जनमानस

Update: 2014-05-07 00:00 GMT

क्यों चुभने लगे ये साहसी बोल


अमित शाह, गिरिराज सिंह, प्रवीण तोगडिय़ा, रामदास कदम के द्वारा कहे गए साहसी बोलों पर मन के मैले और साजिशी दिमाग के थैले इस कदर तिलमिलाए हैं जैसे मानो इमरान मसूद, अकबरुद्दीन औवेसी जैसे राष्ट्रद्रोही विचारों का कोई ठोस समाधान इन्होंने देश को सौंपा हो। मोदी और राष्ट्र के खिलाफ व मुसलमानों को घोर सांप्रदायिक होने की सलाह देने वाले आखिर इनके निशाने पर क्यों नहीं होते? शाजिया इल्मी का मुस्लिम वोट मांगने का इल्म इन्हें क्यों नहीं परेशान करता। मुल्ला बनने में कट्टरपंथ को हवा देने वाले मुलायम सिंह को क्यों पचा लिया जाता है।
इंडियन मुजाहिदीन के हिमायती नीतीश कुमार क्यों बर्दाश्त किए जाते हैं। सिमी के मास्टरमाइंडों को संरक्षण देने वाली ममता बनर्जी की मरी हुई ममता पर किसी को कोई आश्चर्य क्यों नहीं होता? हिन्दू की साहसी आवाजें इनका चैन छीन लेती हैं और राष्ट्र का चैन लूटने वाली आवाजों पर मन ही मन खुश होते हैं और उनसे वोटों का लालची लोभ पालते हैं। जिस दिन इन साहसी बोलों को समझ लिया जाएगा अमन चैन तभी आएगा।

                                                                      हरिओम जोशी, भिण्ड

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