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भगवा से भय क्यों

Update: 2016-06-23 00:00 GMT

भगवा से भय क्यों

जब-जब भगवा की बात होती है तो देश के कुछ तथा-कथित धर्म निरपेक्षतावादियों के पेट में मरोड़ उठने लगती है। आखिर न जानें क्यों इन्हें भगवा से भय लगता है। किसी भी हिन्दू या राष्ट्रवादी व्यक्तित्व ने भगवा शब्द ज़ुबान पर लाया तो इन्हें सबसे ज्यादा परेशानी होने लगती है। केंद्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री रामशंकर कठेरिया के इस कथन पर सेकुलर जमात ने जोर-शोर से विरोध दर्ज कराने लगे कि शिक्षा का भगवाकरण करने की पहल सरकार कर रही है।' हालांकि कठेरिया ने अपना बयान बदल दिया है, लेकिन इस पर कोई खुली बहस कराने को तैयार नहीं है कि आखिर भगवाकरण क्या है, जिस तरह हिन्दुत्व और हिन्दू हित की बात पर ये सेकुलर चीखने लगते हैं, लेकिन कोई भी इस बारे में बहस को तैयार नहीं होता। सेकुलर क्या है, इस बारे में भी बहस नहीं होती। यह दुर्भाग्य है कि इस बारे में राजनीतिक दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ जुगाली के लिए गालियां तैयार की हैं। भगवाकरण देश की संस्कृति का रंग है। हमारे त्योहार, हमारे देवालयों और सिंहस्थ जैसे पर्व, जहां पूरे देश के लोगों का संगम होता है। हाल ही में उज्जैन में सिंहस्थ पर्व हुआ। उसके अखाड़े उसके कार्यक्रमों में भगवा पताकाएं फहरा रही थी। भगवा हमारी सांस्कृतिक पताका का रंग है। आज से नहीं, सदियों से हमने इसी भगवा संस्कृति से चिंतन किया है। हमारे ऋषि-मुनियों ने भी इसी संस्कृति की पताका दुनिया में फहराई है। राम-कृष्ण से लेकर बुद्ध, महावीर, नानक ने भी इसी भगवा संस्कृति के रंग को अपनाया, इसीलिए बुद्ध, महावीर के संप्रदाय की पताका भगवा है। सिख पंथ का निशान भी भगवा है। इसी पताका की छाया में राणा प्रताप, गुरुगोविंद सिंह और शिवाजी ने मुगलों की गुलामी से मुक्त होने के लिए संघर्ष किया। रानी लक्ष्मीबाई और नानासाहेब पेशवा ने भी इसी भगवा ध्वजा को लेकर अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के लिए संघर्ष किया। भारत माता ने अपने सांस्कृतिक गौरव के अनुरूप दुनिया का मार्गदर्शन किया। इसलिए यह सनातन सच्चाई है कि भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता का रंग भगवा रहा है। यह ऐतिहासिक सच्चाई है कि भारतीय शिक्षा-दीक्षा का रंग भगवा रहा है। इसलिए राज्यमंत्री कठेरिया का कथन भारत की संस्कृति के अनुरूप ही है। चाहे सेकुलरी रंग चढ़ाने की कोशिश की जाए, लेकिन भारतीय संस्कृति का रंग भगवा ही रहा है। एक बहुप्रसारित समाचार की संपादकीय टिप्पणी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शिक्षण संस्थाओं में भगवाकरण के अनुरूप शिक्षा देता है। संघ की शिक्षण संस्थाओं में सनातन संस्कृति एवं भारतीय गौरव के अनुरूप शिक्षा दी जाती है। उससे देशभक्त और संस्कारित छात्रों का निर्माण होता है। इसमें किसी को आपत्ति या विरोध की गुंजाइश नहीं है। मैकाले शिक्षा की विकृतियों से देश की भावी पीढ़ी अपनी परंपरा, संस्कृति और भारतीय जीवन मूल्यों से कट रही है। कन्हैया जैसा देश विरोधी एवं देश को खंडित करने वाले नारे लगाने वाला इसी मैकाले की शिक्षा ने पैदा किया है। यह सच्चाई है, मैकाले मानस पुत्रों की एक राजनीतिक जमात तैयार हुई है। जिसे सेकुलरी जमात कहते हैं। भारत के सेकुलरी विचार केवल वोट बैंक पर केंद्रित है। इनका न सांस्कृतिक मूल्यों से सरोकार है और न भारत की मूल राष्ट्रीयता से।

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