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निंदा का जहर मत उगलो

Update: 2017-10-05 00:00 GMT

ग्वालियर। इस जगत में जिसको आत्मा का, आध्यात्म का ज्ञान नहीं है, अंत:कारण से वैराग्य भाव नहीं है, वह संसार मार्ग पर ही गमन करने वाला है। वह साधक बाह्य प्रपंचों में आनंद मानता है और दूसरे साधकों की प्रशंसा को ग्रहण नहीं कर पाता है। इसी कारण दूसरे साधकों की निंदा करता है। दूसरे के गुणों को ढांकना, दोष प्रकट करना, स्वयं के गुण प्रकट करना और दोष ढांकना असंगत है। यह विचार आचार्य विनिश्चय सागर महाराज ने बुधवार को चातुर्मास आयोजन समिति मुरार द्वारा चिक संतर स्थित जैन धर्मशाला में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि प्रशंसा का रस मत पियो और निंदा का जहर मत उगलो। दोनों में समता का भाव रखो। यही कल्याण का मार्ग है। इस मौके चातुर्मास समिति के मुख्य संयोजक हरिशचन्द्र जैन, मूलचन्द्र जैन, पंकज जैन, सह संयोजक प्रतीक जैन, नवीन जैन, अध्यक्ष इन्द्रेश जैन, संयुक्त मंत्री सचिन जैन आदि उपस्थित थे।

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