देश में आज भी आपातकाल की आशंका: आडवाणी

Update: 2015-06-18 00:00 GMT

नई दिल्ली। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का कहना है कि भारतीय राजनीति में आज भी आपातकाल की आशंका है। भविष्य में नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित किए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान में संवैधानिक और कानूनी कवच होने के बावजूद ताकतें लोकतंत्र को कुचल सकती है। आडवाणी ने देश में आपातकाल की 40वीं बरसी से पहले एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में यह बात कही। गौरतलब है कि 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी थी।
आडवाणी ने कहा, 1975-77 में आपातकाल के बाद के वर्षो में मैं नहीं सोचता कि ऎसा कुछ भी किया गया है जिससे मैं आश्वस्त रहूं कि नागरिक स्वतंत्रता फिर से निलंबित या नष्ट नहीं की जाएगी। ऎसा कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा, जाहिर है कोई भी इसे आसानी से नहीं कर सकता। लेकिन ऎसा फिर से नहीं हो सकता, मैं यह नहीं कह पाऊंगा। ऎसा फिर से हो सकता है कि मौलिक आजादी में कटौती कर दी जाए। जब आडवाणी से पूछा गया कि खास तौर पर ऎसा क्या नहीं दिख रहा है जिससे हम समझें कि भारत में इमर्जेसी थोपने की स्थिति है- उन्होंने कहा, अपनी राज्य व्यवस्था में मैं ऎसा कोई संकेत नहीं देख रहा जिससे आश्वस्त रहूं। नेतृत्व से भी वैसा कोई उत्कृष्ट संकेत नहीं मिल रहा। लोकतंत्र को लेकर प्रतिबद्धता और लोकतंत्र के अन्य सभी पहलुओं में कमी साफ दिख रही है। आज मैं यह नहीं कह रहा कि राजनीतिक नेतृत्व परिप` नहीं है लेकिन कमियों के कारण विश्वास नहीं होता। मुझे इतना भरोसा नहीं है कि फिर से इमजेंसी नहीं थोपी जा सकती।
एक अपराध के रूप में इमर्जेेसी को याद करते हुए आडवाणी ने कहा कहा इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने इसे बढ़ावा दिया था। उन्होंने कहा कि ऎसा संवैधानिक कवच होने के बावजूद देश में हुआ था। आडवाणी ने कहा, 2015 के भारत में पर्याप्त सुरक्षा कवच नहीं हैं। यह फिर से संभव है कि इमर्जेसी एक दूसरी इमर्जेसी से भारत को बचा सकती है- ऎसा ही जर्मनी में हुआ था। वहां हिटलर का शासन हिटलरपरस्त प्रवृत्तियों के खिलाफ विस्तार था। इसकी वजह से आज के जर्मनी शायद ब्रिटिश की तुलना में लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर ज्यादा सचेत है।
इमर्जेसी के बाद चुनाव हुआ और इसमें जिसने इमर्जेसी थोपी थी उसकी बुरी तरह से हार हुई। यह भविष्य के शासकों के लिए डराने वाला साबित हुआ कि इसे दोहराया गया तो मुंह की खानी पडेगी। आडवाणी ने कहा, आज की तारीख में निरंकुशता के खिलाफ मीडिया बेहद ताकतवर है। लेकिन यह लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए एक वास्तविक प्रतिबद्धता है- मुझे नहीं पता। इसकी जांच करनी चाहिए।

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