क्या चर्चा और गोली एक साथ चलेगी?
जयकृष्ण गौड़
यह समाचार राष्ट्रवादी मन को संतोष नहीं दे सकता कि पाकिस्तान की ओर से किये गये हमले में चार भारतीय ग्रामीण घायल होने और मोर्टार के गोलों से हमला होने के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी बैठक बुलाई। इसमें सुरक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ सुरक्षा सलाहकार भी शामिल हुए, इस उच्च स्तरीय बैठक का निष्कर्ष यह निकला कि अब पाक की ओर से हमला किया जायेगा तो उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जायेगा। यह सवाल मनोवैज्ञानिक है कि मुंहतोड़ का आशय क्या है। अभी तक क्या सुरक्षा बल और सेना के जवानों ने हमलों का उचित जवाब नहीं दिया है। अभी तक पाक की सेना ने जितने हमलेे किये, अतंकवादियों के माध्यम से सुनियोजित हमले कराकर निर्दोषों का खून बहाया, उसके बाद भी हमारे नेतृत्व द्वारा इसी प्रकार की भाषा का उपयोग किया गया था। ताशकंद, शिमला, लाहौर से लेकर आगरा और अब रूस की धरती पर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ जो चर्चा हुई, उसे करार कहा जाय या औपचारिक चर्चा कहा जाय, लेकिन उसके बाद कूटनीतिक भाषा में कहा गया कि यह पहल, चर्चा या करार काफी सार्थक रहे है। अभी तक चाहे पं. नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिराजी या नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री के नाते पाकिस्तान के साथ शांति वार्ता करते रहे हो, लेकिन कूटनीतिक भाषा में इन भेंटों को सफल या सार्थक बताया गया। अटलजी ने तो लाहौर तक बस यात्रा कर शांति का संदेश दिया था लेकिन उसके बाद तत्कालीन पाक के सेना प्रमुख जनरल मुशर्रफ ने कारगिल में घुसपैठ कराई, हालांकि भारतीय सेना ने उसकी साजिश को असफल कर दिया। अटलजी और तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच बनी सहमति और करार को भी सार्थक परिणाम देने वाला बताया था, इसके बाद कारगिल में पाक सेना की घुसपैठ को भारतीय सेना ने असफल कर दिया। यह भी जमीनी सच्चाई है कि सीधे युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाई है। १९७१ में तो बंगलादेश की मुक्ति के लिए भारतीय सेना ने जो कार्रवाई की, हालत यह हुई कि नब्बे हजार पाक सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने नीची गर्दन कर, हथियार डालते हुए समर्पण कर दिया। विश्व युद्ध में भी इतनी संख्या में एक साथ समर्पण करने की घटना का उल्लेख नहीं मिलता। अब करीब चार दशक से पाकिस्तान आतंकियों के माध्यम से युद्ध चला रहा है। जेहादी आतंकवाद न केवल भारत का वरन् दुनिया का नासूर बन गया है, जिस तरह कैन्सर मनुष्य की जान लेवा बीमारी है, इसके उपचार पर शोध हो रहे हैं लेकिन अभी तक ऐसा शोध नहीं हुआ, जिससे कैन्सर का रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो सके। इसी तरह आतंकवाद को समाप्त करना सब चाहते हैं। अमेरिका में जब ९/११ को वल्र्ड टे्रड सेन्टर पर जेहादी आतंकियों का आत्मघाती हमला हुआ, तब अमेरिका की ओर से आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष की घोषणा की। हर देश को अपने अस्तित्व की सुरक्षा की चिंता रहती है। इन दिनों चीन माओवादी विस्तार की नीति का अनुसरण कर रहा है। वहां एक दलीय तानाशाही है। इसलिए उसने अपनी आर्थिक और हथियार की ताकत में इतनी वृद्धि की है कि अमेरिका और चीन के बीच शीत युद्ध की स्थिति बनी हुई है।
अमेरिकी कूटनीति चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। हालांकि ओबामा प्रशासन भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौलने की नीति अपना रहा है। आतंकवाद के खिलाफ दुनिया के देशों को एकजुट होकर संघर्ष के बीच सबसे बड़ा रोड़ा अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का दोहरा और दोगला रवैया है। यह सब जानते हैं और इस आरोप के पर्याप्त प्रमाण हैं कि पाकिस्तान में जेहादी आतंकवाद की जड़ है। इसके बाद भी कश्मीर के आतंकवाद के प्रति अमेरिका दोहरा रवैया अपनाता है। अमेरिका ने कभी ईमानदारी से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी। हालांकि अफगानिस्तान में तालिबानियों के खिलाफ संघर्ष जारी है। आईएसआईएस आतंकियों की बर्बरता का नंगा स्वरूप सीरिया और इराक की भूमि पर दिखाई देता है। कई निर्दोषों के सिर कलम कर दिये गये हैं। महिलाओं की नीलामी की जा रही है, इन क्षेत्रों में खलीफा राज होने से महिलाओं की शिक्षा पर बंदिश है। कहा जायेगा कि यह मानव विरोधी बर्बर शासन है। पाकिस्तान के साथ शांति की पहल आज से नहीं पं. नेहरू सरकार के समय से चल रही है। पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने के बारे में प्रयास हुए। जब पूरे देश में गैर कांगे्रसवाद की पहल प्रभावी हो रही थी, यह विश्वास भी लोगों को हो रहा था कि भ्रष्टाचार और अन्य बुराइयों की जड़ कांग्रेस सरकारों में है, इसलिए किसी भी तरीके से कांग्रेस को हटाना आवश्यक है। समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया न केवल कांग्रेस के खिलाफ थे बल्कि कांग्रेस के वंशवाद के भी प्रखर विरोधी रहे, उन्होंने गैर कांग्रेसी दलों की एकता के लगातार प्रयास किये। डॉ. लोहिया ने भी पाकिस्तान के साथ बिगड़ते संबंधों को ठीक करने के लिए जनसंघ के प्रमुख नेता पं. दीनदयाल उपाध्याय के साथ मिलकर १२ अप्रैल १९६४ को भारत-पाक महासंघ बनाने के बारे में संयुक्त वक्तव्य जारी किया। इस वक्तव्य का अंतिम पैरा इस प्रकार था कि- 'हमारा मानना यह है कि दो भिन्न देशों के रूप में भारत पाकिस्तान का अस्तित्व कृत्रिम स्थिति है। दोनों सरकारों के संबंधों में मन मुटाव असंतुलित दृष्टिकोण और टुकड़ों में बात करने की प्रवृत्ति का परिणाम है। दोनों सरकारों के बीच चलने वाला संवाद टुकड़ों में न होते हुए, निष्पक्षता से होना चाहिए ऐसे खुले दिल से होने वाली बातचीत से ही विभिन्न समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है, सद्भावना पैदा की जा सकती है और किसी प्रकार के भारत पाक महासंघ बनाने की दिशा में शुरूआत की जा सकती है।Ó विडंबना यह रही कि केन्द्र में कांग्रेस सरकार थी, इस प्रकार गैर कांग्रेसी दलों को कांग्रेस के खिलाफ एकजुट करने की जो पहल की गई थी, वह भी स्थिर नहीं रह सकी।
इस सच्चाई का इतिहास में उल्लेख है कि भारत और हिन्दुओं की घृणा से उत्पन्न हुई प्रवृत्ति के कारण १९४७ में देश का बंटवारा हुआ। वहीं घृणा पाकिस्तान के हुक्मरानों की घरू और विदेश नीति का आधार गत ६८ वर्षों बाद भी बनी हुई है। यह भी वास्तविकता है कि वहां की सेना को भी भारत की दुश्मनी का पाठ पढ़ाया जाता है। यह भी जमीनी सच्चाई है कि वहां का शासन और कूटनीति भारत से दुश्मनी के आधार पर चलती है, चाहे नवाज शरीफ की घोषित नीति यह है कि भारत से रिश्ते सुधारने की पहल करना, लेकिन जिस तरह सीमा पर बार-बार आतंकी हमले होते है, जिस प्रकार पाकिस्तान या पाक कब्जे वाले कश्मीर की भूमि पर खूंखार आतंकी दरिन्दे तैयार करने के ४५ शिविर चल रहे हैं। अभी तक अमेरिका की समझ में यह नहीं आया कि पाकिस्तान में आतंकी तैयार होते हैं। यदि वह यह जानता है कि अमेरिका उसे लाखों डालर की सहायता क्यों देता है। इन्हीं डालरों से आतंकियों को हथियार और पैसा प्राप्त होता है। ये आतंकी ही भारत में आकर हिंसा करते हैं।
केन्द्र में राष्ट्रवादी विचारों की भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार है। राष्ट्रवादी नीतियों का आशय यही है कि देश की एकता अखंडता की सुरक्षा दृढ़ता से की जाय। पाकिस्तान के साथ लड़ाई से निपटा जाय। हालांकि मोदी सरकार पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि उसने पड़ोसी देशों के साथ शांति की पहल प्रमाणिकता से नहीं की। शपथ विधि समारोह से लेकर रूस की धरती पर भी शांति की पहल की गई। अब तो कांगे्रस मोदी सरकार पर यह आरोप लगाती है कि जब सीमा पर आतंकी घुसपैठ और गोलीबारी जारी है तो ऐसे समय पाक के प्रधानमंत्री से चर्चा का कोई औचित्य नहीं है। सवाल यह है कि पाक की सेना और हुक्मरानों के साथ किस भाषा में चर्चा की जाय। अभी तो केवल शक्ति की भाषा से ही वह समझ सकता है, इसी भाषा से वह १९६५ और १९७१ में समझा है। शांति के लिए चर्चा की पहल और हमले के जवाब में शक्ति की भाषा से ही वह समझ सकता है। देश के मिजाज का यह संदर्भ है कि जिस लांस नायक हेमराज सिंह का सिर काटा गया, उसकी पत्नी यह कहती है कि पाकिस्तान के उन दुश्मनों का सिर काटा जाय। जब हेमराज का सिर काटने वाले हमलावर को भारतीय सेना ने खत्म कर दिया तो शहीद हेमराज के गांव में दीवाली मनी।
(लेखक - पूर्व संपादक स्वदेश एवं राष्ट्रवादी लेखक है)