अंतिम सांसें लेता बिलौआ का पान कारोबार

Update: 2017-03-28 00:00 GMT

पानी की कमी और अधिकारियों की लापरवाही से

ग्वालियर| पान की खेती और इस कारोबार के लिए देशभर में प्रसिद्ध ग्वालियर का पान कारोबार इन दिनों अंतिम सांसें गिन रहा है। इस खेती के संरक्षण के जिम्मेदार उद्यान विभाग के अधिकारियों की लापरवाही और पानी की भारी कमी के चलते यहां पान की खेती 10 प्रतिशत भी नहीं बची है। सरकार द्वारा जल्द ही इसे बचाने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया गया तो बिलौआ में पान की खेती पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।

विगत कई दशकों से ग्वालियर जिले के बिलौआ गांव को पान कारोबार के कारण जाना पहचाना जाता रहा है। पानी की पर्याप्त उपलब्धता के रहने तक इस गांव के चौरसिया समाज के किसान बिना किसी सरकारी सहायता के पान की खेती कर अपने परिवार का भरण पोषण करते रहे हैं। इस गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि बिलौआ का पान देशभर के कौने-कौने में जाता था तथा यहां का पान अपनी गुणवत्ता के कारण जाना पहचाना जाता रहा है। बिलौआ गांव की बस्ती से सटे अधिकांश खेतों में वर्षों पूर्व पान की खेती के लिए तैयार की गर्इं पत्थर की ऊंची-ऊंची दीवारें यहां के समृद्ध देशी पान के कारोबार को उल्लेखित करती हैं। अधिकांश किसानों ने पानी की कमी के चलते इस खेती से दूरी बना ली है, लेकिन प्रतिकूल परस्थितियों के बावजूद जो किसान इस खेती को जिंदा रखे हैं। वह सरकार से गुहार कर रहे हैं कि बिलौआ में इस खेती को बचाने के लिए पानी की उचित व्यवस्था की जाए। जिससे यहां मृतप्राय हो चुकी पान की खेती फिर से जीवित हो सके।

पान के बरेजों में उगा रहे हैं सेम
पर्याप्त पानी की उपलब्धता से उगने वाले पान को पानी की कमी के चलते नहीं उगाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में आधे-अधूरे बने पान के बरेजों में बिलौआ के अधिकांश किसानों  ने सेम की खेती की है। हालांकि सेम की खेती से उतना लाभ किसानों को नहीं मिला है, जितना इन्हें परंपरागत खेती पान से मिल पाता था।

नहर से जुड़ जाए तालाब तो पानी ही पानी
जौरासी घाटी के बीच से हरसी उच्च स्तरीय नहर परियोजना निकली है। इस नहर के माध्यम से ग्वालियर एवं भिण्ड जिले के सैकड़ों गांव और किसान लाभान्वित हो रहे हैं। जौरासी घाटी के ठीक पीछे स्थित बिलौआ से इस नहर की दूरी लगभग 2 किमी भी नहीं हैं। साथ ही इस ओर ढलान भी मौजूद है। ऐसी स्थिति में अगर हरसी नहर से पाइप लाइन के माध्यम से अथवा वितरक (डिस्टीव्यूटरी) नहर के माध्यम से गांव के तालाब को भरने की व्यवस्था सरकार करे तो इस गांव के किसानों को तो लाभ मिलेगा ही, पेयजल के लिए परेशान ग्रामीणों को भी पर्याप्त पानी मिल सकेगा।

जड़ों को आज भी परम्परागत पोषण
मुंह में रखते ही छार-छार हो जाने वाले पान की खेती बिलौआ सहित ग्वालियर जिले के तीन अन्य गांव संदलपुर (आंतरी), बराई और पनिहार (घाटीगांव) में भी की जाती है। सभी जगह खेती का तरीका परंपरागत ही है। आज भी किसान देशी छप्पर और लकड़ी के खम्बों का उपयोग कर रहा है। विशेष प्रकार का मटका कंधे पर रखकर क्यारियों को सींचता है। पान के खाद के रूप में सरसों, तिल्ली और अंडी के तेल और पीना को समय-समय पर डाला जाता है। सबसे खास बात यह कि जड़ों में मट्ठा डालने की कहावत यहां उल्टी नजर आती है। पान की खेती को जिंदा रखने के लिए मट्ठा और दही का पोषण भी पान की जड़ों को देना पड़ता है। इसके अलावा पौध रोपण से पूर्व कुछ रासायनिक दवाओं का उपयोग भी किया जाने लगा है। होली के आसपास रोपी जाने वाली पौध को आरंभिक तीन महीनों तक प्रतिदिन तीन बार पानी, चौथे माह के बाद हर 2-3 दिन में पानी उपलब्ध कराना होता है। पान की पौध को ज्यादा हवा, गर्मी और सर्दी से बचाने के लिए चारों ओर पत्थरों की दीवार और ऊपरी हिस्से पर छप्पर तैयार किया जाता है। मुख्य द्वार हवा रहित बनाया जाता है।

अधिकारी खा गए अनुदान
शासकीय योजनाओं की जानकारी के अभाव में उद्यान विभाग के अधिकारी बंदरबांट कर उनके हिस्से का अनुदान खा जाते हैं। विगत कई वर्षों से बंदरबांट का यह खेल चल रहा है। इस बार भी जिले के करीब सवा सौ किसानों का पंजीयन किया गया है। लेकिन किसानों को बहुत कम मात्रा में मैटी (शैड नेट) के अलावा कुछ भी नहीं दिया गया है। जबकि पान बरेजा अनुदान योजना के अंतर्गत 42 हजार रुपये किसानों के खाते में दिए जाने हैं, जिससे किसानों को खुद ही आवश्यक सामग्री की खरीदी करनी है।

इनका कहना
‘बिलौआ में पानी की उपलब्धता के लिए हरसी उच्च स्तरीय नहर परियोजना की नहर से पानी को उपलब्ध कराने का कोई प्रस्ताव मेरे संज्ञान में लाया जाता है तो तुरंत इसके सर्वे के लिए अधिकारियों को कहूंगा। ’

नरोत्तम मिश्रा   
मंत्री-जल संसाधन विभाग, म.प्र. शासन

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