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छोटा अधिकारी बड़े को खुश करने में लगा है

Update: 2017-01-12 00:00 GMT

*नौकरशाही के पास डेढ़ माह के मेले के लिए डेढ़ घण्टा भी नहीं
*जनता और व्यापारियों की चिंता किसी को नहीं
*बहुत बदल गया है ग्वालियर का व्यापार मेला


अरूण शर्मा/ग्वालियर।
ग्वालियर का व्यापार मेला पहले के कुछ वर्षों की अपेक्षा बहुत ही बदल गया है। ग्वालियर का यह मेला अब जनप्रतिनिधियों के हाथ में न रहते पूर्ण रूप से नौकरशाही के हाथ में है। पिछले कुछ वर्षों से मेले में देखने में आ रहा है कि नौकरशाही के इस दौर में छोटा अधिकारी बड़े अधिकारी को खुश करने में लगा है और अपनी वाह-वाही लूट रहा है। इन अफसरों को मेला, व्यापारी और जनता की कोई चिंता नहीं है। इसमें सबसे मजे की बात तो यह है कि डेढ़ माह चलने वाले मेले की तैयारियों को यह नौकरशाही मात्र डेढ़ घण्टे की बैठक में इतिश्री पूरी कर रही है। नतीजा यह हो रहा है कि जनप्रतिनिधियों के नहीं होने के कारण मेला गर्त में जा रहा है और सैलानी मेले से निराश लौट रहे हैं। मेले में दूसरे राज्यों की संस्कृति का दूर-दूर तक नामो निशान नहीं है।

आइए बात करें ग्वालियर व्यापार मेले के पूर्व अध्यक्षों से


एक अधिकारी को दूसरे अधिकारी की चिंता है, मेले की नहीं
ग्वालियर व्यापार मेले के पूर्व अध्यक्ष राज चड्ढा ने स्वदेश से चर्चा करते हुए कहा कि आज ग्वालियर का व्यापार मेला नौकरशाही के हाथ में है। इस नौकरशाही में एक अधिकारी को अपने दूसरे अधिकारी को खुश करने की चिंता है न कि मेले के व्यापारी और यहां आने वाली जनता की। श्री चड्ढा ने कहा कि जो लोग जनता से चुनकर आते हैं, उनको जनता की चिंता होती है, वह जनता के लिए ही कार्य करते हैं, लेकिन एक अधिकारी अपने अंक बढ़ाने के लिए अपने से ऊपर के अधिकारी को खुश करने में ही लगा रहता है। यही हाल ग्वालियर व्यापार मेले में हो रहा है। श्री चड्ढा ने बताया कि अधिकारी को पता होता है कि उसकी नौकरी 25 वर्ष के लिए पक्की है, इसलिए उसे किसी की कोई चिंता नहीं होती है, जबकि जनप्रतिनिधि को केवल पांच वर्ष का समय कार्य करने के लिए मिलता है। इस दौरान जन प्रतिनिधि को अपनी जवाबदेही को भी पूरा करना होता है। श्री चड्ढा ने कहा कि मेरी सोच के अनुसार परिवर्तन होते रहना चाहिए। हम एक ही ढर्रे पर किसी चीज को अधिक समय तक नहीं चला सकते हैं।

मेला सूरज कुण्ड और प्रगति मैदान की तर्ज पर लगे:-राज चड्ढा ने कहा कि अगर मेले को ऊंचाइयों तक ले जाना है तो हमें इसमें कुछ परिवर्तन करना होगा। उन्होंने कहा कि मेरी प्रथम सोच के अनुसार हमें इस मेले को सूरज कुण्ड के मेले की तर्ज पर लगाना होगा, जिसमें हस्तशिल्प और पुरानी संस्कृति की झलक यहां आने वाले सैलानियों को देखने के लिए मिले। रही बात इलेक्ट्रोनिक्स वस्तुएं, कपड़े व अन्य वस्तुओं की तो यह हमें हमारे आसपास सहज ही उपलब्ध हो जाती हैं। श्री चड्ढा ने कहा कि सूरज कुण्ड का मेला एक ऐसा मेला है, जिसे देश दुनिया के लोग दूर-दूर से देखने के लिए आते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी दूसरी सोच के अनुसार इस मेले को दिल्ली के प्रगति मैदान की तर्ज पर लगाया जा सकता है तभी यह मेरा ऊंचाइयों को छू सकेगा।
डेढ़ माह के मेले हेतु मात्र डेढ़ घण्टा:-राज चड्ढा ने कहा कि मेले पर नौकरशाही हावी है। देखने में यह आ रहा है कि अफसर डेढ़ माह के मेले के लिए मात्र डेढ़ घण्टा ही दे रहे हैं। ऐसे में मेला कैसा लगेगा। यह सब अच्छी तरह से जानते हैं। उन्होंने कहा कि मेला पहले की अपेक्षा बहुत बदल गया है।

शहर के पुराने लोगों से राय लेकर लगाते थे मेला
ग्वालियर व्यापार मेला के पूर्व अध्यक्ष अनुराग बंसल ने स्वदेश से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेले का इंतजार लोगों को वर्ष भर रहता है। मेला लोगों के मन माफिक नहीं लगे यह सही बात नहीं है। श्री बंसल ने कहा कि हम जब ग्वालियर व्यापार मेले को लगाते थे, उस समय सभी लोगों की राय लेकर मेले को लगाते थे, जिससे मेले में आने वाले सैलानी निराश न हों और अलग-अलग राज्यों की संस्कृति को जान सकें, लेकिन वर्तमान मेले में ऐसा कुछ भी नहीं है। मेले में हमारे समय की शुरू हुई लोकधारा जैसे कार्यक्रम तो आज समाप्त ही हो गए हैं।

हमने ठेका प्रथा को नहीं पनपने दिया:- अनुराग बंसल ने कहा कि हमने मेले में वाहनों की पार्किंग की ठेका प्रथा को पनपने ही नहीं दिया और वाहनों की पार्किंग हमने प्राधिकरण की ओर से करवाई। इसके पीछे हमारी सोच यह थी कि मेले में आने वाले व्यापारी और सैलानियों के साथ वाहनों की पार्किंग को लेकर किसी प्रकार की कोई अभद्रता या लड़ाई न हो सके, लेकिन आज वाहन पार्किंग को लेकर माहौल कुछ और ही है। श्री बसंल ने कहा कि मेले में हर सैलानी अपने परिवार के साथ आता है तो हमारा दायित्व बनता है कि उसे किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो। हमारा यह भी दायित्व बनता है कि सैलानी व उसके परिवार के साथ कहीं कोई अभद्रता नहीं हो जाए।
मेले की छह माह पहले ही तैयारी शुरू हो जाती थी:- अनुराग बंसल ने कहा कि ग्वालियर व्यापार मेले को लगाने के लिए हम छह माह पहले से ही तैयारी शुरू कर देते थे, जिसमें देश के बड़े कलाकारों को बुलाने की तैयारी, सांस्कृति कलेण्डर कैसा हो, व्यापारियों के लिए सुविधाएं, मेले में ऐसी क्या चीज लाई जाए, जो अधिक से अधिक सैलानियों को आकर्षित कर सके आदि शामिल रहता था, लेकिन नौकरशाही के इस दौर में ऐसा कहीं कुछ देखने के लिए नहीं मिल रहा है। श्री बसंल ने कहा कि हमने ग्वालियर व्यापार मेले के मंच पर बड़े-बड़े कलाकारों तक को बुलाया था।
एक माह तक लगने वाला शिल्प बाजार दस दिन का रह गया:- अनुराग बंसल ने कहा कि हमारे समय में शिल्प बाजार एक माह तक के लिए लगाया जाता था, लेकिन यह शिल्प बाजार आज मात्र दस का ही रह गया है। श्री बंसल ने कहा कि शिल्प बाजार एक माह तक के लिए लगे इस हेतु मेला प्राधिकरण द्वारा विशेष प्रयास भी किए जाते थे, जिससे ग्वालियर के सैलानी शिल्प मेले का एक माह तक लाभ प्राप्त करते थे। उन्होंने कहा कि हमने शिल्प मेले को और अधिक गुलजार करने के लिए उस क्षेत्र के पास कई दुकानों का निर्माण भी कराया। इसी के साथ हमारे कार्यकाल में कई स्थाई और अस्थाई दुकानों का निर्माण भी हुआ, जिससे अधिक से अधिक व्यापारी मेले में आ सकें।

मेले की दुर्दशा पर       उच्च् न्यायालय ने शासन        से मांगा जवाब
 उच्च न्यायालय की खंडपीठ ग्वालियर के न्यायाधीश शील नागू और न्यायाधीश एस.ए. धर्माधिकारी की युगल पीठ ने ग्वालियर व्यापार मेला की खराब दुर्दशा, प्रत्येक वर्ष मेले में दुकानदारों को नुकसान, इसके वैभव में कमी आने और मेला प्राधिकरण की नियुक्ति न होने पर बुधवार को प्रस्तुत की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान उद्योग मंत्रालय, प्रमुख सचिव संस्कृति व पर्यटन मंत्रालय, प्रमुख सचिव वित्त मंत्रालय, व्यापार मेला के सचिव, जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अवेधश भदौरिया ने न्यायालय में याचिका प्रस्तुत करते हुए कहा है कि ग्वालियर व्यापार मेला ने अपनी साख को खो दिया है। पहले मेले की भव्यता देखते ही बनती थी, अब मेले की दुर्दशा हो रही है। अधिवक्ता ने तर्क रखा कि राजनैतिक कारणों से मेले को उसकी पहचान नहीं मिला पा रही है। इस पर न्यायालय ने कहा कि अब चूंकि मेला शुरू हो गया है इसलिए अगले वर्ष वे इस पर कार्रवाई करेंगे।

काम करने की लगन होना चाहिए
ग्वालियर व्यापार मेले के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र कुमार गंगवाल ने कहा कि किसी भी काम के लिए मन में लगन होना चाहिए तभी अच्छा प्रतिसाद मिलता है। रही बात मेले की तो इस मेले को कोई भी चलाए, लेकिन इस मेले को ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए लगन से काम तो करना ही होगा, तभी मेले में देश-विदेश के लोग आ सकेंगे। श्री गंगवाल ने कहा कि मेला कुछ घण्टे की नौकरी नहीं फुल टाइम का जोब है। उन्होंने कहा कि मेले को लगाने के लिए कई माह पहले से ही तैयारी शुरू करनी होती है तभी मेला देखने लायक बनता है। उन्होंनेने चुटकी लेते हुए कहा कि आप मेले में जितनी मेहनत करोगे, उतना ही फल मिलेगा।

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