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जनशिकायतों के निराकरण पर नजर

Update: 2016-11-11 00:00 GMT

यदि जनशिकायतों का निपटारा समयसीमा में  हो जाए तो यह प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक बहुत ही अहम् कदम कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपनी सरकार के सभी मंत्रालयों से जनता की शिकायतों को एक माह में निपटाने के लिए कहना भी इसी ओर इंगित करता है। उल्लेखनीय है कि प्रशासनिक सुधार के उद्देश्य से समय- समय पर बने विभिन्न आयोगों और समितियों की महत्वपूर्ण सिफारिश भी यही थी कि जनशिकायतों का निपटारा उनके लिए तय समयसीमा में होना चाहिए तभी उसका लाभ जनता को मिल सकेगा। लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसे अब तक महत्व नहीं दिया गया है।

यह भी सही है कि जनशिकायतों के त्वरित या समय पर निराकरण के निर्देश प्रधानमंत्री द्वारा पहले भी दिए गए हैं। इस ओर पहल उन्होंने पिछले वर्ष मार्च के महीने में ही कर दी थी। जबकि सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय की निगरानी में  ‘प्रगति’ (प्रो एक्टिव गवर्नेंस एण्ड टाइमली इम्पलीमेन्टेशन) नाम से एक तंत्र का गठन किया गया। इसका उद्देश्य लोकशिकायतों का निराकरण करने के साथ योजनाओं व कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर नजर रखना भी था। यूं तो यह दोनों बातें एक-दूसरे से जुड़ी हुई भी हैं। क्योंकि बहुत सारी शिकायते और योजनाओं तथा कार्यक्रमों के समय से या पारदर्शिता के साथ लागू ना होने के कारण होता है।

चूंकि शिकायतों का एक बड़ा हिस्सा भेदभाव उत्पीडऩ व अत्याचार से सम्बन्धित होता है। जाहिर है कि लोकशिकायतों का समयबद्ध निपटारा आर्थिक और सामाजिक न्याय की बड़ी आवश्यकता है। लेकिन हमारे देश में तमाम योजनाओं व कार्यक्रमों के साथ जो होता रहा है, कुछ वैसा ही हमारे प्रधानमंत्री की इस पहल यानि ‘प्रगति’ के साथ भी हुआ। इस पोर्टल पर अब तक लगभग आठ लाख शिकायतें लम्बित हैं। यही कारण है कि जब प्रधानमंत्री ने इसकी समीक्षा की तो इसके तहत  जनशिकायत निवारण की समयसीमा दो माह से घटाकर एक माह कर दी। साथ ही सभी मंत्रालयों से इसे गंभीरता से लेने के लिए भी कहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जनहित और देश हित में कड़े निर्णय लेते रहे हैं।

हाल ही में उनके द्वारा पांच सौ और हजार के नोट अचानक बंद किए जाने का निर्णय भी इसी की एक कड़ी है। जिसे लेकर उन्होंने अपने उन विरोधियों के मुंह बंद कर दिए हैं जो कि उन पर लगातार इस वादे से मुकरने का आरोप लगाते आ रहे थे कि काला धन के खिलाफ अब तक उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया, लेकिन उनके इस निर्णय ने यह साबित कर दिया कि कालाबाजारी और काला धन रखने वालों की अब खैर नहीं है और उनके द्वारा लिए गए इस निर्णय का असर भी दिखाई दे रहा है। उनके इस निर्णय की बात हमने यहां इसलिए ही की है कि जनशिकायत निवारण के लिए सरकार के मंत्रालयों को दिए गए निर्देशों पर भी ठीक ऐसा ही अमल आने वाले समय में अवश्य ही दिखाई देगा।

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