आंख बंद कर बैठे हैं परिवहन विभाग के रिश्वतखोर, मौत को न्यौता दे दौड़ रही हैं स्लीपर कोच

Update: 2017-04-23 00:00 GMT

ग्वालियर| वाणिज्यकर चोरी करने के उद्देश्य से शहर के कई व्यापारी अपना कपड़ा, दबा, जूता और मोबाइल पाटर््स आदि का कारोबार ट्रक अथवा ट्रेन के स्थान पर अवैध रूप से स्लीपर कोच बसों से धड़ल्ले से कर रहे हैं। खास बात यह है कि रिश्वतखोरी के चलते न तो परिवहन विभाग के अधिकारी इस ओर ध्यान देना चाहते और न ही वाणिज्यकर विभाग के अधिकारियों को यह दिखाई दे रहा है।

ग्वालियर से इंदौर, भोपाल, जबलपुर, रीवा, सतना, सागर, छतरपुर के अलावा प्रदेश के बाहर जयपुर, आगरा, कानपुर, झांसी आदि शहरों के बीच प्रतिदिन करीब  सैकड़ा से अधिक बसें संचालित हो रही हैं। हर दिन शाम 7 से 11 बजे के बीच रवाना होने वाली और सुबह करीब 4 से 9 बजे के बीच वापस लौटने वाली इन बसों में यात्रा करने वाली सवारियों पर हर समय जान का खतरा मंडराता रहता है। खास बात यह है कि इन बसों का संचालन फर्जी परमिटों के आधार पर परिवहन विभाग के रिश्वतखोर अधिकारियों द्वारा अवैध तरीके से कराया जा रहा है। इन बसों के अवैध संचालन की जानकारी परिवहन आयुक्त सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को भी है और क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी को भी, लेकिन इन बसों पर कार्रवाई के बजाय इन्हें संरक्षण देकर धड़ल्ले से चलवाया जा रहा है। परिवहन चैक पोस्टों पर इन बसों से सिर्फ अवैध वसूली ली जाती है। इन बसों पर भरे सामान की पूछताछ के लिए न तो परिवहन विभाग के अधिकारी कभी कार्रवाई करते न ही परिवहन चैक पोस्टों पर इनसे छतों पर लदे सामान के बारे में पूछा जाता। इन बसों के अवैध संचालन और माल के परिवहन से जहां व्यापारियों और बस संचालकों को भरपूर फायदा हो रहा है तो परिवहन विभाग के इन घूसखोर अधिकारियों की जेबें भी भरी जाती हैं। इससे नुकसान है तो सिर्फ शासन के खजाने को, जिस पर परिवहन और वाणिज्यकर विभाग के अधिकारी और बस संचालक मिलकर डाका डाल रहे हैं। खतरा है तो इन बसों में बैठी और लेटी सवारियों को, जिन्हें अंदाजा भी नहीं होता है कि रिश्वतखोरी के चलते परिवहन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें मौत के मुंह में सुलाया होता है। धारा 88 (8) अथवा धारा 88(8)(1) के तहत स्पेशल अथवा टूरिस्ट परमिट के आधार पर प्रदेश और अन्य राज्यों के बीच अवैध रूप से माल और सवारियों का परिवहन कर रहीं इन स्लीपर कोच बसों के संचालन और कार्रवाई के संबंध में परिवहन आयुक्त शैलेन्द्र श्रीवास्तव और क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी एस.पी.एस चौहान से प्रतिक्रिया लेने के लिए उन्हें मोबाइल लगाया, लेकिन दोनों ही अधिकारियों ने फोन नहीं उठाया। परिवहन आयुक्त को मोबाइल वॉट्सअप पर सम्पूर्ण जानकारी भेजी तथा संदेश के माध्यम से अथवा फोन पर उनसे प्रतिक्रिया देने का अनुरोध किया गया। उन्होंने संदेश पढ़ा भी लेकिन प्रतिक्रिया नहीं दी।  

सवारी किराया सस्ता, मालभाड़ा महंगा
प्रदेश के विभिन्न शहरों के बीच संचालित स्लीपर कोच बसों को सवारियों की चिंता नहीं होती है। कई बसें तो 10-15 सवारियां लेकर पांच-छह सौ किलोमीटर का सफर रातों-रात पूरा करती हैं। इंदौर और भोपाल जैसे शहरों के बीच स्लीपर कोच का किराया कम से कम 500 रुपये है, लेकिन इन बसों में सिर्फ 200 रुपये में स्लीपर कोच की सुविधा मिल जाती है। ऐसा इसलिए संभव हो पाता है कि इन बसों को सवारियों के लिए चलाया ही नहीं जा रहा है, बल्कि इन बसों की छतों पर प्रतिदिन लादे जा रहे 15-20 लाख रुपये कीमत के 3-4 टन माल से इस घाटे की भरपाई हो जाती है। खास बात यह है कि इन बसों पर भाड़ा ट्रकों की अपेक्षा अधिक होता है, फिर भी वाणिज्यकर की चोरी कर रहे व्यापारी इन बसों का महंगा भाड़ा देने के लिए राजी होते हैं। सूत्र बताते हैं कि इन बसों पर लदे कपड़ों के थान के प्रति 80 किलो बजन का किराया 300 रुपये होता है। जबकि दवाईयां और जूतों के किराए की दर इससे अधिक होती है।

पार्सल की रसीद पर भेजा जा रहा है लाखों का माल
परिवहन और वाणिज्यकर अधिकारियों से सांठगांठ कर स्लीपर बसों के माध्यम से बड़े स्तर चल रहे अवैध व्यापार जारी हैं। सूत्र बताते हैं कि बसों से सर्वाधिक कपड़ा, दवाईयां, जूता, घड़ी, मोबाइल पाटर््स आदि का अवैध कारोबार बड़े स्तर पर चल रहा है। बसों पर चल रहे इस व्यापार में सभी प्रकार के करों की चोरी की जा रही है। चूंकि जिम्मेदार दोनों ही विभागों के अधिकारी रिश्वत के लालच में आंख बंद किए बैठे हैं, इस कारण यह अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है।  

इनका कहना है

‘‘बसों की हम समय-समय पर जांच करते हैं। सवारियों की असुविधा के कारण निरंतर जांच नहीं हो पाती है। आपने संज्ञान में लाया है तो शीघ्र ही हम इन बसों की जांच कर कार्रवाई करेंगे। ’’

बी.एस.भदौरिया
उप आयुक्त वाणिज्यकर ग्वालियर

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