मानवता की सेवा में प्रकृति और परमात्मा के विधान पर दृढ़ता के साथ खड़े रहना ही सच्चे संत की पहचान होती है। हिन्दू सनातन धर्म में चमत्कारों के लोभ प्रपंच को साधना की सबसे बड़ी बाधा माना जाता है।कर्म का गीता ज्ञान भी जीवन के व्यावहारिक यथार्थ की स्थापना में अटूट संघर्ष का महाभारतीय आदर्श स्थापित करता है। कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान चमत्कारों को परे रखकर युद्ध के लिये खड़े होने का संदेश देता है। यही नहीं पाश्चात्य जगत का विकास भी ज्ञान-विज्ञान के अनुसंधान का जीवंत प्रमाण है फिर क्यों चमत्कारों के झूठे प्रमाणों पर मदर टेरेसा को संत घोषित किया जा रहा है समझ से परे है।ऐसा करके कैथोलिक पंथ ने मदर टेरेसा को सही मायने में अपमानित ही किया है पंथ प्रसार का मोहरा बनाने की हकीकत में दो चमत्कारों से उनकी शख्सियत पर पर्दा डालना कहाँ का न्याय है। राम और कृष्ण के अवतारी स्वरुप कर्म की प्रधानता को जीवन की कसौटी पर कसने के शानदार प्रमाण हैं इन दो अवतारी पुरुषों ने कभी भी चमत्कारों का दास होने की कोशिश नहीं की जबकि वो चाहते तो चमत्कारों की बाढ़ बहा सकते थे। सत्य और न्याय की प्रतिष्ठा में कर्मों के विधान को मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य बनाना ही इस अखिल ब्रह्माण्ड का सत्य है।मानव देह में विद्यमान अनन्त शक्तियों का जागरण चमत्कारों की खोज नहीं है और न ही चमत्कार संत का आधार हो सकता है। हिन्दू सनातन धर्म पर पोंगा पंथ का आरोप लगाने वाला पाश्चात्य जगत सही मायने में मदर टेरेसा को दो चमत्कारों के आधार पर संत घोषित कर सबसे बड़ा पोंगा पंथी सिद्ध होता है। रूढि़वादिता, दकियानूसी, अन्धविश्वास की पुष्टि में ही मदर टेरेसा को चमत्कारों के आधार पर संत माना जा सकता है। हमारे देश के महान योगियों, संन्यासियों,संतों व ऋषिमुनियों के विराट तपोबल में भी मानवता की सच्ची सेवा में प्रकृति के चक्र का संतुलन कायम रखना ही मुख्य था। स्वामी विवेकानंद के महान वंदनीय गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने भी चमत्कारों से मुँह फेरकर अपने कैन्सर रोग को अपने कर्मों का भोग माना था और माँ दुर्गा-माँ काली की अपार कृपा में भी अपने रोग को खत्म करने की कैसी भी याचना से परहेज किया था यही है सच्चे संत की परिभाषा जो हिन्दू सनातन धर्म का पवित्र प्राण है। चमत्कारों के भरोसे मानव जीवन या जिंदगी के अस्तित्व को ही खत्म किया जा सकता है न कि मानव व्यवहार को शिखर पर पहुँचाना।बड़े-बड़े संतों ने तो चमत्कारों के लालच को विष्ठा की संज्ञा दी है। हिन्दू सनातन धर्म की पवित्र भारत भूमि को सर्वोच्च सम्मान देना चाहिए जहाँ मदर टेरेसा के मानवीय मूल्य पल्लवित हुये क्या पाश्चात्य जगत इस यथार्थ को समझेगा।