इससे जनता जनार्दन को मिलनेवाले लाभ को जोड़कर भी देखा जा सकता है। देश में एक टैक्स-एक देश-एक मार्केट का सपना भले ही यर्थाथ हो रहा है लेकिन इसके विरोध में स्वर अभी भी तेज हैं। कारण लोगों के मन में कई तरह के कन्फ्यूजन का होना तथा टैक्स के सिस्टम में एकदम से आया बदलाव है। परन्तु इसी के साथ सच यह भी है कि भारत सरकार के पास अब पहले जैसी धन की कोई कमी नहीं रही है। आमजन का पैसा उसके पास टैक्स के रूप में कई स्तरों पर तेजी के साथ पहुंच रहा है, यह अंतर पूर्व की तुलना में इतना अधिक है कि देश में चहुंओर होनेवाले द्रुत गति से विकास की सहज कल्पना की जा सकती है, इससे इस बात के लिए भी पूरी तरह से आशान्वित हुआ जा सकता है कि भविष्य में भारत का विकास बहुत तेजी से होगा, जिसके लक्षण इस एक निर्णय से भी सीधेतौर पर दिखाई दे रहे हैं, रोटी के बाद आवास देश के हर नागरिक की पहली जरूरत जो है।