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हर प्रकार के भय से मुक्ति दिलाती हैं मां शैलपुत्री

Update: 2016-10-01 00:00 GMT

शारदीय नवरात्र आज से प्रारंभ हो गए हैं और इसमें मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां के रूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है।


माता आदि शक्ति के पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है।
मां शैलपुत्री अच्छी सेहत और हर प्रकार के भय से मुक्ति दिलाती हैं। इनकी आराधना से स्थिर आरोग्य और जीवन निडर होता है। व्यक्ति चुनौतियों से घबराता नहीं बल्कि उसका सामना करके जीत हासिल करता है।

ये सहज भाव से भी पूजन करने पर शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। शैलपुत्री का पूजन करने से ‘मूलाधार चक्र’जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है, जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसलिए नवरात्र के प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं।

शैलपुत्री पूजन विधि: दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। कलश स्थापना से इनकी पूजा शुरू की जाती है। इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता और कलश में उन्हें विराजने के लिए प्रार्थना सहित उनका आहवान किया जाता है।

मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है।

मां शैलपुत्री की उपासना के लिए मंत्र:-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

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