राष्ट्र शक्ति के लिए सामाजिक समरसता जरूरी: पतंगे

Update: 2016-02-24 00:00 GMT

सामाजिक समरसता पर वैचारिक गोष्ठी आयोजित


भिण्ड। जातीय विघटन कर मुट्ठीभर अंग्रेज वर्षों तक देश पर राज कर गए। अंग्रेजों ने भारत की शक्ति को जातिय विघटन कर कमजोर किया, किसी भी समाज के पतन की शुरुआत धर्म, सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक रूप से होती है। राष्ट्र की शक्ति को बढ़ाने व विश्व में स्थापित करने के लिए जरूरी है कि समूचे देश में सामाजिक समरसता कायम रहे, यह विचार सद्भावना मंच भिण्ड द्वारा आयोजित समरसता विषय पर वैचारिक संगोष्ठी में अ.भा. समरसता टोली के सदस्य डॉ. रमेश पतंगे ने मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।

संगोष्ठी की अध्यक्षता रिटायर्ड कर्नल भारत सिंह यादव ने की। कार्यक्रम का संचालन जेपी दीक्षित एडवोकेट ने किया एवं गीत मनोज अंनत व राजकुमार बाजपेयी ने प्रस्तुत किया। मुख्य वक्ता श्री पतंगे ने कहा कि हमारे ऋषि-मुनियों, मनीषियों ने जो भी ब्रह्म तत्व का खोजन किया, वह वैज्ञानिक दृष्टि से भी परखा हुआ है। उन्होंने कहा कि प्रकृति व सृष्टि के साथ छेड़छाड़ से भी समरसता प्रभावित होती है। आज प्रकृति असंतुलन के कारण ही मौसम व जलवायु में परिवर्तन आ रहा है।

उन्होंने कन्याओं की संख्या घटने पर भी चिंता व्यक्त की। हरियाणा में आज लिंगानुपात कम होने से सामाजिक समस्या उपत्पन्न हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रकृति सभी से समान व्यवहार करती है। सूर्य कभी जाति को देखकर प्रकाश नहीं देता, हवा कभी जाति को देखकर ऑक्सीजन नहीं देती, ये व्यवस्थाएं तो यहां बनाई हुई हैं। जिनका जातियता के आधार पर सामाजिक शक्ति को कमजोर बनाने के लिए उपयोग करना सामाजिक व्यवस्था को बिगाडऩे का षडय़ंत्र है। उन्होंने एक कहानी के उदाहरण के माध्यम से यह भी बताया कि संगठन में ही शक्ति है, एक कमजोर जीव भी शक्तिशाली जीव का मुकाबला कर सकता है। उन्होंने जातियों के विभाजन के लिए राजनीति को भी कही न कहीं दोषी बताया। इस पर भी विचार करने की जरूरत है।

संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे रिटायर्ड कर्नल भारत सिंह यादव ने कहा कि यदि हम अपनी शुद्ध परंपराओं का निर्वहन करें तो समाज समरसता को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने देशहित और देशभक्ति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सामाजिक समरसता को बनाए रखना राष्ट्रहित में है। इससे न केवल राष्ट्र्र की शक्ति बढ़ेगी। बल्कि विश्व में भी अपना परम वैभव बढ़ेगा। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों को छोडऩे के साथ-साथ अच्छे विचारों को आगे बढ़ाने की बात कही।

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