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इधर सर्व शिक्षा अभियान, उधर ढोल बजा रहा है बचपन

Update: 2017-02-17 00:00 GMT

मैं स्कूल जाऊंगा तो घर का खर्चा कौन चलाएगा

ग्वालियर| स्कूल शिक्षा विभाग एक तरफ जिले में सर्व शिक्षा अभियान चला रहा है तो दूसरी तरफ बचपन ढोल बजाने को विवश है। ऐसे ही दो छोटे-छोटे बच्चे गुरुवार को रेसकोर्स रोड पर आयोजित एक स्वागत कार्यक्रम में ढोल बजाते दिखे। इन बच्चों से ‘स्वदेश’ ने पूछताछ की तो सर्व शिक्षा अभियान की जमीनी सच्चाई सामने आ गई।

इन दो बच्चों में से एक 13 वर्षीय राजेश पुत्र स्व. कालीचरण वंशकार आज तक कभी स्कूल नहीं गया है, जबकि स्कूल शिक्षा विभाग हर साल सर्व शिक्षा अभियान चलाकर छह से चौदह साल तक के शत प्रतिशत बच्चों का स्कूलों में प्रवेश कराने का दावा करता है। राजेश से जब स्कूल नहीं जाने का कारण पूछा गया तो उसका कहना था कि वह स्कूल जाएगा तो उसके घर का खर्च कौन चलागा। वह हजीरा स्थित फल के एक गोदाम में काम करता है, जहां से उसे हर माह तीन हजार रुपए मिलते हैं, जिससे उसके परिवार का भरण-पोषण चलता है। इसके अलावा वह कार्यक्रमों में ढोल बजाने का काम भी करता है। एक कार्यक्रम में ढोल बजाने के बदले में उसे 100 से 150 रुपए मिल जाते हैं।

एक साल की उम्र में ही गुजर गए थे माता-पिता:- बालक राजेश के छोटे से जीवन की कहानी काफी दु:ख भरी है। उसका पिता मूक बधिर और मां मिर्गी रोग से पीड़ित थी।

          राजेश जब एक साल का था तभी उसके माता-पिता का निधन हो गया था। इसके बाद राजेश को उसकी नानी शांति बाई ने पाला। तब से वह अपनी नानी के साथ लाइन नम्बर-2 हजीरा स्थित बाबू कोरी के मकान में किराए से रहता है। उसके परिवार में नानी के अलावा और कोई नहीं है।

नानी को अकेला नहीं छोड़ सकते
स्वदेश प्रतिनिधि ने राजेश को बताया कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत उसे सरकारी छात्रावास में प्रवेश मिल सकता है, जहां उसकी पढ़ाई, रहने, खाने और कपड़े आदि का पूरा खर्च सरकार उठाएगी। इस पर उसका कहना था कि वह अपनी नानी को अकेला छोड़कर नहीं जा सकता क्योंकि उसकी नानी काफी वृद्ध है, उसकी आय का कोई साधन नहीं है, उसे पूर्व में शासन से पेंशन के रूप में जो 250 रुपए मिलते थे, वो भी बंद हो गए हैं। 

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