क्या सत्य कहना साम्प्रदायिकता है
सत्य को सत्य कहना अगर सांप्रदायिकता है तब मौलिक निष्पक्ष पत्रकारिता कहां रह जाती है। जनमानस को सत्य का साक्षात्कार कराना साम्प्रदायिकता कैसे हो सकती है? कल एक अखबार में ये सुर्खी पढ़ी तो आश्चर्य हुआ साथ ही कथित बुद्धिजीवियों के संकुचित ज्ञान (मानसिकता) पर तरस आया, समझ नहीं आता भारतीय हैं या पाकिस्तानी पीट्ठू, जिन्हें देश और स्वदेशी जनमानस की चिंता नहीं, बस स्वार्थ पूर्ति के लिए कुछ भी अनर्गल प्रलाप करना ही कथित सेक्युलरवादिता दिखाई पड़ती है। प्रदेश में एक मा. पत्रिका के प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है। पत्रिका के अप्रैल 2014 अंक में साम्प्रदायिकता का जहर फैलाने वाली कथित सामग्री का प्रकाशन हुआ है जो आचार संहिता के खिलाफ है।
वीरेन्द्र सिंह विद्रोही, ग्वालियर