झूठ बोल रहे हैं शहजादे
- जयकृष्ण गौड़
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सेक्युलर जमात अक्सर गांधी हत्या का झूठा आरोप लगाती रही है। चुनाव के अवसर पर निराधार और हवाई नारों का तांता लग जाता है। जिस तरह आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल गुजरात में जाकर नौटंकी करते हैं, मीडिया में प्रचार भी मिल जाता है। लोगों को भ्रमित करने के कई प्रकार के हथकंडे अपनाये जाते हैं। दुर्भाग्य यह है कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी और एक सौ तीस वर्ष के इतिहास की धरोहर होने के बाद भी कांग्रेस के शहजादे राहुल गांधी जिस प्रकार की अनर्गल बातें करते हैं उससे ऐसा लगता है कि इन्हें कांग्रेस के इतिहास की भी जानकारी नहीं है। महाराष्ट्र में चौपाल लगाकर उन्होंने रा.स्व. संघ पर गांधी हत्या का आरोप लगाया। जबकि इस बारे में क्लीन चिट न्यायालय दे चुका है, इस आरोप को उनकी दादी इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा नियुक्त कपूर आयोग ने आरोप को निराधार बताया है। लगातार संघ के खिलाफ चलाये गये निन्दा अभियान के चलते इंदिरा गांधी सरकार ने सन् 1966 में इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री जे.एल. कपूर की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग गठित किया। आयोग ने सौ से अधिक गवाहों का परीक्षण किया। इस आयोग के अनुसार आरोपियों का संघ का सदस्य होना साबित नहीं हुआ। और न ही इस हत्या में संघ का हाथ होना पाया गया। दिल्ली में भी इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि एक संगठन के रूप में संघ महात्मा गांधी या कांगे्रस के शीर्ष नेताओं के खिलाफ हिंसक गतिविधियों में लिप्त था। संघ को न्यायिक आयोग द्वारा स्पष्ट रूप से निर्दोष करने के बाद भी संघ को बदनाम करने में लगे हुए हैं। राहुल गांधी कांग्रेस के कोई छुट भैया नेता नहीं हैं उन्हें आरोप लगाने के पहिले तथ्यों की परख कर लेना चाहिए। उन्हें कांग्रेस के उस इतिहास का भी अध्ययन कर लेना चाहिए। जब संघ की देशभक्ति से प्रभावित होकर कांग्रेस की कार्यकारिणी ने सात अक्टूबर 1949 को संघ के सदस्यों से कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय किया था। इससे विवाद की स्थिति भी बनी थी। उत्तर प्रदेश के मंत्री ए.जी. खेर जो मंत्री थे, उन्होंने यह भी कहा था कि संघ कानूनी अदालत द्वारा गांधी हत्या के आरोप से मुक्त किया जा चुका है। उन्हें फासिस्ट बताने, गालियां देने, अपमानित करने और पुराने आरोपों को बार-बार दोहराने से कुछ हासिल नहीं होता और न ही यह गांधीवादी तरीका है।
इस संदर्भ में उल्लेख करना होगा कि जब गांधीजी की हत्या हुई, उसके अगले ही दिन नागपुर से भेजे गये पत्र में द्वितीय सरसंघचालक पूज्य मा.स. गोलवलकर (गुरूजी) ने प्रधानमंत्री पं. नेहरू को भेजे गये पत्र में असंदिग्ध शब्दों में नाथूराम गोड़से के अपराध की भत्र्सना करते हुए लिखा कि एक विचारहीन और दुष्ट हृदय व्यक्ति द्वारा किये निंदनीय कृत्य ने संसार की दृष्टि से हमारे समाज को कलंकित किया है। यदि एक शत्रु देश के आदमी ने यह कुकृत्य किया होता तो यह भी अक्षम्य होता, क्योंकि महात्माजी का जीवन किसी निश्चित समाज की सीमाओं में बंधा हुआ नहीं था। वरन् पूरी मानवता के कल्याण के लिए समर्पित था। परन्तु इस पाप पूर्ण कार्य को करने वाला हमारे देश का ही है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि प्रत्येक राष्ट्रवादी का हृदय आज असहनीय पीड़ा से भरा हुआ है। जब मैंने यह समाचार सुना है, मेरा अंतर्मन एक शून्यता से भर गया है। एक कुशल नेता जो विभिन्न प्रवृत्तियों के लोगों को एक साथ लाकर उन्हें सन्मार्ग पर ला सकता था, पर यह हमला एक विश्वासघात है। न केवल महात्माजी वरन् पूरे राष्ट्र के साथ उन्होंने महात्माजी के हत्यारे को समुचित रूप से निपटने के लिए प्रधानमंत्री को आव्हान किया, उसके साथ कितना ही कठोर बर्ताव क्यों न किया जाय, वह हमारे शोक के सामने नरम ही प्रतीत होगा।
गांधीजी के प्रति अटूट श्रद्धाभाव होने से संघ के एकात्मता स्त्रोत में महात्माजी को प्रात: स्मरणीय व्यक्तियों में से एक माना है। ऐसा भी नहीं है कि महात्माजी की हत्या के बाद यह नाम जोड़ा गया है। गांधीजी और संघ के संबंध आत्मीय रहे। संघ के 1946 के शिक्षा वर्ग को संबोधित करते हुए श्री गुरूजी ने उन्हें विश्ववंदनीय बताया था। गांधीजी २५ दिसंबर 1934 को वर्धा नगर में पहली बार संघ के शिविर में आये थे। उनके साथ मीरा बेन और महादेव देसाई भी थे। उन्हें पुष्पमाला पहनाई गई। इस बारे में गांधीजी ने कहा कि मैं अत्यधिक प्रभावित हुआ हंू। स्वतंत्रता के तुरंत बाद जब साम्प्रदायिक हिंसा होने लगी। हिन्दू मुसलमानों के बीच तनाव से देश का वातावरण दूषित हो गया। गांधीजी ने संदेश भेजा कि वे गुरूजी से बात करना चाहते हैं। गुरूजी उनसे मिलने 12 सितम्बर 1947 को बिरला हाउस गये। उन्होंने महात्माजी से कहा कि वे प्रत्येक स्वयंसेवक की गारंटी नहीं दे सकते। संघ की नीति विशुद्ध रूप से हिन्दुओं और हिन्दू धर्म की सेवा करना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी समुदाय को धमकाते नहीं। गांधीजी और गुरूजी की भेंट में दोनों की सहमति थी कि साम्प्रदायिक उन्माद को रोकने के लिए सभी प्रयास किये जाने चाहिए। गांधीजी ने इस भेंट में इच्छा व्यक्त की, कि वे संघ कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन को संबोधित करना चाहते हैं। 16 दिसंबर 1947 को दिल्ली की भंगी कॉलोनी में करीब पांच सौ स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण में गांधीजी आये। वहां उन्होंने तेरह वर्ष पूर्व वर्धा के संघ शिविर में शामिल होने की बात बताते हुए कहा कि जब संघ के संस्थापक जीवित थे, मैं आप लोगों के शिविर में गया था, मैं वहां अनुशासन की भावना, अस्पृश्यता सम्पूर्ण त्याग और सादगी से भरी नियमित दिनचर्या देखकर बहुत प्रभावित हुआ। कोई भी संगठन जो सेवा और आत्म बलिदान के ऊंचे आदर्शों से प्रेरित है अपनी शक्ति दिखाये बिना नहीं रह सकता। यह भी उल्लेख करना होगा कि कम्युनिस्टों ने राजनैतिक आधार पर गांधीजी की हत्या का निराधार आरोप लगाकर संघ के राष्ट्र कार्य को बदनाम कर 13 नवम्बर 1948 की रात को बंगाल स्टेट प्रिजनर्स एक्ट के अधीन गुरूजी को गिरफ्तार किया गया। यही वह एक्ट था जिसको स्वतंत्रता के पहले पं. नेहरू ने काला कानून बताया था। गुरूजी ने अपमानजनक परिस्थिति और पाशविक अत्याचार के विरूद्ध सत्याग्रह का आव्हान किया। 9 दिसम्बर को राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह से हजारों स्वयंसेवक जेल गये। सत्याग्रह सफल रहा। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने गुरूजी से आग्रह किया कि संघ का लिखित संविधान तैयार कर सरकार को भेजे। प्रतिबंध हटने पर सरदार पटेल ने मार्मिक टिप्पणी की। केवल मेरे नजदीकी लोग ही जानते हैं कि जब संघ पर से प्रतिबंध हटाया गया तो मैं कितना प्रसन्न था। मेरी आपको (गुरूजी) को हार्दिक शुभकामना।
प्रतिबंध हटने के बाद गुरूजी ने अगस्त 1940 में पूरे भारत का दौरा किया। छह माह तक देश के एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रा करते रहे। जहां-जहां वे गये, उनका गर्म जोशी के साथ जोरदार स्वागत हुआ। 23 अगस्त 1949 को दिल्ली की विशाल जनसभा में जिस उत्साह के साथ गुरूजी का स्वागत हुआ, उसके बारे में बी.बी.सी रेडियो की रिपोर्ट थी कि श्री गुरूजी भारतीय इतिहास में एक चमकता हुआ सितारा हैं। उनके अतिरिक्त यदि कोई भारतीय इतने विशाल जनसमूह को आकर्षित कर सकता है तो वह है प्रधानमंत्री नेहरू। गुरूजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि अब हमें संघ पर लगे प्रतिबंध का अध्याय समाप्त कर देना चाहिए। उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों और समर्थको से कहा कि अपने मन में इन लोगों के प्रति कटुता का भाव नहीं आने दें, जिन्हें आप समझते हैं कि उन्होंने आपके साथ अन्याय किया है। हमारे दांत कभी जीभ को काट देते हैं लेकिन क्या हम उन्हें तोड़ देते हैं। जिन्होंने हमारे साथ अन्याय किया है, वे भी अपने ही हैं। इसलिए हमें उन्हें क्षमा कर देेना चाहिए। संघ के बारे में कई प्रकार की बातें कहीं जाती हैं, लेकिन जो संघ की कार्य पद्धति से परिचित हंै, या जिसने संघ शाखा पर जाकर वहां की माटी में खेला है, वह कह सकता है कि संघ क्या है? देशभक्ति का पाठ और भारत की महानता का सपना संजोकर ही वह समाज में अपनी क्षमता के अनुसार काम करता है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में संघ का स्वयंसेवक प्रभावी भूमिका का निर्वाह करता है। राजनैतिक क्षेत्र में संघ की भूमिका की अक्सर चर्चा होती है। इस सच्चाई से कोई इंकार नहीं कर सकता कि संघ के स्वयंसेवक राजनीति में हैं, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी आदि संघ के स्वयंसेवक हैं। वर्तमान में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी भी प्रारंभ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक रहे हैं। जब यह कहा जाता है, मोदी इस शीर्ष पद के लिए जनता की पसंद बने हैं तो यह भी कहा जा सकता है कि संघ के एक स्वयंसेवक को जनता ने पसंद किया है। चाहे मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह हों, ये संघ के स्वयंसेवक है, दायित्व की कसौटी पर विचार किया जाय तो दोनों ने विकास के आधार पर तीसरी हैट्रिक लगाई है। विकास के आधार पर राज्यों के चुनाव भी लड़े गये। दूसरी ओर राजस्थान में एक कार्यकाल में ही कांग्रेस साफ हो गई। नरेन्द्र मोदी भी गुजरात के विकास मॉडल के आधार पर देश को विकास के शिखर पर पहुंचाने का रोडमेप प्रस्तुत कर रहे हंै। मैं भी स्वयंसेवक के नाते यह कह सकता हूं कि देश के लिए जीना संघ ने सिखाया है। कोई भी राष्ट्र देशभक्त समाज के द्वारा ही महान बनता है। देशभक्ति की ऊर्जा का संचार करने की कार्यपद्धति संघ की है।
यदि गहराई से विचार किया जाय तो संघ ने ऐसी कार्यपद्धति विकसित की है, जिसके तहत हर क्षेत्र में देश से सरोकार रखने वाली दृष्टि हो। चाहे श्रमिक क्षेत्र में काम करने वाला भारतीय मजदूर संघ हो या शिक्षा संस्कृति और हिन्दुओं की प्रतिनिधि संस्था विश्व हिन्दू परिषद हो। प्राकृतिक आपदाओं में स्वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। करीब सवा लाख सेवा प्रकल्प संघ के द्वारा संचालित है। मुस्लिम राष्ट्रवादी मंच का मार्गदर्शन संघ के प्रचारक इंद्रेशजी कर रहे हैं। संघ ने हर समस्या और संकट का होहल्ला करने की बजाय उनसे निपटने के सार्थक प्रयास किये हैं। मौन साधक की तरह राष्ट्र की सेवा करने की पद्धति संघ ने विकसित की है। संघ कार्य से घबराहट उन लोगों को होती है, जिनका दलीय हित संघ कार्य से प्रभावित होता है। कांग्रेस ने देशे विभाजन से लेकर देश की सुरक्षा के साथ समझौता किया है। इसलिए कांग्रेस के नेता संघ पर झूठे आरोप लगाते रहे हैं। यही कारण है कि कांग्रेस के शहजादे ने मूर्खों की तरह निराधार आरोप संघ पर लगाया है। कांग्रेस द्वारा गांधीजी को भुनाने का पाप बंद करना होगा, वरना जनता बंद करा देगी। 1963 में तो पं. नेहरूजी ने ही संघ की देशभक्ति से प्रभावित होकर गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया था।
(लेखक - राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार है)