नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट ने धार्मिक भावनाएं भडक़ाने से जुड़ी कानून की धारा 295 के गलत इस्तेमाल पर चिंता जाहिर की है। कोर्ट ने कहा है कि अनजाने में या गलती से अगर कोई शख्स धर्म का अपमान कर बैठता है तो उसके खिलाफ मामला नहीं चलाया जाना चाहिए, क्योंकि यह कानून का दुरुपयोग है। धार्मिक भावनाओं को भडक़ाने से जुड़ी इस सेक्शन के तहत आरोप साबित होने पर कम से कम तीन साल की सजा हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘अनचाहे तरीके से, लापरवाही में या बिना किसी खराब मंशा के अगर धर्म का अपमान होता है या किसी वर्ग विशेष की धार्मिक भावनाएं भडक़ती हैं तो यह काम कानून की इस धारा के अंतर्गत नहीं आता।’
क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने खुद पर लगे धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप के मामले में केस चलाए जाने को चुनौती दी थी। मामला 2013 का है, जब उन्हें एक बिजनस मैगजीन के कवर पेज पर ‘भगवान विष्णु’ के तौर पर दिखाया गया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ताजा राय से निश्चित तौर पर उन लोगों, खास तौर पर सार्वजनिक छवि वाले लोगों के हितों की रक्षा होगी, जो अक्सर राजनीतिक कार्यकर्ताओं और जानबूझकर निशाना बनाने वालों के शिकार हो जाते हैं। इससे पहले, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के मामले में इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट 2000 के सेक्शन 66ए को खत्म करके भी सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया यूजर्स को बड़ी राहत दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी के सेक्शन 295्र की सीमाओं को लेकर भी टिप्पणी की। बता दें कि कानून की यह धारा कहती है कि ‘जानबूझकर दुर्भावना से भरी हुई हरकतों से धार्मिक भावनाओं को भडक़ाना या किसी वर्ग विशेष का धर्म या उसके धार्मिक विश्वास के आधार पर अपमान करना’ अपराध के दायरे में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने 1957 में एक फैसला दिया था, जिसके मुताबिक बिना गलत नीयत के धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने के मामले पर किसी शख्स पर सेक्शन 295्र का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हालांकि, इस धारा के लगातार गलत इस्तेमाल की वजह से सुप्रीम कोर्ट को एक बार फिर इसकी कानूनी स्थिति या दायरे को लेकर स्थिति साफ करनी पड़ी है।