अग्रलेख

Update: 2016-01-21 00:00 GMT

रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाने की बाधा दूर हो

 राजनाथ सिंह 'सूर्य'

विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा ने कहा है कि इस समय अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए किसी आंदोलन की आवश्यकता नहीं है क्योंकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और उनसे यह अपेक्षा है कि वे संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर इस हेतु कानून को मंजूरी दिलाएं। आजकल रामजन्मभूमि पर मंदिर बनवाने के आंदोलन के लिए बौद्धिक समर्थन जुटाने में लगे सुब्रह्मण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री से अपेक्षा की है कि सर्वोच्च न्यायालय में मंदिर सम्बन्धी जो विवाद लंबित है उसकी प्रतिदिन सुनवाई कराकर फैसला कराएं। प्रतिदिन सुनवाई का आग्रह बाबरी मस्जिद के पक्षधरों ने भी किया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जिन तीन न्यायाधीशों के निर्णय पर पुनर्विचार याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं उन सभी ने माना है कि जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी वहां मंदिर था, लेकिन तत्सम्बन्धी वाद का निर्णय देने में भूमि का तीन भागों में विभाजन का बहुमत से दिया गया निर्णय विवादों में घिर गया है जिस पर सर्वोच्च न्यायालय को निर्णय लेना है। रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद विषाद का कारण बनता रहा है और बन रहा है। इस विवाद को हल करने के लिए अब तक बहुविधि प्रयास किए गए लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्वकाल में ढांचा ढहाए जाने के पूर्व एक प्रस्ताव पर प्राय: सहमति बन गई थी कि मीरबाकी जिनको रामजन्म स्थान पर मस्जिद निर्माणकर्ता माना जाता है की जिस सहिनवा गांव में-जो अयोध्या से लगभग चार किलोमीटर दूरी पर है, ढांचे को स्थानान्तरित करा दिया जाय और जन्मस्थान पर राम मंदिर बन जाय, लगभग सहमति बन जाने के बावजूद ऐसा नहीं हो पाया। राजीव गांधी के कार्यकाल में मंदिर परिसर का ताला खुला और नव निर्माण के लिए शिलान्यास भी हुआ लेकिन विवाद का समाधान नहीं हुआ। दरअसल इंदिरा गांधी 1985 का चुनाव ताला खुलवाकर लडऩे की योजनाकर्ता थी उनकी हत्या हो जाने के बाद आंतरिक सुरक्षा में गए थे, इस योजना को आगे बढ़ाने का दायित्व निभाया। 6 दिसम्बर, 1992 को बाबरी ढांचा ढहा दिया गया तब से रामलला की मूर्ति एक अस्थायी छाया में स्थापित है और उनकी सुरक्षा के ऐसे चाक-चौबंद प्रबंध किए गए हैं कि चिडिय़ा भी पर न मार सके। दर्शन की अत्यधिक सुरक्षात्मक व्यवस्था भी जारी है। जिन लोगों के इस कथन पर कि यदि विवादित स्थल पर पहले से मंदिर होने का सबूत मिले तो वह मस्जिद का दावा छोड़ देंगे, न्यायालय के आदेश और दोनों पक्षों की निगरानी में पुरातत्व विभाग ने वहां उत्खनन किया जिनसे मिली सामग्री इस बात का प्रमाण है कि जहां ढांचा खड़ा किया गया वहां पहले मंदिर था। यही नहीं बाबरी ढांचे के स्तम्भ आदि भी किसी मंदिर होने की पुष्टि करते हैं। चंद्रशेखर ने अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में मक्का से जो फतवा प्राप्ति किया था, वह भी मुसलमानों को मस्जिद का दावा ना करने की सलाह देता है। लेकिन विवाद जहां का तहां हैं क्योंकि मस्जिद के पक्षधर अब ढांचे नहीं भूमि पर हमारा दावा है-जो वक्फ बोर्ड की है-पर उतर आये हैं।
एक बात बहुत स्पष्ट है। अब विवादित स्थल पर मंदिर ही है और उसे कोई भी हटा नहीं सकता। क्योंकि जब मूर्ति स्थापित प्रगट हुई उस समय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत। कांग्रेस का ही बोलबाला था उस समय भी मूर्ति हटाने के लिए वक्तव्य जरूर दिए गए लेकिन कोई आगे नहीं आया। प्रश्न केवल इतना है कि रामलला टाट की छाया में रहें या फिर हिन्दुओं की आकांक्षा के अनुरूप वहां भव्य मंदिर खड़ा किया जाय। यह अभियान बहुत पुराना है कि हिन्दू कोई मजहब या पंथ नहीं है और इस देश में रहने वाले सभी फिर उनकी उपासना पद्धति चाहे जैसी हो, हिन्दू हैं। राम सभी के पूर्वजों में हैं। आर्य समाज की तरह जो उन्हें ईश्वर का अवतार नहीं मानते-महापुरूष के रूप में स्वीकार कर सकते हैं-करना चाहिए। पूजा पद्धति बदल जाने से न तो पुरखे बदलते हैं और न संस्कृति। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने भारत में रहने वाले सभी के पूर्वज समाज ही थे-के आधार पर सभी को हिन्दू मानते हैं। हिन्दू न तो कोई पंथ है और न कोई उपासना पद्धति। सर्वोच्च न्यायालय ने भी हिन्दुत्व को एक जीवन शैली कहा है जो सर्वे भवन्तु सुखिना की अवधारणा पर है। लखनऊ के एक मुस्लिम विद्वान ने भारत की मस्जिदों को लिपिबद्ध किया है जिसमें लगभग 30 हजार मस्जिदों को मंदिर तोड़कर बनाया जाना माना गया है। राम जन्मभूमि के आंदोलन के साथ काशी का शिव मंदिर और मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि को भी मान्यता के अनुरूप स्वरूप देने का अभियान के दौरान संसद ने एक कानून बनाया कि जो पूजा स्थल 15 अगस्त 1947 के पूर्व जिस स्थिति में थे, उसी स्थिति में रहेंगे, उनमें कोई बदलाव नहीं होगा-रामजन्मभूमि को छोड़कर-क्योंकि उसका विवाद न्यायालय में लंबित है। मुसलमानों में यह आशंका रही है कि मामला केवल रामजन्मभूमि तक ही सीमित नहीं रहेगा। बाबरी मस्जिद पक्ष के एक वकील स्व. अब्दुल मन्ना का मैंने वर्षों पहले एक साक्षात्कार प्रकाशित किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद हमारे लिए कोई मक्का मदीना नहीं है। हम उस पर इसलिए अड़े हैं कि कहीं उस पर से दावा छोडऩे के बाद हमें अन्य उन मस्जिदों को छोडऩे के लिए बाध्य न किया जाय, जिनके बारे में मंदिर तोड़कर बन जाने का दावा किया जा रहा है। यद्यपि इस आशंका का समाधान किया जा चुका है कि अब ऐसा सम्भव भी नहीं है, लेकिन बीच-बीच में कुछ लोगों द्वारा तीनों स्थल की मुक्ति की अभिव्यक्ति मस्जिद के लिए जिद करने वाले कट्टरपंथियों को मुखरित कर देती है और समझौते की दिशा में बढ़ रही गाड़ी को ब्रेक लग जाता है। जहां तक मस्जिदों को तोडऩे या हटाने का मामला है तो शायद सऊदी अरब का शायद ही कोई अन्य देश मुकाबला कर सके। अनेक मस्जिदों और कब्रिस्तानों को नष्ट कर बड़े-बड़े होटल वहीं खड़े किए गए हैं और यह सिलसिला जारी है। यद्यपि उनकी नीयत तो पैगम्बर मोहम्मद की कब्र को भी हटाने की है, लेकिन अभी तक ऐसा साहस नहीं जुटा पाये हैं पर उनके परिवार के कब्रिस्तान को तो पार्किंग क्षेत्र बना ही दिया है। जैसा कि स्व. अब्दुल मन्नान ने कहा था अयोध्या में विवादित स्थल के प्रति हिन्दुओं की आस्था के समान मुसलमानों की भावना नहीं है, फिर भी आज जिस सहिष्णुता की देश में सर्वाधिक होने की अभिव्यक्तियां की जा रही है, उसके लिए जिस एक मुद्दे पर सहमति भी सर्वाधिक आवश्यकता है, उस पर न केवल असहमति बनी हुई है अपितु समय-समय पर वह समाज में अनुकूलता और प्रतिकूलता के लिए हथियार बना लिया जाता है। पिछले दिनों अयोध्या के कारसेवकपुरम में मंदिर के लिए तरासने हेतु पत्थरों को लाये जाने पर ऐसा शोर मचाया मानो कल ही वहां मंदिर निर्माण शुरू हो जायेगा।
सहमति से विवाद हल करने के अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं सभी विफल हो चुके हैं। दो रास्ते ही शेष हैं या तो न्यायालय फैसला करे या सरकार कानून बनाए। यह बहुत स्पष्ट हो चुका है कि न्यायालय चाहे जो फैसला करे विवाद बना ही रहेगा तथा किसी भी सरकार में कानून बनाकर समस्या के समाधान का सामथ्र्य नहीं हैं। इस विवाद का समाधान कब कैसे और क्या होगा इस पर अटकलों के बीच एक और महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा हो गया है। जिस व्यक्तित्व को मर्यादा का प्रतीक दुनिया मानती है क्या उसको जन्मस्थान और नगरी का वही स्वरूप रहना चाहिए जैसा आज है। दुनिया में राम से अधिक शायद ही कोई अन्य महत्व प्राप्त व्यक्ति है लेकिन उसकी अयोध्या दुनिया क्या देश के दर्शनीय स्थलों में प्रमुखता नहीं रखती। सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था का आदर्श रामराज्य है। महात्मा गांधी ने स्वराज्य अर्थात राम राज्य की अवधारणा को महत्व दिया था। तुलसीदास ने भी लिखा है-दैविक भौतिक देहिक तापा, रामराज काहू नहि व्याप्ता। दुनिया और इन तीनों ही तापों-कस्बे-से पीडि़त है। ऐसे में क्या उस महापुरूष, महामानव या ईश्वरीय अवतार की जन्मनगरी को आकर्षण का केंद्र नहीं होना चाहिए। क्या एक मंदिर-मस्जिद विवाद तक ही अयोध्या की पहचानभर बना देना चाहिए। हम अपने प्राचीन जीवन शैली, ऋषियों के तप से अर्जित और सम्पुट की गई जीवन शैली पर गर्व करते हैं और दुनिया भी उसके अनुरूप चलने में ही भविष्य देख रही है, लेकिन उन महापुरूषों को भारत में ही विवाद का केंद्र बना दिया गया है। हम स्मार्ट सिटी बनाने की योजना पर अमल करने जा रहे हैं क्या भारत ने दुनिया को जो दिया है उस अध्यात्म की अनुभूति के लिए भी किसी नगर या क्षेत्र को विकसित किया जाना जरूरी नहीं है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी को इस दृष्टि से विकसित करने की कल्पना की है। काशी दुनिया की एकमात्र सबसे प्राचीन जीवित नगरी है, उसकी आध्यात्मिक परंपरा है उसे वह गौरव हासिल होना चाहिए। सामान्य मानव के लिए राम ही एकमात्र सहारा हैं। उनसे जुड़ीं विभिन्न कथाएं इस बात का प्रमाण हैं कि वह आम आदमी के कितने निकट थे-आज भी हैं। तो क्या राम को विवादित बनाकर उत्तेजना कायम रखने की राह पर चलना श्रेयस्कर होगा या फिर राम के द्वारा स्थापित मानदंड और मर्यादा की पैठ बढ़ाने से कल्याण होगा। इसके लिए जहां जन्मस्थल के विवाद का समाधान जरूरी है-चाहे न्यायालय की दिन प्रतिदिन सुनवाई से या संसद के कानून से। इसके साथ अयोध्या का एक विश्व आकर्षण का केंद्र बनना भी। जन्मस्थल का विवाद लटका रह सकता है लेकिन अयोध्या को राम के प्रति विश्व भावना के अनुरूप विकसित करने पर कहां रोक है। इसके लिए कदम उठाया जाना चाहिए। रामजन्म भूमि का विवाद अब केवल जिद बस लटका हुआ है। मुसलमानों में भी इस समस्या के सम्मान जनक हल के लिए अकुलाहट है। कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षी और कुटिल मानसिकता के लोग ही इसे लटकाए रखना चाहते हैं। जितनी जल्दी इसका समाधान हो उसके लिए उपाय करना चाहिए।

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