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करोड़ों खर्च फिर भी सोनचिरैया के दर्शन नहीं

Update: 2017-01-11 00:00 GMT

अनभिज्ञ अधिकारियों को सौंप रखी है ‘सोनचिरैया पुनर्वास प्रबंधन’ योजना


दिनेश शर्मा/ग्वालियर।
ग्वालियर जिले के घाटीगांव और तिघरा क्षेत्र में कभी खैर, करधई, सलई के घने जंगल और घास के मैदान होते थे, जहां ग्रेट इंडियन वस्टर्ड अर्थात सोनचिरैया सहित इसके जैसे भारी शरीर वाले अन्य पक्षी काफी संख्या में थे। इसी वजह से सन् 1981 में यहां 512 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में अभयारण्य बनाया गया। इसके बाद सन् 2007 तक यहां कम संख्या में ही सही, सोनचिरैया कभी-कभी दिख जाती थी, लेकिन इसके बाद आज तक एक भी सोनचिरैया नहीं दिखी है। वन विभाग के अधिकारी सोनचिरैया के यहां से विलुप्त होने के पीछे भारी मानव दखल, अवैध उत्खनन, पशु चराई, वृक्षों की कटाई, अतिक्रमण आदि को मुख्य वजह तो मानते हैं, लेकिन इन सबको रोकने के प्रयास नहीं करते। कारण! ये तमाम वजहें अधिकारियों की अतिरिक्त आय का मुख्य स्रोत बनी हुई हैं।  
सोनचिरैया के प्राकृतिक रहवास की दृष्टि से ग्वालियर के सोनचिरैया अभयारण्य घाटीगांव की हालत बेहद खराब है। वन विभाग करोड़ों की राशि खर्च करके अभयारण्य के बिगड़े हालातों को सुधारने के नाम पर करोड़ों की राशि खर्च करने में लगा हुआ है, लेकिन फिर भी यहां प्राकृतिक रूप से सोनचिरैया के आने की संभावनाएं नगण्य नजर आ रही हैं। ऐसे में अन्य किसी राज्य से सोनचिरैया को लाकर यहां बसाने की चर्चा भी चली, लेकिन वन विभाग के ही अधिकारी इस बात को स्वीकार करते हैं कि यहां का प्राकृतिक वातावरण सोनचिरैया के अनुकूल कतईं नहीं हैं, इसलिए कोई भी राज्य सोनचिरैया देने को राजी नहीं होगा।  

अभयारण्य का क्षेत्र कम करने की तैयारी
सोनचिरैया अभयारण्य को मानव दखल से मुक्त कराने के लिए वन विभाग ने अभयारण्य में शामिल 18 गांवों को अलग करने की कार्रवाई शुरू कर दी है। इस संबंध में पिछले साल एक प्रस्ताव राज्य वन्यप्राणी बोर्ड को भेजा गया था। वहां से विचार-विमर्श उपरांत यह प्रस्ताव केन्द्रीय वन्य प्राणी बोर्ड को भेजा जाएगा, लेकिन अभी तक इस प्रस्ताव पर राज्य वन्य प्राणी बोर्ड ने ही विचार नहीं किया है। विशेषज्ञों की मानें तो 18 गांवों को अभयारण्य क्षेत्र से अलग किए जाने के प्रस्ताव को राज्य व केन्द्रीय वन्य प्राणी बोर्ड से स्वीकृति मिलना मुश्किल है।   

अभी कोई नहीं देगा सोनचिरैया
अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि वर्तमान में गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र तीन राज्यों में ही करीब 200 की संख्या में सोनचिरैया बची हैं। चंूकि घाटीगांव अभयारण्य की हालत बेहद खराब है। ऐसे में इनमें से कोई भी राज्य यहां के लिए सोनचिरैया नहीं देगा। पहले यहां सोनचिरैया के प्राकृतिक रहवास के अनुकूल तीन से चार हजार हैक्टेयर एरिया विकसित करना पड़ेगा, लेकिन इसके लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, वे नाकाफी हैं।  

वन्यजीव भी विलुप्त हो रहे अभयारण्य से
घाटीगांव अभयारण्य से केवल सोनचिरैया ही नहीं बल्कि अन्य वन्यजीव भी विलुप्त हो रहे हैं। विभागीय अधिकारियों के अनुसार एक दशक पूर्व तक अभयारण्य में तेंदुआ, भालू, भेडिय़ा, लकड़बग्घा, सियार, लोमड़ी, सांभर, चीतल, नीलगाय, काला हिरण, चिंकारा, जंगली सूअर, बंदर, चौसिंगा सहित विभिन्न प्रजातियों के गिद्ध आदि वन्यजीव काफी संख्या में थे, लेकिन अब वन्यजीवों की संख्या उंगलियों पर गिनी जाने वाली रह गई है। वर्तमान में भालू तो कहीं नजर ही नहीं आते हैं।
कब कितनी संख्या में थी सोनचिरैया
वर्ष      संख्या
2001    08
2002    08
2003    08
2004    08
2005    08
2006    00
2007    00
2008    00
2009    01
2010    00
2011    00
2012    00
2013    00
2014    00
2015    00
2016    00

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