आखिर कहां गया तारा मंडल का सामान

Update: 2016-01-15 00:00 GMT

हास-परिहास के बीच सवालों की अनदेखी,आठ सालों में नुमाइशी साबित हुई सौगात

श्योपुर। शासन सौगात देता है ताकि संबंधितों को उसका लाभ मिल सके और इसके बाद की जिम्मेदारी संबंधित विभाग की होती है कि वो मिली सौगात का रखरखाव तथा सदुपयोग करते हुए शिकायत का कोई मौका सामने न आने दे लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। यही वजह है कि सरकारी खजाने से निकली सौगातें पानी में बह रही हैं तथा प्रशासन चौतरफा अलाली के मकडज़ाल में उलझने के बजाय दूरी बनाए रखने का रास्ता अपनाता रहा है।
उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय के सब्जी मण्डी क्षेत्रान्तर्गत शासकीय उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय परिसर में आठ साल पहले निर्मित व स्थापित कराया गया तारा मंडल जिसका मकसद छात्र-छात्राओं को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में ज्ञान व खोजों से परिचित कराना था। विडम्बना यह है कि उक्त तारा मंडल का बाहरी ढांचा भले ही धरातल पर नजर आ रहा हो लेकिन उसमें रखा गया सारा ताम-झाम अंतरिक्ष में विलीन हो चुका है। इस सच्चाई का खुलासा विगत मंगलवार को विद्यालय परिसर में जिला स्तरीय सूर्य नमस्कार कार्यक्रम के उपरांत तब हुआ जब विद्यालय परिसर का भ्रमण करते हुए जिलाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों का कौतुहल तारा मंडल के स्तूपनुमा भवन को देखकर जागृत हुआ। स्तूपनुमा किंतु बाहर से जर्जर नजर आने वाले इस भवन के तारा मंडल होने की जानकारी पाने के बाद अंदर की व्यवस्था देखने और परखने के उत्सुक जिलाधीश पी.एल. सोलंकी तथा पुलिस अधीक्षक एस.के. पाण्डे ने जिला पंचायत अध्यक्ष कविता सुरेश मीणा, क्षेत्रीय विधायक दुर्गालाल विजय, नपाध्यक्ष दौलतराम गुप्ता, जिला शिक्षाधिकारी अजय कटारिया सहित अन्य अधिकारियों, शिक्षकगणों और खबरनवीसों की मौजूदगी में पहले तो दरवाजे पर लटके जंग लगे ताले की चाबी तलब की और जब चाबी का कोई अता-पता नहीं चला तो उसे तुड़वाने का आदेश दिया। आनन-फानन में ताला तोड़ते हुए जब दीमकों का शिकार हो चुके बदहाल दरवाजे को बमुश्किल खोला गया तब पता चला कि अंदर गंदगी और धूल के अलावा ऐसा कुछ नहीं है जो बच्चों को अंतरिक्ष की सैर का मजा देने या जानकारी उपलब्ध कराने वाला हो।
माना जा रहा था कि इस सच्चाई के सामने आने के बाद अधिकारी व जनप्रतिनिधि जांच व कार्रवाई का मानस बनाते देर नहीं लगाएंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और हास-परिहास करते हुए सभी अधिकारी और जनप्रतिनिधि परिसर के आसपास के इलाकों का भ्रमण व अवलोकन करने की कवायद करने में व्यस्त हो गए। बहरहाल, सवाल यह खड़ा हो रहा है कि वर्ष 2007 में बनकर तैयार होने के बाद तत्कालीन जिलाधीश शोभित जैन द्वारा विधिवत लोकार्पित किए गए तारा मंडल के सारे संसाधन और उपकरण कहां गए जिनका दर्शन लाभ केवल चार-छह दिन विद्यार्थी कर पाए।
सवाल यह भी है कि शासन की मंशानुसार स्थापित किए जाने के बावजूद महज नुमाइशी साबित हो रहे तारा मंडल की देख-रेख, रखरखाव, सुरक्षा और सदुपयोग सुनिश्चित करने के बजाय इस अलाली व लापरवाही के प्रति उदासीनता किस स्तर पर और क्यों बरती जाती रही, इनसे भी ज्यादा गंभीर सवाल यह है कि जो तारा मंडल तालाबंद रहा उसके अंदर का साजो-सामान कब, कैसे और किसके द्वारा खुर्द-बुर्द किया गया।
बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारी धन की बर्बादी और विद्यार्थियों के हितों के साथ खिलवाड़ से जुड़े इस मामले का परीक्षण कराते हुए संबंधितों की जिम्मेदारी तय किए जाने का निर्णय लिया जाएगा तथा प्रभावी कार्रवाई भी अंजाम दी जाएगी ताकि इस तरह की सौगातों के नष्ट होने का सिलसिला रुक सके और सुविधाओं के नाम पर दिए जाने वाले संसाधनों के सदुपयोग की प्रवृत्ति विकसित हो सके। यहां गौरतलब बात यह भी है कि वर्ष 2007 में निर्मित तथा तत्कालीन जिलाधीश शोभित जैन द्वारा उद्घाटित किए जाने के बाद जहां सात से आठ शिक्षण सत्र गुजरने जा रहे हैं विद्यालय सहित अन्यान्य विद्यालयों के छात्र-छात्राओं को इस सौगात का कोई लाभ नहीं मिल पाया है। हास्यास्पद बात तो यह है कि अंदर के हालातों या निर्माण के उद्देश्यों की जानकारी के अभाव में माध्यमिक व उच्च माध्यमिक स्तर तक के विद्यार्थी इसे सांची के स्तूपों की अनुकृति समझते आ रहे हैं जो अपने आपमें शर्मनाक है। अब देखना यह होगा कि इस मामले में प्रशासनिक तथा विभागीय अधिकारियों द्वारा क्या रुख अपनाया जाता है।

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