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बढ़ सकते हैं जरूरी दवाओं के दाम

Update: 2017-06-15 00:00 GMT

नई दिल्ली| अगले महीने से गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स लागू होने के बाद से जरूरी दवाओं की कीमत 2.29 फीसदी तक बढ़ सकती हैं। सरकार ने ज्यादातर जरूरी दवाओं की कीमत पर 12 फीसदी जीएसटी रेट तय किया है। इन दवाओं पर टैक्स की मौजूदा दर तकरीबन 9 फीसदी है। हालांकि, इंसुलिन जैसी चुनिंदा दवाओं की कीमतों में गिरावट भी हो सकती है। दरअसल, सरकार ने इस पर जीएसटी रेट को पहले के 12 फीसदी की प्रस्तावित दर से घटाकर 5 फीसदी कर दिया है। जरूरी दवाओं की नैशनल लिस्ट में हेपारिन, वारफारिन, डिल्टियाजेम, आइबूप्रोफेन आदि शामिल हैं। ड्रग प्राइस रेग्युलेटर नैशनल फामार्सूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) पहले ही एक नोटिफिकेशन जारी कर चुका है। इस नोटिफिकेशन में उसने कहा है कि एमआरपी पर एक्साइज ड्यूटी लगने से तय दवाओं की कीमतों का आकलन मौजूदा अधिकतम कीमत पर 0.955905 फैक्टर लागू करने के बाद होगा।

यह ऐप्लिकेबल जीएसटी रेट को छोड़कर होगा। एनपीपीए के मुताबिक, एक्साइज ड्यूटी से छूट पाने वाले शेड्यूल्ड फॉम्युर्लेशंज, उनकी मौजूदा एमआरपी और नोटिफाइड प्राइस की भी नई सीमा होगी।

एनपीपीए के मुताबिक, नॉन शेड्यूल्ड फॉम्युर्लेशंज के मामले में अगर एमआरपी 10 पर्सेंट की तय सीमा से परे जाती है, तो कंपनियों के पास नेट बढ़ोतरी को बर्दाश्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। हालांकि, रेग्युलेटर को इस बात का भरोसा है कि फार्मा इंडस्ट्री बिना किसी बड़ी दिक्कत के नए टैक्स सिस्टम को अपनाने की स्थिति में होगी। इस संस्था के चेयरमैन भूपिंदर सिंह ने बताया, 'मुझे इस बात का भरोसा है कि जीएसटी पर अमल में कमोबेश कोई बाधा नहीं आएगी और इससे देश में दवाओं की उपलब्धता में किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी।'

इंसुलिन जैसी दवाओं के मामले में जहां जीएसटी रेट को प्रस्तावित 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया है, तो कंपनियों को एमआरपी घटाने की जरूरत होगी। एनपीपीए का कहना है कि लोअर टैक्स रेट के कारण बचत के मामले में ऐंटी-प्रॉफिटियरिंग क्लॉज के तहत इसका फायदा कंज्यूमर्स तक पहुंचाया जा सकता है।

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