संस्कारहीन भारतीय युवा पीढ़ी
आजकल भारतीय समाज की दशा दयनीय है। कल तक जिस भारतीय समाज की मिसाले दी जाती थी, आज वही समाज अपनी दिशा खो रहा है। पहले के काल में बुजुर्गों का और युवा पीढ़ी का जो संबंध था अब वो खत्म हो गया है। बच्चे बड़ों का आदर करना भूल गए हैं। आज के समय में बड़े बूढे लोग भी बच्चों को सही संस्कार नहीं दे पा रहे है। बच्चे वही व्यवहार करते है जैसा वो अपने बड़ों को देखते है यदि हमें अपने संस्कृति के गौरव को लौटाना है तो घर के बड़ों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। जिससे हमारी भारतीय युवा पीढ़ी संस्कारहीन और भ्रमित होने से बचे।
सत्यजीत चाकनकर