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आधुनिकता के दौर में खो गये मजदूर व यूनियन के नारे

Update: 2017-05-02 00:00 GMT

मथुरा। हर ओर जुल्म के टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है। हम मजदूर भाई-भाई, लड़कर लेंगे पाई-पाई, दुनिया के मजदूरों एक हों, मजदूर एकता  जिंदाबाद। कर्मचारियों के आंदोलन और हड़ताल में इस तरह के नारे अक्सर सुनने को मिल जाया करते थे। मगर आधुनिकता के इस दौरान में मजदूर व उनकी यूनियन के नारे कहीं खो गए हैं। अब तो यह भी नहीं पता कि मजदूर दिवस क्या है?

मजदूर दिवस के मौके पर सोमवार को जिलेभर में लकीर पीटी गई। रोजाना की तरह ही मजदूर अपने-अपने घरों से निकले, दिनभर मजदूरी की और फिर घरों को चले गए। हम लोग तो सालोंभर काम करते हैं। जिस दिन गाँव में काम नहीं मिलता है, बस उसी दिन हमारी छुट्टी होती है। यह जवाब था कि जरैलिया गांव की महिला मजदूर कमलावती (40 वर्ष) का, जब उनसे मजदूर दिवस के दिन होने वाली छुट्टी के बारे में पूछा गया।

इसी प्रकार ठेला चलाने वाले रईस खां ने बताया कि वे सुबह से काम की जुगाड़ में चौराहे पर आ जाते हैं। जहां दिनभर में 100-200 रुपए आते हैं। इस राशि में भी उनके परिजनों का भरण-पोषण समुचित तरीके से नहीं हो पाता है। वे कहते हैं- योजनाएं क्या हैं मुझे नहीं पता। कुछ इसी तरह का कहना था मुड़ैसी गांव के अनिल कुमार का। अनिल ने बताया कि उन्हें नहीं पता सरकार की क्या योजनाएं हैं, हमें तो बस अपनी मजदूरी से मतलब है, जो हमें करनी ही है। महारामगढी के निवासी मजदूर रामकिशन ने दो टूक जबाव दिया, ये मजदूर दिवस क्या है? उन्होंने कहा भैया हमें नाहिं पतौ मजदूर दिवस कब हौवे? हम तो बस ई जानि कि शाम को चूल्हौं जरनौ है तो मजदूरी करवे जानौ है। मजदूर दिवस के मौके पर जिले भर में लकीर पीटी गई। कुछेक जगह कार्यक्रम हुए, जिनमें मजदूर हितों में लंबी-चौड़ी घोषणाएं की गई।

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