पाकिस्तान में शरीफ की मुश्किलें फिर बढ़ीं
- संजीव पांडेय
पाकिस्तान की राजनीति में फिर हलचल है। नवाज शरीफ फिर उसी दौर से गुजर रहे है जिस दौर से 1999 में गुजरे थे। अपने शासन के दूसरे साल में अप्रत्याशित रुप से उन्होंने इस्लामाबाद को सेना के हवाले किया है। उधर लाहौर में तहिरूल कादिरी के समर्थकों पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे कई लोगों की मौत हो गई। पाकिस्तान में राजनीतिक हालात काफी गंभीर हो गए हैं, जबकि सेना बुलाए जाने के फैसले कि राजनीतिक दलों ने जोरदार निंदा की है। क्योंकि शरीफ के इस फैसले के कई अर्थ निकल रहे हैं। पहला अर्थ है कि यह सेना के सामने सरेंडर है। दूसरा अर्थ यह है कि अपने विरोधियों को कुचलने के लिए नवाज शरीफ ने सेना को बुलाया। इसमें तहिरुल कादिरी और इमरान खान हैं। यह अलग बात है कि कादिरी और इमरान खान भी सेना के इशारे पर ही नवाज के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। नवाज शरीफ ने संविधान की धारा 245 के तहत सेना बुलाने का फैसला किया है। इस धारा के इस्तेमाल के बाद जिस इलाके में सेना बुलायी जाती है उस इलाके में न्यायपालिका के अधिकार भी सीमित हो जाते हैं।
पाकिस्तानी नेशनल असेंबली में इस पर जोरदार बहस हुई। विपक्ष का आरोप था कि सेना असामान्य परिस्थितियों में बुलाने के लिए संविधान में प्रावधान किया गया था। लेकिन इस्लामाबाद में एकदम सामान्य हालात में कानून और व्यवस्था के नाम पर सेना को बुलाने का फैसला नवाज शरीफ ने किया। विपक्ष का आरोप है कि इमरान खान और तहिरूल कादिरी के इस्लामाबाद मार्च के बहाने सेना ने नवाज शरीफ को दबाव में ले लिया है। सवाल यह उठाए जा रहे हैं कि इतना दबाव सेना का आसिफ अली जरदारी और यूसुफ रजा गिलानी ने भी अपने पांच साल के कार्यकाल में नहीं बर्दाश्त किया था। लेकिन पाकिस्तान में एक बार फिर सेना अपनी स्थिति मजबूत कर चुकी है। राजनीतिक दलों के नेता पुराने ढर्रें पर अपने व्यक्तिगत हितों के लिए सेना के चंगुल में फंस गए हैं। नवाज शरीफ ने विपक्षी नेता इमरान खान और तहिरूल कादिरी के आंदोलन से सबक लेने के बजाए सेना को अपनी गरदन पकड़ा दी है। यही सेना चाहती थी। नवाज शरीफ को लग रहा था कि कादिरी को कनाडा से दुबारा सेना ने ही बुलाया है। जबकि इमरान खान को भी सेना का समर्थन मिलने की सूचना शरीफ को मिल रही थी। डरे नवाज आर्मी हेडक्वार्टर जाकर सेना की शर्तों को मानने को राजी हो गए।
वैसे देश के गृह मंत्री निसार अली खान इस्लामाबाद में सेना बुलाए जाने के फैसले को जायज ठहरा रहे हैं। उनका कहना था कि पूर्ववर्ती सरकार ने भी कई बार हालात खराब होने पर सेना बुलायी। हालांकि विरोधियों का तर्क है कि जब भी संविधान की धारा 245 के तहत सेना को बुलाया गया है चुनी हुई सरकार की विदाई हुई है। वैसे पीपुल्स पार्टी ने तालिबान को रोकने के लिए अपने कार्यकाल में फाटा के मलंकद एजेंसी में सेना को बुलाया था। इससे पहले जुल्फिकार अली भुट्टो ने संविधान की धारा 245 के तहत 1977 में लाहौर में सेना बुलायी थी। उसके बाद ही जियाउलहक ने उनका तख्ता पलट दिया था। 1998 में नवाज शरीफ ने इस धारा का प्रयोग कर सेना को बुलाया था। इसके बाद नवाज शरीफ का तख्ता पलट हो गया था।
हालांकि इमरान खान नवाज को चुनौती तो दे रहे हैं पर इसका कितना लाभ उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में मिलेगा यह समय बताएगा। क्योंकि पाकिस्तानी राजनीति में जातीय पहचान काफी हावी है। पश्तून मूल के इमरान खान वैसे तो पंजाब में पले बढ़े हैं, लेकिन पंजाबियों के नेता वो नहीं बन पाए। इसका मुख्य कारण पश्तूनों और पंजाबियों के बीच पिछले दो सौ साल से चल रही जंग है। इमरान खान मिठानी कलैन के नियाजी पश्तून हैं। इन्होंने हमेशा पंजाबी सर्वोच्चता का विरोध किया। पाकिस्तान में लगभग ढाई करोड़ आबादी पश्तूनों की है। इमरान खान को अभी तक मुख्य आधार पश्तून हैं। खैबर पख्तूनखवा में पश्तूनों के प्रत्यक्ष और तालिबान के अप्रत्यक्ष समर्थन से इमरान खान की सरकार बनी। कराची में भी पश्तून आबादी में घुसपैठ कर इमरान खान ने मोहाजिर अल्ताफ हुसैन की पार्टी को जोरदार चुनौती दी है। कई जगहों पर चुनावों में इमरान खान की पार्टी दूसरे नंबर पर आयी। इसी कारण नवाज शरीफ की चिंता बढ़ी है।
हालांकि सेना ने हमेशा राजनीतिक दलों के आपसी झगड़े और पाकिस्तान के जातीय झगड़ों का लाभ उठाया है। पहले सेना ने पाकिस्तान में लोकतांत्रिक दलों को कमजोर करने के लिए एक धार्मिक राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी को अपने साथ रखा। इस दल ने पीपुल्स पार्टी समेत कई दलों को किनारे लगाया। जमात-ए-इस्लामी को सबसे ज्यादा लाभ जनरल जिया के कार्यकाल में मिला। जियाउल हक ने इन्हें भारी लाभ दिया। परवेज मुशर्रफ ने मुस्लिम लीग को तोड़कर नवाज शरीफ से अलग हुए पंजाबी नेता चौधरी शुजात हुसैन और उनके भाई परवेज इलाही को अपने साथ लगा लिया। दोनों भाई सात साल तक परवेज मुशर्रफ के साथ ऱहे। दोनों भाइयों ने सेना के सहयोग से नवाज शरीफ को पंजाब प्रांत से उखाड़ फेंकने की हर कोशिश की। परवेज इलाही पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री भी बन गए। अब एक बार फिर राजनीतिक दलों को सेना एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रही है। इन्हें आपस में लड़ा कर उसका लाभ लेना चाहती है। पहले उन्होंने कादिरी को हवा दी और इमरान खान को हवा दी। इससे डर कर नवाज शरीफ खुद सेना के पास पहुंच गए। अब सेना इसका लाभ ले रही है।
दरअसल पाकिस्तानी सेना में भी पंजाबी लॉबी मजबूत है। सेना में लगभग 20 प्रतिशत पश्तून आबादी है। जबकि पाकिस्तानी सेना में 70 प्रतिशत पंजाबियों की आबादी है। आजादी के बाद आधे समय तक सीधे तौर पर सता को चलाने वाली सेना सत्ता से बाहर रहने पर परेशान हो जाती है। क्योंकि इस दौरान सैन्य अधिकारियों की संपति में जोरदार इजाफा हुआ। पाकिस्तान के व्यापार धंधों में इनका जोरदार हस्तक्षेप है। खासकर रिएल एस्टेट के कारोबार में तो सेना का कोई मुकाबला नहीं है। वो नहीं चाहते हैं कि चुनी हुई सरकार के लोग सेना के इन अधिकारों में हस्तक्षेप करें। साथ ही सेना विदेश नीति खासकर अमेरिका, अफगानिस्तान और भारत की नीति को लेकर सीधे तौर पर अपना नियंत्रण चाहती है। नवाज शरीफ के हाल के भारत संबंधी दिए गए कुछ स्वतंत्र विचार सेना को पसंद नहीं आए हैं।