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ताका - झांकी

Update: 2016-12-13 00:00 GMT

‘तिलकधारी जी’ मुसीबत में

साहब के खिलाफ विरोध का झण्डा उठाने वालों का नेतृत्व करने वाले ‘तिलकधारी जी’इन दिनों मुसीबत में दिखाई दे रहे हैं। यूं तो जिस समय उन्होंने बगावत की थी उस समय निश्चित ही उन्हें अपनी मुहिम में सफलता मिलती दिखाई दे रही थी, क्योंकि तब तिलकधारी जी ने अपनी राजनीतिक पहुंच का ऐसा इस्तेमाल किया था कि साहब को भी यू टर्न लेना पड़ा, लेकिन फिर साहब ने भी ऐसा पैंतरा खेला कि विरोध करने वाले चारों खाने चित्त हो गए। अपने निगम वाले रमुआ की मानें तो तभी से तिलकधारी जी पर साहब की टेड़ी नजर है, यहां तक कि साहब की ओर से उन्हें हिदायत भी मिल गई है कि सुधर जाएं अन्यथा कुछ भी हो सकता है।

कर्मचारियों पर सिंह साहब का फरमान

जिले की सबसे बड़ी पंचायत से राजा जी के भिण्ड चले जाने के बाद जिन कर्मचारियों ने राहत का सपना देखा था, वे अब और ज्यादा मुसीबत में हैं। उनकी मुसीबत का कारण है राजा जी की जगह पर बैठे सिंह साहब का ‘गांव-गांव, पांव-पांव’ वाला फरमान। हालांकि गांवों को खुले में शौच की प्रथा से मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध सिंह साहब का यह फरमान काफी पुराना है, लेकिन गर्मी के दिनों में इसके पालन में किसी को कोई दिक्कत भी नहीं थी, पर अब ठंड के मौसम में तडक़े सुबह गांव की पगडंडियां नापते हुए खुले में शौच जाने वालों को रोकने का अभियान कर्मचारियों को मुसीबत भरा लग रहा है। चूंकि सिंह साहब का कोई भरोसा नहीं है कि वे तडक़े सुबह किस गांव में जा धमकें और किसे निलम्बन का फरमान सुना डालें। इस डर से जिनकी ड्यूटी जिस गांव हैं, वे उस गांव में ठिठुरते हुए गांव की पगडंडियां नाप रहे हैं।   

डॉक्टर साहब दिन-रात सडक़ों पर

शहर में अभी हाल ही में आमद देने वाले डॉक्टर पुलिस कप्तान दिन रात घूमकर शहर की नब्ज टटोल रहे हंै। शहर और देहात के थानों में कामकाज कैसे होता है और लापरवाही कौन बरतता है, भ्रमण के दौरान देखा जा रहा है। साहब का काम करने का अंदाज तो फिलहाल पता नही लग सका है लेकिन रातों को सडक़ों पर साहब को देखकर थानों मे ंमौजमस्ती करने वालों के कान खड़े हो गए हंै। कुछ का तो यह कहना है कि यहा तूफान से पहले की शांति है।

नेताजी की अनोखी भागवत

भईया ललितपुर कॉलोनी में एक पंजे वाले  नेताजी ने पिछले दिनों भागवत कथा कराई लेकिन इसमें अपनों को भूल गए। नेताजी की अनोखी भागवत में धर्म कम राजनीति अधिक अधिक हो रही थी । माइक इतनी तेज आवाज में चल रहे कि दोपहर दो से पांच बजे तक आसपास के लोगों का अपने घर में बैठना तक मुश्किल हो गया और बच्चे पढ़ाई भूल गए। इतना ही नहीं इस दौरान क्षेत्र की बोरिंग भी दिन भर चली और खराब हो गई। अब इसका खामियाजा नेताजी के मोहल्ले वालों को भुगतना पड़ रहा है।

चैकिंग वालों की बल्ले-बल्ले

रेल विभाग में चैकिंग के नाम पर की जा रही खानापूर्ति का फायदा बिना टिकट यात्रा करने वाले यात्री खूब उठा रहे है। जिनके कंधे पर चैकिंग की जिम्मेदारी है, वह अपने कार्यालय में बैठकर अपने वारे-न्यारे करते दिखाई देते हैं। जब भी रेलवे का कोई आला अधिकारी निरीक्षण के लिए आता है तभी दिखाने के लिए चैकिंग अभियान शुरू हो जाता है, इसके बाद फिर वही पुराना ढर्रा चलने लगता है, ध्यान दें तो विभाग को नुक्सान और चैकिंग वालों की बल्ले-बल्ले है।

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(अरविन्द माथुर, दिनेश शर्मा, फूलचंद मीणा, अरुण शर्मा, प्रशांत शर्मा)


 

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