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कितने तरह के होते हैं इंसान

Update: 2017-03-10 00:00 GMT

एक बार परमहंसदेव अपने शिष्यों के साथ नदी किनारे टहल रहे थे। उन्होंने देखा कि मछुआरे जाल फेंककर मछलियों को पकड़ रहे थे। गुरुजी वहां खड़े होकर इस पूरे घटनाक्रम को गौर से देखने लगे। जाल में कुछ मछलियां निश्चल पड़ी थीं। दूसरी तरह की मछलियां उससे निकलने की कोशिश कर रही थीं। और तीसरी तरह की मछलियां जाल से निकलकर नदी में जलक्रीड़ा कर रही थीं।

तब परमहंस जी ने शिष्यों से कहा, जिस तरह मछलियां तीन तरह की होती है, ठीक उसी तरह इंसान भी तीन तरह के होते हैं। पहले तरह के इंसानों की आत्मा ने बंधनों को स्वीकार कर लिया है। वो इससे निकलने तक का विचार नहीं करते। दूसरे तरह के इंसान प्रयास तो करते हैं लेकिन वो इंस जाल से नहीं निकल पाते। और तीसरे तरह के इंसान प्रयास करते हैं और इस जाल से निकल जाते हैं।

तभी एक शिष्य ने विनम्रता से कहा, गुरुजी चौथे तरह का इंसान भी होता है। और वो इस जाल के नजदीक ही नहीं जाता। गुरुजी ने कहा तुम सही कहते हो। इंसान अगर ये ठान ले कि उसे कुछ कर गुजरना है तो वो यह कर सकता है। ये आसान है। ठीक उस तरह की मछलियों की तरह जो प्रयास करती हैं और जाल से बाहर निकल आती हैं।a

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