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जयललिता नहीं जय जय ललिता

Update: 2016-12-07 00:00 GMT


तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे.जयललिता ने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से यह प्रमाणित कर दिया कि वे सिर्फ जयललिता नाम की नहीं है बल्कि अपने नाम से और दो कदम आगे जय जय ललिता हैं। न सिर्फ चेन्नई, न सिर्फ संपूर्ण तमिलनाडु बल्कि देश के अन्य प्रांतों से भी जो संवेदनाओं का ज्वार आज उनके निधन पर देखने को मिला है वह राजनेताओं के लिए, समाजशास्त्रियों के लिए शोध का विषय है। भारतीय राजनीति में जातिवाद के जनक राजनेता जातिवादी राजनीति में सिमट कर रह गए। अगड़े नेता अगड़ों में और पिछड़े नेता पिछड़ों में। किन्तु जाति समूह के ऐसे सर्वमान्य नेता के गुण जयललिता में ही देखने को मिले। उनकी बीमारी से लेकर निधन तक तमिलनाडु की जनता किस हद तक अपनी अम्मा को चाहती थी यह सारे टीवी चैनलों पर देखने को मिला। भारतीय संस्कृति का यह एक टोटका है कि जब किसी के मृत्यु की खबर झूठी उड़ती है तो वह झूठी ही साबित होती है और मृत्यु शैय्या पर बैठे लोग उठकर खड़े हो जाते हैं। ऐसा टोटका तमिलनाडु में भी किया गया। दक्षिण के टीवी चैनलों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उनकी ही पार्टी मुख्यालय पर ध्वज झुका दिया गया। हां, राष्ट्रीय चैनल जरूर इस टोने-टोटके से दूर रहे। वहीं चेन्नई के अपोलो अस्पताल से भी स्वास्थ्य बुलेटिन जारी कर कहा गया कि मीडिया द्वारा  निधन की खबर गलत है और अम्मा अभी जीवित हैं। इससे लगा कि टोटका अपना काम कर गया और अम्मा को संजीवनी मिल गई। वे पुन: पूर्व स्थिति में आ जाएंगी। लेकिन रात को उनके निधन की खबर जारी कर कहा गया कि ‘अम्मा नहीं रहीं’। तमिल जनता में एक सर्वव्यापी व्यक्तित्व के दु:खद निधन से वहां हाल-बेहाल है। उनकी लोकप्रियता का कोई माप नहीं है।

आज के युग में ऐसे नेता बहुत कम दिखाई देते हैं जो अपनी जमीन से जुड़े हुए हों और जिनके लिए लोगों में संताप विलाप और रुदन का सैलाब फूट पड़ा हो। इस दृष्टि से यदि जयललिता का मूल्यांकन किया जाए तो वे तमिलनाडु की एक सर्वमान्य और लोगों के अंतरतम में पैठ बनाए रखने में सर्वाधिक सफल राजनेता सिद्ध हुई।1948 में जन्मी जयललिता का जीवन तमाम विरोध और विसंगतियों का पर्याय रहा है। दो वर्ष की अवधि में पिता का साया उठ जाने के बाद भी पढऩे में अव्वल जयललिता को जीविकोपार्जन के लिए फिल्म जगत में पदार्पण करना पड़ा। तीन सौ से अधिक फिल्मों में काम कर उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी।जयललिता की जिन्दगी प्रयोजन मूलक रही है। वे पैसा, पद, प्रतिष्ठा, प्रतिज्ञा, प्रतिशोध, प्रेम और प्रहार का एक ऐसा मिश्रण थी जिन्होंने अपने समय के कौशल के साथ प्रयुक्त किया और सफलता हासिल की। एमजीआर की मृत्यु से आहत हुई जयललिता को उपेक्षा और अपमान ने और सशक्त बना दिया। मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अम्मा कैन्टीन, अम्मा फार्मेसी, अम्मा सीमेंट, अम्मा मोबाइल, अम्मा साल्ट और न जाने ऐसी कितनी योजनाएं बनाईं कि तमिल के लोग उनके मुरीद हो गए।

"अम्मा ने जिस प्रतिज्ञा, कौशल के बल पर अपना मुकाम बनाया वह आज भी प्रेरणादायी स्वरूप में विद्यमान है। उनके पीछे लोग अपनी जान दे रहे हैं। अपनी और अपने परिवार की परवाह किए बिना मौत को गले लगा रहे हैं। क्यों....?.... "

सिर्फ अपनी अम्मा के कारण।

लैला-मजनूं और हीर-रांझा की दीवानगी तो समझ में आ सकती है लेकिन तमिलनाडु जैसे शिक्षित राज्य में जयललिता के प्रति ऐसी दीवानगी देख लगता है कि जयललिता ने अपने प्रदेश की जनता के लिए ऐसा कुछ जरूर किया जिससे लोग प्राण तक न्यौछावर करने को आमादा हैं।

 

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