रचने की बजाय इतिहास दोहराते सिंधिया 

Update: 2016-03-23 00:00 GMT

रचने की बजाय इतिहास दोहराते सिंधिया

*अतुल तारे

ग्वालियर के माथे पर यूं ही एक कलंक है। यह कलंक है, प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 में सिंधिया राजवंश की भूमिका को लेकर। क्या हुआ, क्यों हुआ, इस पर कहीं-कहीं बहस की गुंजाइश दिखती है, पर सवाल गहरे हैं, उत्तर आज भी अनुत्तरित है। पर इसी राजवंश ने स्वाधीनता के पश्चात एक इतिहास की रचना की। श्रद्धेय कै. श्रीमंत राजमाता सिंधिया ने कांग्रेस में रहते हुए दमन के खिलाफ आवाज उठाई। फिर जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी के अखिल भारतीय स्वरूप के निर्माण में जीवन भर सक्रिय रहीं। राजमाता सिंधिया की यह यशस्वी यात्रा सिर्फ एक राजनीतिक दल के विकास के लिए नहीं थी, न ही वे इसके माध्यम से स्वयं के लिए कुछ अपेक्षा कर रही थीं, अपितु यह यात्रा राजनीति में जीवन मूल्यों की स्थापना के लिए थी। यहीं नहीं राजनीति से इतर भी समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वे राजमाता से लोकमाता बनीं। यही नहीं उनके पुत्र स्व. माधवराव सिंधिया ने भी कांग्रेस में रहते हुए राजनीति में उच्च मानकों को स्थापित किया। स्व. श्री सिंधिया के स्वाभिमान को जब कांग्रेस में रहते हुए चोट पहुंची तब उन्होंने भी साहस दिखाते हुए अपने राजवंश का क्षणिक मान बढ़ाया पर उन्होंने फिर एक बार स्वयं को इतिहास बनने दिया और उसी कांग्रेस की दूषित परम्परा के फिर प्रतिनिधि बने जिसकी आस्था सिर्फ और सिर्फ एक ही परिवार के महिमा मंडन में थी। आज सिंधिया राजवंश की तीसरी पीढ़ी राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वरूप में हैं। दलगत राजनीति से हटकर भी देशवासी उनमें एक संभावनाशील, ओजस्वी, परिपक्व राजनेता की छवि देखते हैं। देशवासी स्व. माधवराव सिंधिया में भी देश का नेतृत्व करने की संभावना देख रहे थे, पर कांग्रेस ने हमेशा उनके साथ राजीनितिक छल किया और बाद में वे एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के शिकार हो गए।

देशवासी और विशेषकर कांग्रेस भी यह मानती है कि श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एक करिश्मा पैदा कर सकते हैं। पर कांग्रेस के युवराज ने उन्हें हमेशा अपने पीछे ही रखा, इन्हीं युवराज की शह पर या इन्ही युवराज की संगत से ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा में ऐतिहासिक भूल कर बैठे।

देश के खिलाफ नारे लगाना ही देशद्रोह नहीं है, यह जिसने भी सिंधिया के मुखारबिंद से सुना स्तब्ध हो गए ।

मराठा राजवंश का इतिहास है कि उसने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ देश की सीमा तक मोर्चा संभाला। आज उन्हीं का चिराग यह कहें कि देश के खिलाफ नारे लगाना देशद्रोह नहीं है, वाकई शर्मनाक है। श्री सिंधिया के यह विचार उनके अपने हैं या कांग्रेस की नीति है, या उनके राजनीतिक गॉड फादर युवराज की संगत का असर है, यह तो वे ही जाने, पर वे एक ऐतिहासिक अक्षम्य भूल कर चुके हैं, यह अब एक दुर्भाग्यपूर्ण पीड़ादायक तथ्य है। देश राहुल गांधी से तो कल भी अपेक्षा नहीं रख रहा था, और आज भी नहीं है। उनकी छवि एक पप्पू की है और कांग्रेस के लिए भी वे एक दायित्व ही हैं, पर जो देश की सम्पत्ति बन सकता है, उसका यह पतन दर्दनाक है। क्या श्री सिंधिया प्रायश्चित्त का साहस करेंगे?

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