ज्योतिर्गमय

Update: 2014-04-09 00:00 GMT

आत्म-निर्भरता

हमें जो मनुष्य जीवन मिला है, इसे हर दृष्टि से सार्थक बनाएं। यह पूर्व जन्मों का प्रतिफल हो या न हो, महत्वपूर्ण बात यह है कि हमने जो जीवन पाया है उसे उच्च शिखर पर कैसे पहुंचाएं। हमें आत्मनिर्भर होकर मानवता की सेवा करने, अपने नैतिक चरित्र के विकास के साथ-साथ समाज के विकास का भी लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। मनुष्य समाज में रहता है, तो समाज के प्रति उसका उत्तरदायित्व भी बनता है। इससे भागना कायरता है। व्यक्ति जब स्वयं आत्मनिर्भर होगा, तभी समाज और राष्ट्र भी आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ेगा। कमजोर और परावलंबी व्यक्ति में आत्म-सम्मान नहीं रहता। हर कहीं उसका अपमान होता रहता है। यह व्यक्ति के लिए सबसे खराब स्थिति है। किसी भी काम को आप हाथ में लें तो उसे पूरी क्षमता से दृढ़ प्रतिज्ञ होकर पूरा करें। इसका परिणाम यह होगा कि आप सफलता के हर सोपान पर आसानी से चढ़ते चले जाएंगे। कोई भी मार्ग आपके लिए दुर्गम न रहेगा। राह में कोई भी बाधा आपका रास्ता नहीं रोकेगी। आप केवल स्वयं पर भरोसा रखें। लोगों के प्रति सहिष्णु, उदार, करुणा व दया का भाव रखकर पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपना कार्य करें। आप देखेंगे कि नई-नई राहें आपके लिए खुलती चली जाएंगी। यह संसार काहिलों के लिए नहीं है। यहां जो कर्म करेगा, सफलता उसी का माथा चूमेगी।
एक बात याद रखें यदि आप स्वयं आत्मनिर्भर नहीं बनेंगे तो समाज को, जिसमें आप रहते हैं उसे कभी भी स्वावलंबी नहीं बना सकते। आत्मनिर्भर व्यक्ति कठिन से कठिन अवसर पर भी दूसरों की सहायता की अपेक्षा न रखकर, अपनी पूरी शक्ति से लक्ष्य पाने को उतावला रहता है।
इस संबंध में सुप्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपियर ने कहा था, 'आत्मनिर्भर मनुष्य को इस बात की खुशी नहीं रहती है कि उसे राज मुकुट मिल गया, बल्कि इस बात की खुशी रहती है कि मुझमें राजमुकुट प्राप्त करने की क्षमता है।' इसलिए आप भी आत्म निर्भरता प्राप्त करके मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने के लिए सर्वदा प्रयत्??नशील रहें। आप आत्मनिर्भर रहेंगे तो दूसरे भी आपकी सहायता करने के लिए आगे आते रहेंगे और यदि परजीवी बनेंगे, तो दूसरे भी आपकी उपेक्षा करेंगे। इस तरह आप समाज पर बोझ बने रहेंगे। मनुष्य जीवन की सार्थकता आत्म-विश्वासी और आत्म-निर्भर बनने में है। 

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