अग्रलेख

Update: 2014-04-25 00:00 GMT

   भ्रष्टाचार बनाम कांग्रेस

  • बलबीर पुंज

अपनी चुनावी सभाओं में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भाजपा शासित राज्य सरकारों पर भ्रष्टाचार के मनगढ़ंत आरोप मढऩे का कोई मौका नहीं छोड़ते। पिछले दस सालों में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने एक के बाद एक घोटाले कर राजकोष को 6.25 लाख करोड़ रु. का चूना लगाया है, किंतु केंद्र के घोटालों पर युवराज ने कभी एक शब्द नहीं कहा। अभी जबकि केवल तीन-चार सालों में एक लाख की पूंजी को तीन सौ पचहत्तर करोड़ में बदलने वाले जादूगर का खुलासा हो रहा है, युवराज खामोश हैं। अस्सी के दशक के बोफोर्स तोप खरीद में देशी-विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में इस परिवार पर दलाली लिए जाने का खुलेआम आरोप लगाया गया, तब भी परिवार के किसी व्यक्ति ने उन आरोपों का न तो जवाब ही दिया और न ही किसी पर मानहानि का मुकदमा ही किया गया। क्यों?
राहुल गांधी के जीजाजी और प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा ने एक लाख रुपए से भी कम पूंजी में एक कंपनी खड़ी की और देखते ही देखते करीब चार सौ करोड़ रु. के साम्राज्य के मालिक बन बैठे। अमेरिकी अखबार 'वॉलस्ट्रीट जर्नल में हुए इस खुलासे के बाद कांग्रेसी नेताओं को सूझ नहीं रहा कि वाड्रा का बचाव कैसे करें। उनकी प्रतिक्रिया बोफोर्स तोप दलाली की भांति 'कुछ गलत नहीं हुआ की तरह है। किंतु यदि कुछ गलत नहीं हुआ तो कांग्रेस को राबर्ट वाड्रा के 'बिजनेस मॉडल को दुनिया के सामने रखना चाहिए, ताकि दूसरे भी 'लाख से अरबों में खेलने का जादू सीख सकें।
वाल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार दसवीं पास वाड्रा का बिजनेस सन् 2004 से 2007 तक बेहद मामूली था। वह सस्ती ज्वैलरी का निर्यात करते थे। वर्ष 2007 में उन्होंने एक लाख रु. से भी कम पूंजी में 'स्काईलाइट नामक कंपनी की स्थापना की। सन् 2008 में इस कंपनी ने हरियाणा के गुडग़ांव में 3.5 एकड़ कृषि योग्य भूमि 78 करोड़ रु. में खरीदी। इसके बाद कंपनी ने हरियाणा सरकार से इस भूमि का व्यावसायिक उपयोग करने की अनुमति मांगी। केवल 18 दिनों में हरियाणा की कांग्रेसी सरकार से कंपनी को इसके व्यावसायिक प्रयोग का अधिकार मिल गया और जमीन सोना बन गई। हैरानी की बात यह है कि वाड्रा को उपरोक्त कृषि योग्य भूमि खरीदने के लिए जिस डीएलएफ कंपनी ने कर्ज दिया था, उसी कंपनी ने बाद में 582 करोड़ में उक्त भूमि खरीद ली। इतना उदार कर्जदाता दुनिया में दूसरा मिलेगा क्या?
हरियाणा के एक ईमानदार अधिकारी, अशोक खेमका ने स्काईलाइट की क्रयशक्ति पर संदेह प्रकट करते हुए सारे गड़बड़झाले की पोल खोलने और जमीन सौदा निरस्त करने का दुस्साहस दिखाया तो क्या अंजाम हुआ? उस अधिकारी को कांग्रेसी सरकार ने प्रताडि़त किया और उसका बार-बार स्थानंातरण किया गया। बात बढऩे पर राज्य सरकार ने जांच समिति गठित की और उसका निष्कर्ष वैसा ही आया, जैसे बोफोर्स दलाली पर गठित शंकरानंद जेपीसी की रिपोर्ट आई थी। कहीं कोई गड़बड़ी नहीं। जमीन की खरीद के लिए वाड्रा ने कॉरपोरेशन बैंक से कर्ज लेने का दावा किया। किंतु बैंक के निदेशक ने वाड्रा को किसी तरह का कर्ज देनेे से इनकार किया है। कितने लोग फर्जी दस्तावेज पर अपनी काली कमाई छिपाने का दुस्साहस कर सकते हैं? बैंक के खुलासे के बाद वाड्रा पर संबंधित विभागों ने कार्रवाई क्यों नहीं की?
सन् 2009 में पाकिस्तान की सीमा से लगते राजस्थान के कोलायत में वाड्रा ने 94 एकड़ जमीन किसानों से बहुत ही सस्ते मेंं खरीदी। इसके बाद केंद्र सरकार ने यहां सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की घोषणा की। राज्य की कांगे्रस सरकार से फौरन हरी झंडी मिलते ही इस जमीन के भाव आसमान पर जा पहुंचे। वाड्रा ने करीब दस गुना अधिक कीमत पर जमीनें सौर ऊर्जा प्लांट लगाने वाले निवेशकों को बेचकर वारेन्यारे कर लिए। कांग्रेस बताए कि केंद्र और राज्य की कांग्रेसी सरकार वाड्रा पर इतना मेहरबान क्यों हुई?
विदेशों में जमा काले धन की वापसी के लिए आंदोलन करने वाले बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर सरकार आधी रात को पुलिसिया जुल्म ढा सकती है। देश की सारी जांच एजेंसियां पतंजलि योग संस्थान की कुंडली तलाशने में लगी है, किंतु वाड्रा को विशिष्ट अधिकार प्राप्त हैं। किसी भी हवाई अड्डे पर उन्हें जांच से छूट प्राप्त है। देश के दामाद को शायद इसीलिए देश को लूटने की भी आजादी मिली हुई है। वाल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार वाड्रा सन् 2012 में ही 375 करोड़ रु. की संपत्ति के मालिक बन चुके थे। तीन साल में 375 करोड़ तो अगलेे दो सालों (2012.2013) का हिसाब पाठक स्वयं लगाएं।
यह स्थापित सत्य है कि पिछले 60 वर्षों में भारत की अकूत संपत्ति भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों और कर चोर व्यापारियों के द्वारा स्विस बैंकों में जमा की गई है। अमेरिका स्थित 'ग्लोबल फाइनेंसियल इंटेग्रिटी (जीएफआई) के ताजा अनुमान के अनुसार भारत से प्रतिवर्ष 1.35.000 करोड़ रुपए (27 बिलियन डॉलर) स्विस बैंक आदि में जमा कराया जाता है।
स्विट्जरलैंड की प्रमुख पत्रिका 'स्विजर इलस्त्रीएते ने 19 नवंबर, 1991 के अपने अंक में राजीव गांधी समेत तीसरी दुनिया के करीब दर्जन भर राजनेताओं के नामों का खुलासा किया था, जिन्होंने स्विस बैंकों में अपनी काली कमाई जमा कराई थी। केजीबी दस्तावेजों का उल्लेख करते हुए पत्रिका ने लिखा था कि राजीव गांधी की विधवा, सोनिया गांधी अपने अवयस्क पुत्र के नाम पर उन गोपनीय खातों की देखरेख कर रही हैं, जिनमें 2.5 बिलियन स्विस फ्रैंक (करीब 2.2 बिलियन डॉलर) जमा हैं। इसके आलोक में 7 दिसंबर, 1991 को संसद में सीपीआई-एम के सांसद अमल दत्ता ने नाम लेकर 2.2 बिलियन डॉलर का मामला उठाया था।
दूसरा खुलासा रूसी खुफिया एजेंसी-केजीबी के गोपनीय दस्तावेजों से हुआ था। येवजेनिया अल्बाट्स नामक एक खोजी पत्रकार ने अपनी पुस्तक-'दि केजीबी एंड इट्स होल्ड इन रशिया: पास्ट, प्रेजेंट एंड फ्यूचर में इन दस्तावेजों के आधार पर गंभीर खुलासा किया है। अल्बाट्स ने उपरोक्त पुस्तक की पृष्ठ संख्या 223 में लिखा है, ''केजीबी प्रमुख विक्टर चेबरीकोव के हस्ताक्षर वाले एक पत्र में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के पुत्र के साथ केजीबी के रिश्तों की बात दर्ज है। इसमें सोवियत व्यापार संघों के सहयोग से अपने नियंत्रण वाली फर्म को हो रहे व्यापारिक लाभ के लिए आर गांधी द्वारा आभार प्रकट करने का भी उल्लेख है। अल्बाट्स ने यह भी खुलासा किया है कि सन् 2005 में केजीबी प्रमुख विक्टर चेबरीकोव ने सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति से राजीव गांधी के परिजनों, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और पाओला मैनो (सोनिया गांधी की मां) को अमेरिकी डॉलर में भुगतान करने की अधिकारिता देने को कहा था। कांग्रेस ने इन आरोपों का कभी खंडन क्यों नहीं किया?
विदेशों में जमा काले धन का मुद्दा उठते ही कांग्रेस को बोफोर्स का भूत सताने लगता है। इस संदर्भ में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के रवैये पर सर्वोच्च अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए पिछले दिनों कहा है कि कालेधन की वापसी के लिए आपने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट पेश करने के अलावा कुछ नहीं किया। 'जीजाजी के कारनामे के बाद अदालत की टिप्पणी अच्छे से समझ में आती है।
लेखक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। 

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