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सस्ते गेहूं का आयात बढ़ेगा !

Update: 2017-12-06 00:00 GMT

नई दिल्ली। सस्ते गेहूं का आयात बढ़ने से घरेलू जिन्स बाजार डगमगाने लगा है। कीमतें पिछले साल के समर्थन मूल्य से भी नीचे बोली जा रही हैं। चालू रबी सीजन में एम.एस.पी. और बढ़ा दिया गया है जिससे सस्ते गेहूं का आयात और बढ़ सकता है। जिन राज्यों में गेहूं पैदा नहीं होता है, वहां सस्ता आयात पहले से ही तेजी पकड़ रहा है जबकि सरकारी एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) के गोदाम गेहूं से ठसाठस भरे हुए हैं। खुले बाजार में गेहूं बेचने की निगम की योजना फ्लाप हो गई है।

खुले बाजार में गेहूं बेचने की एफ.सी.आई. की योजना (ओ.एम.एस.एस.) का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है। उधर, गेहूं के आयात पर मात्र 10 प्रतिशत का सांकेतिक शुल्क लगाया गया है। वैश्विक बाजार में गेहूं की पर्याप्त उपलब्धता और मांग में कमी होने की वजह से कीमतें सतह पर हैं। यही वजह है कि उपभोक्ता राज्यों में गेहूं की मांग को सस्ते आयात से पूरा किया जा रहा है। इसका खमियाजा घरेलू बाजार को भुगतना पड़ रहा है। गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में कीमतें 1400 से 1500 रुपए प्रति किवंटल बोली जा रही हैं जबकि पिछले साल का एम.एस.पी. 1625 रुपए है। ऐसे में अच्छे दाम की आस में बैठे गेहूं किसानों को बाजार का समर्थन न मिलने से बहुत नुक्सान हो रहा है।

पिछले रबी सीजन में गेहूं की पैदावार सर्वाधिक 9.6 करोड़ टन रही है। उसी के अनुरूप सरकारी एजैंसियों ने गेहूं की खरीद भी जमकर की है। पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश की तर्ज पर पहली बार उत्तर प्रदेश ने भी जमकर सरकारी खरीद की है। इसके चलते सरकारी गोदाम भर गए लेकिन सरकारी खरीद कुल पैदावार के मुकाबले 20 प्रतिशत से थोड़ी अधिक ही हो पाती है। बाकी गेहूं खुले बाजार में ही किसान अपनी सुविधा और जरूरत के हिसाब से बेचते हैं।

सूत्रों के मुताबिक विभिन्न बंदरगाहों पर अभी तक 15 लाख आयातित गेहूं पहुंच चुका है जबकि इससे कहीं अधिक गेहूं का सौदा हो चुका है जिसका एक बड़ा हिस्सा कभी भी बंदरगाहों पर पहुंच सकता है। गेहूं आयात पर समय रहते अंकुश न लगाया गया तो घरेलू बाजार का हुलिया बिगड़ सकता है।

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