अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही, लाखों की मशीन खा रही धूल

Update: 2017-01-11 00:00 GMT

शासन के पास नहीं हैं गरीब मरीजों को उपचार उपलब्ध कराने के लिए पैसे


ग्वालियर।
अंचल के सबसे बड़े अस्पताल जयारोग्य चिकित्सालय में इन दिनों प्रबंधन की लापरवाही के चलते लाखों रुपए कीमत की मशीन धूल खा रही है, लेकिन प्रबंधन द्वारा मशीन को चालू कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, जिसके चलते मरीजों को निजी चिकित्सालयों में कैंसर की सिकाई के लिए पैसे खर्च करना पड़ रहे हैं।

वर्तमान में भारतीय महिलाओं में बच्चेदानी के मुख का कैंसर दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला कैंसर है। इसके साथ ही लोगों में आज खाने की नली, मुंह में कैंसर, गले के कैंसर सहित अंदर के हिस्सों में कैंसर की शिकायत सामने आ रही है। अत: कैंसर के उपचार के लिए जयारोग्य चिकित्सालय के कैंसर विभाग में शासन की ओर से एचडीआर ए.एम.सी. कैंसर सिकाई की मशीन लगवाई गईं है, लेकिन इस मशीन की सुविधा अस्पताल में बहुत कम समय के लिए ही रही। अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण इस मशीन को अभी तक दुबारा शुरू नहीं किया गया।

जानकारी के अनुसार शासन की ओर से वर्ष 2007 में 70 लाख रुपए की यह मशीन स्थापित कराई गई थी, जिसको लेकर वर्ष 2008 में एटोमिक एनर्जी रेगूलेटरी बोर्ड मुम्बई द्वारा आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा गया था कि मशीन को चलाने के लिए टेक्नीशियन की जरूरत होती है। पहले टैक्नीशियन की भर्ती करें, उसके बाद मशीन को चलाएं, जिसके चलते मशीन बंद कर दी गई। इसके कई वर्षों बाद वर्ष 2016 में दो टैक्नीशियन को कैंसर विभाग में मशीन के लिए भेजा गया, लेकिन उसके बाद शासन के पास पैसे न होने की बात कहते हुए अभी तक इस मशीन को शुरू नहीं किया गया है। वहीं सूत्रों की मानें तो कुछ निजी चिकित्सालयों को फायदा पहुंचाने के लिए प्रबंधन द्वारा इस मशीन को शुरू कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। अगर इस मशीन को शुरू किया जाता है तो कुछ निजी चिकित्सालयों की कमाई पर असर पड़ सकता है।

प्रति वर्ष होते हैं पांच लाख खर्च
इस मशीन को चलाने के लिए पांच लाख रुपए प्रतिवर्ष खर्च होते हैं, जो शासन द्वारा दिए जाते हैं, लेकिन प्रबंधन का कहना है कि उन्होंने शासन से मशीन से शुरू कराने की बात कही थी, लेकिन शासन के पास इस मशीन का खर्च उठाने के लिए पैसे नहीं हैं, जबकि इस मामले में कैंसर विभाग के डॉ. अक्षय निगम द्वारा कई बार पत्र भी लिखे जा चुके हैं, लेकिन प्रबंधन द्वारा मशीन को चालू कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

20 से 30 हजार होते हैं खर्च
इस मशीन से सिकाई कराने के लिए मरीजों को निजी चिकित्सालयों में 20 से 30 हजार तक खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन जो मरीज गरीब होते हैं, वह तो इस बीमारी के चलते मर ही जाते हैं।

समय पर हो उपचार तो बच सकता है मरीज
बच्चेदानी के मुख का कैंसर, मुंह में कैंसर, गले में कैंसर का अगर सही समय पर उपचार शुरू हो जाए तो इस बीमारी से मरीज को बचाया जा सकता है, लेकिन इस मशीन के बंद हो जाने के कारण गरीब मरीजों का समय पर उपचार शुरू नहीं हो पाता है और उनकी मौत हो जाती है।

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