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हमारी मातृभाषा ही संस्कृति की अभिव्यक्ति का माध्यम

Update: 2017-02-22 00:00 GMT

खतरे में हमारी भाषाएं,बचाने की आवश्यकता
‘स्वदेश’ में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आयोजित हुआ संगोष्ठी का आयोजन

ग्वालियर| मातृभाषा हमारी मां के समान है, जिससे किसी दूसरी भाषा की तुलना नहीं हो सकती है। समाज, संस्कृति व अपनी मूल प्रकृति में वही भाषा मातृभाषा होती है, जो नवजात जन्म के साथ अंगीकार करता है। मातृभाषा को आत्मसात करने से ही दूसरी भाषाओं में हम ज्ञान अर्जित कर सकते हैं, इसलिए हमें सभी भाषाआें का ज्ञान लेना आवश्यक है,ताकि हम अपनी मातृभाषा को बचाकर उसको संरक्षित कर सकें।  भारत में 16 हजार भाषाएं थीं,लेकिन आज के समय में मात्र कुछ ही भाषाएं प्रचलन में हैं। हमें विलुप्त होती जा रही भाषाओं को बचाना बहुत ही जरूरी है इससे आने वाली पीढ़ी भी मातृभाषा के बारे में समझेगी और आत्मसात करेगी। अवसर था स्वदेश कार्यालय में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर संगोष्ठी के आयोजन का। संगोष्ठी में हिन्दी,ऊर्दू और मराठी भाषा के विद्वानों ने मातृभाषा पर अपने विचार प्रकट किए और पुरजोर अंदाज में कहा कि अन्य भाषाओं के प्रचलन के कारण हमारी लोक भाषाएं चलन से बाहर होती जा रही हैं। विद्वानों ने मांग की कि मातृभाषा को बचाने शाब्दिक योजना की नहीं अपितु धरातल पर लाने की इस समय महती जरूरत है। संगोष्ठी में शामिल हुए सभी विद्वानों ने यह भी मत रखा कि स्वदेश मातृभाषा के संरक्षण की परम्परा को अपने प्रयास से जीवित रख सकता है बस आवश्यकता है थोड़ा ध्यान देने की। संगोष्ठी में स्वदेश के समूह संपादक अतुल तारे ने सभी को आश्वस्त किया कि इस दिशा में स्वदेश अपनी महत्वपूर्ण भूमिका आप सभी के सहयोग से निभाएगा।

भाषाओं की हो रही दुर्दशा: डॉ.सत्या
संगोष्ठी में शिक्षाविद् डॉ.सत्या शुक्ला ने कहा कि आज के समय में हमारी मातृभाषा की दुर्दशा हो रही है। हिन्दी हमारी समर्थ भाषा है ,लेकिन नई पीढ़ी हिन्दी के प्रति समर्पित नहीं है। इससे हमारी भाषा का क्षरण हो रहा है। अंग्रेजी भाषा के पीछे युवा वर्ग अपनी हिन्दी को समझने और जानने का प्रयास नहीं करते हैं। इससे मातृभाषा को आगे बढ़ने में योगदान नहीं मिल पा रहा है। हमें इसे बचाने मिलकर प्रयास करना होंगे।

सभी भाषाएं सुंदर:रिफअत
राष्टÑवादी शायर नसीम रिफअत ने कहा कि भारत में जितनी भी भाषाएं हैं वे सभी बहुत सुंदर हैं। जहां तक मातृभाषा का प्रश्न हैं तो उसके साथ हमारा व्यवहार ठीक नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमें शब्द उच्चारण का सही ज्ञान नहीं है। ऊर्दू भाषा का जन्म भारत में हुआ है। आज भी भारतवासी हिन्दी-ऊर्दू की मिश्रित भाषा को अपनी बोलचाल की भाषा में रोजाना प्रयोग करते हैं,पर हमें यह मालूम नहीं होता है कि बोली जा रही भाषा की उत्पत्ति हिन्दी है या ऊर्दू। श्री रिफअत ने कहा कि हम हिन्दी भाषा के साथ न्याय नहीं करते हैं।

बच्चों को भाषा का ज्ञान जरूरी: शुक्ला
साहित्यकार माताप्रसाद शुक्ला ने संगोष्ठी में अपने विचार रखे कि आज के समय में नई पीढ़ी को भाषा और शब्दों का ज्ञान नहीं है। हमें आगे आकर मातृभाषा को बचाने के लिए एक मुहिम चलाने की आवश्कता है जिसमें हिन्दी के प्रचलित शब्द,मुहावरे,लोकोक्ति और इनसे जुड़ी संस्कृति को हम सांझा कर सभी को इसके बारे में बता सकें और इनका प्रचार कर मातृभाषा को एक विस्तारित रूप दे सकें।

भाषाओं को आत्मसात करना जरूरी: श्रीवास्तव
शिक्षाविद् डॉ.अनामिका श्रीवास्तव ने कहा कि आज के दौर में सभी भाषाओं के ज्ञान को आत्मसात करना जरूरी है,ताकि हमें इसका लाभ मिल सके,लेकिन भाषा को समझने के लिए उसकी तकनीकी को जानना और प्रयोग करना यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने संस्कृत भाषा के बारे में कहा कि मैं अपने बच्चों से संस्कृत भाषा का ज्ञान ले रही हूं।

भाषा की महत्ता समझना जरूरी:पचौरी
विचारक और वक्ता उमाशंकर पचौरी ने कहा कि हमें अपनी भाषा की महत्ता को लोगों से रूबरू कराने की आज के समय में बहुत आवश्यकता है। हमारी मातृभाषा में पूरे भारत की संस्कृति का समावेश है। हमें वर्णमाला की ताकत को सभी को बताना चाहिए ताकि भारत का विशाल इतिहास सभी को मालूम हो सके। श्री पचौरी ने कहा कि अपनी मातृभाषा को लेकर हमें मिलकर प्रयास करना होगा तभी हम इस दिशा में आगे बढ़ सकेंगे।

व्याकरण पर चर्चा जरूरी:ओझा
शिक्षाविद् डॉ.रामवरण ओझा ने अपना अभिमत दिया कि आज हम भाषाआें के उत्थान के बारे में चर्चा तो करते हैं लेकिन व्याकरण पर चर्चा करना उचित नहीं समझते हैं। आज हम देखते हैं कि हिन्दी के प्रचलित शब्द हमारी आम बोलचाल  की भाषा से लुप्त होते जा रहे हैं। इसके लिए हमें एक साथ मिलकर स्वयं की भूमिका को आत्मसात करने के बाद कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा के ज्ञान के लिए हमारी व्याकरण पर पकड़ होना जरुरी है

ज्ञान के लिए मराठी भाषा जरूरी:लघाटे
मराठी भाषा के क्षेत्र में कार्य कर रहे चन्द्र प्रकाश लघाटे ने कहा कि पहले के समय में ग्वालियर के कई स्कूलों में मराठी भाषा का ज्ञान कराया जाता था,पर आज की स्थिति देखकर हमें ये लगता है कि मराठी भाषा का ज्ञान किसी भी विद्यालय में नहीं कराया जा रहा है। जबकि मराठी भाषा ज्ञान के लिए होना बहुत आवश्यक है। शासन को हमारी सभी भाषाओं के उत्थान के लिए विशेष प्रयास करना होंगे तभी हम अपनी मातृभाषा को बचा सकते हैं।

 

 

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